अहिंसा, संयम और तप है अध्यात्म साधना के अंग: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

अहिंसा, संयम और तप है अध्यात्म साधना के अंग: आचार्यश्री महाश्रमण

विक्रोली, 8 जनवरी, 2024
साधना के श्लाका पुरुष आचार्यश्री महाश्रमण जी आज प्रातः विक्रोली पधारे। मंगल पाथेय प्रदान करते हुए परम पावन ने फरमाया कि अध्यात्म की साधना में अहिंसा एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। संयम भी साधना का एक अंग है। अध्यात्म का तीसरा अंग तप होता है। तपस्या के अनेक प्रकार होते हैं। जैन वाङ्मय में तप के बारह प्रकार बताए गए हैं। जितना भी शुभ योग है, वह तप होता है। आदमी को तपोधन भी बनना चाहिए। बृहत्तर मुंबई में कितनी तपस्याएँ हुई हैं। नंदनवन तपोवन बन गया था। तपस्या से धर्म का संचय करें। नवकारसी, ऊनोदरी, वर्षीतप आदि भी तप है। वर्षीतप भी अच्छा महत्त्वपूर्ण है। नियमित स्वाध्याय करना भी तप है।
इंद्रियों व मन, वचन, काया को वश में रखने का प्रयास भी तप है। प्रायश्चित भी एक तप है। ध्यान-कायोत्सर्ग आदि भी तप है। साधु संयम रूपी चद्दर को साफ रखें। कभी इसमें छींटा लग जाए तो आलोयणा से उसकी शुद्धि कर लें। तपस्या शुद्धि का उपाय है। अपनी गलती को छिपाएँ नहीं। अधिकृत व्यक्ति से आलोयणा ग्रहण कर उसे सुधार लें। यहाँ की गंदगी यहीं छोड़ दें। आगे साथ में न जाए। यहीं शुद्धि कर लें। तपस्या जैसी कई बातों की अनेक धर्मों में समानता है। हमारा सौभाग्य है कि हमें हमारे गुरुओं से अच्छी बातें सुनने को मिलती हैं। उन बातों पर हम ध्यान दें। बारह व्रतों को श्रावक स्वीकार करें। हम हमारे जीवन में धर्म-अध्यात्म और तपस्या-इन चीजों से आत्मा को शुद्धता की ओर ले जाने का प्रयास करें।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि एक माह में दो पक्ष-कृष्ण और शुक्ल पक्ष होते हैं। कृष्ण पक्ष अंधकार का प्रतीक है, व्यक्ति को ह्रास की ओर ले जा सकता है। शुक्ल पक्ष प्रकाश का प्रतीक है। प्रकाश से हम आगे बढ़ सकते हैं। प्रकाश को प्राप्त करने के लिए भीतर के कषायों को धीरे-धीरे मंद करना होगा। पापवृत्ति को दूर करना होगा। परमपूज्य आचार्यप्रवर का प्रवचन हमें प्रकाश को दिखाने वाला होता है। पूज्यप्रवर के स्वागत में स्थानीय स्वागताध्यक्ष सुरेश छाजेड़, तेरापंथ महिला मंडल, उपासक मिश्रीमल चौधरी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।