नित्य और अनित्य दुनिया में अप्रमत्त रहने का हो प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

नित्य और अनित्य दुनिया में अप्रमत्त रहने का हो प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण

विक्रोली, 9 जनवरी, 2024
अध्यात्म साधना के शिखर पुरुष आचार्यश्री महाश्रमण जी ने पावन प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारी दुनिया में नित्यता भी है और अनित्यता भी है। किसी अपेक्षा से दुनिया नित्य है और किसी अपेक्षा से दुनिया अनित्य है। इसमें हम स्यादवाद का दर्शन कर सकते हैं। संभवतः अनेकांत का दर्शन कर सकते हैं। इस दुनिया में शाश्वत तत्त्व धर्मास्तिकाय-अधर्मास्तिकाय आदि पाँच अस्तिकाय शाश्वत हैं। अनित्यता इसलिए है कि पर्याय परिवर्तन होता है। एक जीव जो अभी मनुष्य है, कभी देव या अन्य गति में जा सकता है। परिवर्तनशीलता भी हमारी दुनिया में है। समग्ररूपेण देखें तो दुनिया नित्यानित्य है।
शास्त्रकार ने बताया है कि मनुष्यों का जो जीवन है, वो वृक्ष के पत्ते के समान है। जैसे वृक्ष का पका हुआ पान गिर जाता है, इसी प्रकार मनुष्य का जीवन भी एक दिन समाप्ति को प्राप्त हो जाता है। इसमें प्रमाद न हो, जागरूकता रहनी चाहिए। वर्तमान में मनुष्य की उम्र लगभग 100 वर्ष के अंदर-अंदर होती है। हमारे धर्मसंघ में साध्वी बिदामाजी लगभग 105 वर्ष से ऊपर की प्रथम साध्वी हैं। ‘समयं गोयम मा पमायए’ इस संदेश को जीवन में लाने का हम चारित्रात्माएँ प्रयास करें। गृहस्थ भी इसे आत्मसात करने का प्रयास करें।
प्रमाद दो प्रकार का होता हैµएक तो प्रमाद आश्रव है, दूसरा प्रमाद अशुभ योग आश्रव रूप में होता है। हम ज्यादा से ज्यादा सातवें गुणस्थान में रहें, ऐसी अप्रमत्तता हो। मन में भावना रखें कि मेरा ज्यादा से ज्यादा प्रवास अप्रमत्त संयत सातवें गुणस्थान में रहें। साधु ध्यान दें कि अशुभ योगों की प्रवृत्ति न हो जाए। गृहस्थ भी अप्रमत्त रहने का प्रयास करें। यथासंभव धर्म की साधना से जुड़ें। जीवन में ईमानदारी रहे। मोबाइल आदि का दुरुपयोग न हो। नशामुक्त रहने का प्रयास करें। हिंसा से भी कुछ अंशों में बचने का प्रयास करें। समय का सही नियोजन कर कुछ समय धर्म की साधना में भी लगाने का प्रयास करें।
अणुव्रत के छोटे-छोटे नियम कोई भी जैन-अजैन स्वीकार कर जीवन अच्छा बना सकते हैं। प्रेक्षाध्यान से राग-द्वेष से मुक्त रहने का प्रयास हो सकता है। धर्मोद्योत जितना हो सके प्रयास होता रहे। श्रमण संघ के उपप्रवर्तक डॉ0 राम मुनिजी ने कहा कि संतों का समागम बड़े पुण्य से होता है। पूज्य शिवमुनिजी के साथ आचार्यश्री महाश्रमण जी का भी सूरत में समागम हुआ था। पुण्योदय से महापुरुषों के दर्शन हो जाते हैं। हम सब जैन होने के नाते एक हैं और एक ही रहेंगे। पूज्यप्रवर के स्वागत में पूर्व विधायक मंगेश सांगले ने अभिव्यक्ति दी। तेयुप एवं कन्या मंडल ने गीत प्रस्तुत किया। ज्ञानशाला ज्ञानार्थियों ने प्रस्तुति दी। दिव्यांग बच्चों ने अणुव्रत गीत की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।