मुक्ति की दिशा में प्रस्थान है अनासक्ति की साधना : आचार्यश्री महाश्रमण
वरली, 16 दिसंबर, 2023
वृहत्तर मुंबई प्रवास के अंतर्गत अणुव्रत यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमण जी दादर से विहार कर वरली पधारे। परम पावन आचार्यप्रवर ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारा जीवन पदार्थों पर निर्भर करता है। अनेक पदार्थ हमारे जीवन की आवश्यकताएँ हैं। जीवन की प्रथम कोटि की आवश्यकताओं में है-हवा, पानी और भोजन। श्वास लेने के लिए हवा चाहिए। पीने को पानी चाहिए। धरती पर तीन रत्न हैं-पानी, अन्न और अच्छी वाणी। उसके बाद अपेक्षा होती है-रोटी, कपड़ा और मकान। पदार्थ जीवन के लिए आवश्यक है, पर इनके प्रति आसक्ति नहीं होनी चाहिए। न स्वाद में आसक्ति हो और न ही विवाद में।
आसक्ति दुःख का कारण है। आसक्ति बंधन है, अनासक्ति मोक्ष का मार्ग है। दुनिया में अनेक महापुरुष हुए हैं, जिन्होंने राजपाट छोड़कर साधना तपस्या की थी, योगी बने थे। हम योगी न बन सकें तो कम से कम उपयोगी तो बनें। आदमी को आसक्ति से अनासक्ति की ओर बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। विश्वविद्यालय ज्ञान के माध्यम हैं, पर संत-महात्मा तो अध्यात्म का ज्ञान देते हैं। भारत में ग्रंथ, पंथ और संत संपदा है। इनसे आदमी कल्याण में अग्रसर हो सकते हैं। ज्ञान के साथ विद्यार्थियों को चरित्र-आचार का भी ज्ञान मिले।
ड्रग्स-नशे का बहुत बुरा परिणाम आ सकता है, यह भी विद्यार्थियों को समझाएँ। विद्यार्थी अज्ञान को दूर करें, मोह-आसक्ति मंद हो तो जीवन अच्छा हो सकता है। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में सुरेंद्र चोरड़िया, दिलीप सरावगी, बी0सी0 भालावत, एचएसएनसी यूनिवर्सिटी की प्रो0 हेमलता ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।