जीवन में धर्म की साधना करें : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

जीवन में धर्म की साधना करें : आचार्यश्री महाश्रमण

नंदनवन, 2 नवंबर, 2023
शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण जी ने आर्ष वाणी की अमृत वर्षा करते हुए फरमाया कि भगवती सूत्र के चैबीसवें उद्देशक में कहा गया है कि पुनर्जन्म का सिद्धांत प्रसिद्ध सिद्धांत है। जैन दर्शन में यह मजबूती से स्वीकृत है। पुनर्जन्म है, तो पूर्वजन्म भी है। दोनों के बीच में वर्तमान का जीवन। पूर्व में हमारी आत्मा ने अनंत-अनंत बार जन्म-मरण कर लिए हैं। आत्मा और शरीर का वियोग है, वह मृत्यु है। जब तक दोनों साथ थे तब तक जीवन था। मृत्यु तो है आत्मा और शरीर का कुछ समय के लिए अलग हो जाना और मोक्ष हैµआत्मा का सभी शरीरों से अलग हो जाना, आत्यंतिक वियोग हो जाना। मृत्यु में तो स्थूल शरीर से अलगाव होता है, पर सूक्ष्म-सूक्ष्मतर शरीर हो वो शरीर पुनर्जन्म में आगे जाते हैं।
जैन दर्शन में पूर्वजन्म और पुनर्जन्म दोनों के नियम विस्तार से मिलते हैं। पूर्वजन्म में जीव कहाँ-कहाँ हो सकता है और पुनर्जन्म में जीव कहाँ-कहाँ जा सकता है। हमारे एक गतागत का थोकड़ा है वह पूर्वजन्म-पुनर्जन्म की संहिता का ही थोकड़ा है। भगवती सूत्र में मनुष्य जीवन के संदर्भ में पूर्वजन्म के नियमों के बारे में प्रश्न किया गया है कि मनुष्य जो बनते हैं, वो पिछले जन्म में कहाँ थे, कहाँ से वे जन्म लेते हैं? उत्तर दिया गया कि मनुष्य चारों संसारी गति से जीव मनुष्य गति में आ सकता है। नारकीय जीवों में छठी नरक तक के जीव मनुष्य बन सकते हैं, सातवीं नरक वाला जीव तो सिर्फ तिर्यन्च गति में ही जाएगा। वो मनुष्य नहीं बन सकेगा।
देवगति के जीव पुनः न देवगति में पैदा हो सकता है, न नरक गति में। वह केवल मनुष्य या तिर्यन्च दो गति में ही जाएगा। इसी प्रकार नारकीय जीव भी पुनः न तत्काल नरक में जाते हैं, न देव गति में। वे भी मनुष्य या तिर्यन्च गति में ही पैदा होते हैं। धातव्य है कि देवगति और नरक गति में कुछ नियम एक समान है। जितना ज्यादा से ज्यादा आयुष्य देव गति का होता है, उतना ही ज्यादा से ज्यादा नरक गति का। न्यूनतम आयुष्य 10000 वर्ष का जितना देव गति में है, उतना ही नरक गति में।
भगवती सूत्र में गमा का थोकड़ा व तत्त्वज्ञान का एक खजाना सा भरा है। अनेक विषयों की तात्त्विक बातें हमें इस सूत्र में प्राप्त होती हैं। भगवती और पन्नवणा दोनों आगम तत्त्वज्ञान के मानो भंडार हैं। इनको आत्मसात करने वाला तत्त्ववेत्ता भी बन सकता है। पूर्वजन्म तो अतीत हो गया। पूर्वजन्म का कईयों को ज्ञान हो सकता है। पूर्वजन्म का प्रभाव कुछ अंशों में वर्तमान जीवन पर भी हो सकता है। हमें तो आगे का ध्यान देना चाहिए। अतीत तो व्यतीत हो गया। आगे मैं दुर्गति में न चला जाऊँ। जब तक मोक्ष में न जाना हो तब तक इस नरक-तिर्यन्च गति में तो न जाना पड़े। उसके प्रति जागृत रहे। पुण्य का योग है, तो सब तरह से साता-अनुकूलता मिलती है। पर यह तो पिछली पूँजी है, आगे के लिए मैं क्या कर रहा हूँ, यह चिंतन करें। जीवन में धर्म की साधना करें। पापों से बचने का प्रयास करें, संयम-तप की साधना करें।
चारों गति से ऊपर एक सिद्ध गति-मोक्ष है, उसमें तो केवल मनुष्य ही जा सकता है और कोई गति का जीव नहीं जा सकता। हम पुनर्जन्म पर ध्यान दें तो अपुनर्जन्म पर भी ध्यान दें कि पुनर्जन्म हो ही नहीं। भव-भव में ज्यादा भ्रमण करना ही न पड़े। गृहस्थ भी बहुत विकास की स्थिति में आकर एकाभवतारी हो सकते हैं। श्रमणोपासक श्रावक को अवधिज्ञान भी हो सकता है। जैन विश्व भारती के मंत्री सलील लोढ़ा ने जैविभा की प्रवृत्तियों की जानकारी दी। जैविभा साधना, सेवा, शोध का संगम है। आज जय तुलसी विद्या पुरस्कार समारोह का आयोजन हुआ। 2004 में इस पुरस्कार की स्थापना हुई थी। सन् 2023 का पुरस्कार श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथी बाल विद्या विहार, चुरू को प्रदान किया गया। ट्रस्ट के ट्रस्टी विजय सिंह सेठिया ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। पुरस्कार प्राप्तकर्ता का परिचय दिया गया। स्कूल ट्रस्ट के ट्रस्टी अशोक पारख ने भी अपनी भावना अभिव्यक्त की।
पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया कि संस्कार युक्त शिक्षा हो। समय-समय पर जीवन विज्ञान-अणुव्रत के साथ जैन धर्म-तेरापंथ धर्मसंघ की भी शिक्षा देते रहें। विद्यालय व जैविभा खूब प्रगति करती रहे। मुलुंड के जैन संघ के सदस्य पूज्यप्रवर की पावन सन्निधि में दर्शनार्थ पहुँचे हैं। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।