अवबोध

स्वाध्याय

अवबोध

कर्म बोध
बंध व विविध
 
प्रश्न 26 : क्या वीतराग के कर्म बंध होता है?
उत्तर : वीतराग के कर्म बंध होता भी है, नहीं भी। तेरहवें गुणस्थान तक निरंतर कर्म का बंध होता है, चैदहवें गुणस्थान में कर्म बंध का नितांत अभाव रहता है। कर्म बंध के दो प्रकार हैंµ(1) सांपरायिक बंध, (2) ईर्यापथिक बंध।
जो सकषायी हैं उनके सांपरायिक क्रिया से बंध होता है। कषाय व योग की चंचलता सांपरायिक क्रिया का मुख्य हेतु है। दसवें गुणस्थान तक कषाय की विद्यमानता से इस क्रिया से बंध होता है। इसकी स्थिति जघन्य अंतर्मुहर्त उत्कृष्ट 70 करोड़ाकरोड़ सागरोपम है। ईर्यापथिक का अर्थ हैµयोग। जहाँ मात्र योग की चंचलता होती है, वहाँ ईर्यापथिक बंध होता है। यह पुण्य का बंधन है। इसकी स्थिति दो समय की है। यह ईर्यापथिक बंध केवल वीतराग के होता है। 
 
प्रश्न 27 : क्या अंतराल गति में कर्म बंध होता है?
उत्तर : अंतराल गति में कर्म बंध होता है। वहाँ भी मिथ्यात्व, अव्रत, कषाय आदि की क्रिया चालू है। उनसे निरतर कर्म बंध होता है।
 
प्रश्न 28 : अंतराल गति में स्थूल शरीर नहीं होता, स्थूल योग नहीं रहता, फिर कर्म बंध कैसे व किसके होता है?
उत्तर : अंतराल गति दो प्रकार की होती हैµ(1) ऋजु गति, (2) वक्र गति।
अंतराल गति में स्थूल शरीर तो नहीं होता, योगजन्य प्रवाह (धक्का) रहता है। वक्र गति में कार्मण काययोग की चंचलता रहती है। अव्रत व कषाय जीव के साथ अंतरालगति में भी विद्यमान रहते हैं। कर्म पुद्गलों को आकर्षित करने के लिए तो इतना काफी है। कर्मों का बंधन सर्वदा कार्मण शरीर के ही होता है। वह वहाँ मौजूद रहता है।
(क्रमश:)