समय अमूल्य है, इसे व्यर्थ न गंवाएँ
विश्वप्रसिद्ध साहित्यकार शेक्सपियर ने कहा था-‘समय मनुष्यों का राजा है। यह बात सत्य है कि समय बहुत ही मूल्यवान है। जोवर्तमान क्षण का आकलन करता है, वह जान सकता कि एक क्षण को भी आगे-पीछे नहीं किया जा सकता है। यह सच है वक्त, मौत, बदनसीबी और दुर्भाग्य से बचना इतना आसान नहीं है। समय गतिशील है, वह वास्तविकता असंभावित आशाएँ ले आता है। आप अपने समय का पूँजी के रूप में सदुपयोग करें। समय का सदुपयोग करने के लिए अपने ऊपर नियंत्रण करना सीखना चाहिए और मिलने वाले समय को व्यर्थ में नहीं गँवाना चाहिए। आप अपने में समय निष्ठता को विकसित कीजिए। यदि आप समय के मूल्य पर विचार करते हैं तो आपको समय-बद्धता की प्रेरणा अवश्य मिलेगी।
इसका तात्पर्य है कि आप अपने समय का वैसा ही आदर करेंगे, जैसा कि आप दूसरों से अपेक्षा रखते हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज वाशिंगटन को समयनिष्ठता अत्यधिक पसंद थी। एक बार उनके सचिव ने अपने देर से आने का कारण बताया कि उसकी घड़ी धीमी चल रही है तो उन्होंने तुरंत कहा-‘या तो आप अपनी घड़ी बदल लें या हमें दूसरे सचिव की व्यवस्था करनी पड़ेगी।’ एक मुक्तक में कहा- सर्व सम्मति के बिना कोई विधान नहीं होता, ठोस जीव के बिना कोई संस्थान नहीं होता। केवल बाहर की उपाधि प्राप्त करने वालों, अनुभव के बिना कोई विद्वान नहीं होता।
एक बार एक कविराज ने फतेहसिंहजी के सम्मुख धार्मिक चर्चा छेड़ते हुए निवेदन किया कि आज मेरी बाड़ी में तेरापंथ जैन समाज के पंचम आचार्य मघवागणी तथा साधु-साध्वीजी विराज रहे हैं। वे बड़े विद्वान तथा त्यागी हैं। आप मेरी झोंपड़ी को पवित्र कराने की कृपा कराएँ। आपके आगमन से संत, समागम का पवित्र लाभ भी मिल जाएगा और रुचिकर भी लगेगा।
तेरापंथ के आचार्यों तथा साधु-साध्वियों से महाराणा का काफी परिचय पुराने समय से चला आ रहा था। वह आधार तो सुदृढ़ था ही। तात्कालिक अन्य किसी व्यवहारिक कठिनाई की संभावना का भी पता लगा लिया। फिर महाराणा ने कविराजजी के कथन को स्वीकार कर लिया। उन्होंने आचार्यश्री की सुविधा आदि पूछकर अपने आने की तिथि तथा सायंकाल में चार बजे का समय निश्चित कर दिया।
अपने निश्चित किए हुए दिन सायंकाल में महाराणा दर्शन करने के लिए आए किंतु वे अपने तय किए समय पर नहीं पहुँच सके, जब देरी से वहाँ पहुँचे तो नतमस्तक होकर आचार्यश्री मघवागणी को वंदन करते हुए, उन्होंने देरी से पहुँचने के लिए क्षमायाचना की। उनके साथ पन्नालालजी पुरोहित तथा कवि मनोहर सिंहजी सिंघी भी थे। सभी आचार्यश्री के सम्मुख यथा-स्थान बैठ गए।
आचार्यश्री मघवागणी ने लगभग बाइस मिनट तक उन्हें उपदेश सुनाया। महाराणा दत्तावधान सुनते रहे। आचार्यश्री ने जब देखा कि सूर्यास्त हो चुका है तथा संतों के वंदन और प्रतिक्रमण के समय में देरी होती जा रही है तब उन्होंने उपदेश को उपसंहार की ओर मोड़ दिया। महाराणा का ध्यान सुनने में इतना एकाग्र था कि वे आचार्यश्री की उस भावना को सहसा पकड़ नहीं पाए, उनका ध्यान तब टूटा, जब उपदेश की बहती हुई अजस्र धारा सहसा ही रुक गई।। महाराणा ने गुरुदेव के मुखारविंद की ओर देखा तो उन्होंने फरमाया कि अब तो समय संपन्न हो गया है, क्योंकि साधु-साध्वियों के संध्याकालीन प्रतिक्रमण का समय आ चुका है।
महाराणा तत्काल उठ खड़े हुए और वंदन करके वहाँ से अपने स्थान की ओर चल पड़े। उपस्थित जनता तथा पन्नालालजी व कवि मनोहर सिंहजी सिंघी भी आचार्यश्री मघवागणी के इस व्यवहार से चिंतित हुए। उन्हें यह चिंता थी कि इस प्रकार के व्यवहार से कहीं महाराणा कुपित व क्रोधित न हो जाएँ। महाराणा तक पहुँचने वाले कुछ विरोधी लोगों ने उस स्थिति से लाभ उठाना चाहा। उन्होंने महाराणाजी से निवेदन किया जहाँ आपका असम्मान हो और आपके सम्मान का उचित ध्यान नहीं रखा जाता हो, वहाँ आपका पदार्पण हमें अखरता है, इसलिए आपको ऐसे स्थान पर नहीं जाना चाहिए।
महाराणा प्रताप सिंहजी ने कहा-नहीं, हम उचित स्थान पर ही गए थे। हमारे असम्मान की वहाँ बात नहीं थी। वह तो अपने नियम की बात थी। गीता में जिसे ‘गत स्पृह’ कहा जाता है कि वे अपने नियम व समय के इतने पक्के हैं कि हमें भी इन्कार कर सकते हैं। समयनिष्ठ न होना मुर्खता है। समयनिष्ठता के प्रति अनुत्तरदायी होना समय की चोरी करना है। समय के प्रति सचेत रहना बहुत बड़ा कौशल है। यदि आप समय के प्रति सचेत हैं तो आप असफल नहीं हो सकते। और आपके सभी कार्य समय पर संपन्न होंगे।
आप विषम समय का सदुपयोग कीजिए। यदि आप अपने विषम क्षणों का लेखा-जोखा रखते हैं तो निश्चित है कि आप अपने समय के प्रभारी होंगे। जब आप किसी की प्रतिक्षा कर रहे हैं समय का उपयोग, आप कोई अच्छी पुस्तक पढ़कर, ज्ञानवर्धक टी0वी0 कार्यक्रम देखकर तथा अन्य कोई आवश्यक कार्य करके कर सकते हैं। गांधीजी व लाल बहादुर शास्त्रीजी यात्रा करते समय कुछ न कुछ कार्य करते रहते थे। कहने का तात्पर्य है कि अपने समय का सदुपयोग करने से नहीं चुकना चाहिए। समय अमूल्य है; यह किसी की प्रतीक्षा नहीं करता अै। अतः आप इसे व्यर्थ न गंवाएँ तभी आप महान् बन सकेंगे। जीवन की सार्थकता इसी में निहित है।