पदार्थों के प्रति व्यक्ति कम करे आसक्ति : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

पदार्थों के प्रति व्यक्ति कम करे आसक्ति : आचार्यश्री महाश्रमण

आठ वर्ष तक के नौनिहाल कर सकेंगे गुरु चरण स्पर्श

नंदनवन, 14 नवंबर, 2023
कार्तिक शुक्ला एकम-गुजराती नव वर्ष का प्रथम दिन। पूज्यप्रवर ने विशेषकर गुजरात के श्रावकों को बेसता वर्ष के उपलक्ष्य में प्रातः लगभग 7 बजकर 21 मिनट पर विशेष वृहद् मंगलपाठ सुनवाया एवं नववर्ष की आध्यात्मिक मंगलकामनाएँ प्रेषित की। पूज्यप्रवर की पावन सन्निधि में गुजरात से अनेकजन पूज्यप्रवर के दर्शनार्थ पहुँचे हुए थे। महाप्रतापी, पुण्य प्रभावी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि भगवती सूत्र में तप के मूल दो प्रकार के बताए गए हैं-बाह्य तप और आभ्यंतर तप। बाह्य तप के छः प्रकारों में चैथा प्रकार है-रस परित्याग। इन छः प्रकारों में चार प्रकार आहार संयम के संदर्भ में हैं। ऊनोदरी भी एक प्रकार है।
दुनिया में बहुत चीजें हैं, पर आदमी यह सोचे मैं खाने के उपकरणों का संयम रखूँ। भोज्य पदार्थों में रस-स्वाद भी आता है। स्वादिष्ट-अच्छी लगने वाली चीजों का भी परित्याग कर देना भी संयम है। रसपरित्याग में विकृतिवर्जन-विगय का संयम कर लेना है। आयंबिल का प्रयोग करना बहुत संयम है। अरस-विरस जो भी मिल गया उसमें संतोष कर लेना। रूखा-सुखा बिना चुपड़े में संतोष कर लेना रस परित्याग है। ऊपर से त्याग करना अच्छी बात है, पर भीतर से आसक्ति छूट जाए ये बड़ी बात है। भीतरी आसक्ति नहीं छूटती तो वह साधना की अपरिपक्वता है, दुर्बलता होती है। निमित्तों को छोड़ना भी अच्छा उपाय है, परंतु उपादान भी ठीक हो जाए। मूच्र्छा परिग्रह है। पदार्थ पाप-कर्म नहीं लगा सकते। मूच्र्छा से ही पाप कर्म लगते हैं। यह एक प्रसंग से समझाया।
भोजन जगत में बहुत बढ़िया-बढ़िया चीजें हैं, पर भोजन में संयम रखना बड़ी बात है। एक चीनी का त्याग कर देने से भोजन का बहुत संयम हो जाता है। नमक नहीं खाना भी स्वाद विजय की बात हो सकती है। पदार्थों में संयम रखना तपस्या की बात हो जाती है। द्रव्यों की भी सीमा हो सकती है। रसपरित्याग की बात अच्छी साधना हो सकती है। जैन विश्व भारती द्वारा प्रकाशित शासनश्री साध्वी सरोजकुमारी जी-मुंबई द्वारा लिखित स्वयं की आत्मकथा पूज्यप्रवर को लोकार्पित की गई। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया। स्मिता पंकज चैकसी ने गुजराती में गीत की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।