जन्म-मरण के चक्र से मुक्त होने के लिए मुनित्व स्वीकार करना आवश्यक : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

जन्म-मरण के चक्र से मुक्त होने के लिए मुनित्व स्वीकार करना आवश्यक : आचार्यश्री महाश्रमण

नंदनवन में जैन भागवती दीक्षा समारोह का आयोजन

नंदनवन, 22 नवंबर, 2023
संयमरत्न प्रदाता, आचार्यश्री भिक्षु के परंपर पट्टधर आचार्यश्री महाश्रमण जी ने भगवती सूत्र की विवेचना करते हुए फरमाया कि धर्म-ध्यान के संदर्भ में यहाँ बताया गया है कि ध्यान की चार अनुप्रेक्षाएँ प्रज्ञप्त हैं। एकत्व की अनुप्रेक्षा करना कि मैं अकेला हूँ, मेरी आत्मा अकेली है। एक मेरी आत्मा शाश्वत है, वह ज्ञान-दर्शन युक्त है, बाकि के बाह्य भाव हैं। वे संयोग लक्षण वाले हैं। जहाँ संयोग होता है, वहाँ वियोग भी होता है।
आदमी अकेला ही आता है और एक दिन अकेला ही विपन्न हो जाता है। सांसारिक स्थितियाँ अनित्य है। संसार के सारे संबंध अनित्य है। दूसरी अनित्य अनुप्रेक्षा है। तीसरी अशरण अनुप्रेक्षा है। तुम्हारे लिए कोई त्राण-शरण नहीं है, तुम भी किसी को त्राण-शरण दे नहीं सकते हैं। धर्म की शरण में रहो वह त्राण दे सकता है। जन्म-मरण के चक्र से मुक्त होने के लिए मुनित्व स्वीकार करना आवश्यक है।
आज जन्म-मरण के चक्र से मुक्त होने के लिए एक मुनि दीक्षा का कार्यक्रम है। दीक्षा लेना बहुत बड़ी बात है। दीक्षा देना भी अच्छी बात है। दीक्षा व्रतों का संग्रहण है। गुरुदेव तुलसी और आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी ने अनेकों को मुनि दीक्षाएँ प्रदान कराई थी। आज भी वह परंपरा आगे से आगे प्रवर्धमान है। 77 वर्ष की अवस्था में दीक्षा लेना विशेष बात है। सीए, सीएस और एमए डिग्री से युक्त तेरापंथ में कितने संत हैं। यह दीक्षा प्रसंग विरल है, जो इतनी डिग्री वाला साधु बन रहा है। प्रतिमाधारी श्रावक रहे हैं।
पूज्यप्रवर ने मुमुक्षु धनराजजी के परिवार से मौखिक स्वीकृति भी ली। लिखित अनुमति पहले से प्रदान की जा चुकी है। दीक्षा संस्कार स्वीकार करवाने से पहले धनराजजी से भी स्वीकृति ली।
आर्हत वाणी के साथ भगवान महावीर, तेरापंथ के आद्यप्रवर्तक आचार्य भिक्षु एवं उनकी उत्तरवर्ती आचार्य परंपरा का स्मरण-वंदन करते हुए परमपूज्य आचार्यश्री तुलसी एवं आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी को भी श्रद्धा से स्मरण कर वंदन किया। नमस्कार महामंत्र के उच्चारण के साथ सामायिक पाठ का उच्चारण कराते हुए आजीवन तीन करण तीन योग से सर्व सावद्य प्रवृत्ति का त्याग करवाया।
पूज्यप्रवर ने आर्ष वाणी से अतीत की आलोचना करवाई। पूज्यप्रवर ने केश लोच संस्कार करवाया। आर्ष वाणी के साथ रजोहरण व प्रमार्जनी अर्पित करवाई। नामकरण संस्कार करवाते हुए पूज्यप्रवर ने नवदीक्षित का नाम मुनि ध्यानमूर्ति प्रदान करवाया। श्रावक-श्राविका समाज ने नवदीक्षित मुनि को वंदना की। पूज्यप्रवर ने नवदीक्षित को प्रेरणाएँ प्रदान करवाई। नवदीक्षित मुनि को पूज्यप्रवर ने मुनि दिनेश कुमार जी की निश्रा में साधनारत होने की प्रेरणा दी।
दीक्षा समारोह से पूर्व मुमुक्षु सुरेंद्र व मुमुक्षु मुकेश ने मुमुक्षु धनराज का परिचय दिया। बजरंग जैन ने आज्ञा पत्र का वाचन किया। मुमुक्षु धनराज ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। अनिल बैद ने पूज्यप्रवर को आज्ञा पत्र समर्पित किया।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि जब व्यक्ति दीक्षा को स्वीकार कर लेता है, उसमें अध्यात्म के अंकुर अंकुरित होने लग जाते हैं। उसके अंदर आंतरिक रूपांतर प्रारंभ हो जाता है। आंतरिक परिवर्तन की प्रक्रिया ही दीक्षा है। यह एक प्रकार की आध्यात्मिक औषध है।
विकास परिषद के संयोजक बनेचंद मालू ने भी अपनी भावना अभिव्यक्त की। पूज्यप्रवर के आगे के मुंबई प्रवास व मर्यादा महोत्सव-2024 के लोगों का अनावरण पूज्यप्रवर की सन्निधि में हुआ। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।