अध्यात्म के द्वारा विकारों को कम करने का हो प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

अध्यात्म के द्वारा विकारों को कम करने का हो प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण

घाटकोपर, 3 जनवरी, 2024
वृहत्तर मुंबई का भ्रमण करते हुए तेरापंथ के एकादशम अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी आज प्रातः पंचदिवसीय प्रवास हेतु घाटकोपर पधारे। पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए पूज्यप्रवर ने फरमाया कि आदमी के भीतर अनेक वृत्तियाँ होती हैं। दुर्वृत्तियाँ होती हैं, तो सद्वृत्तियाँ भी होती हैं। क्रोध, लोभ, राग-द्वेष, घृणा आदि दुष्वृत्तियाँ होती हैं। सरलता, संतोष-मैत्री आदि सद्प्रवृत्तियाँ भी देखने को मिल सकती हैं। दुष्प्रवृत्तियाँ असत् हैं, त्याज्य हैं, ये दुःख की कारण भूत भी हैं। जितनी सद्वृत्तियाँ हैं, ये वृत्तियाँ आदमी को सुख देने वाली हैं।
हमारे जीवन में शरीर है, तो आत्मा भी मानी गई है। शरीर और आत्मा इन दो तत्त्वों का योग हमारा जीवन है। शरीर, आत्मा है तो साथ में मन और वाणी भी है। आत्मा के साथ दुर्वृत्तियाँ-सुवृत्तियाँ जुड़ी हुई हैं। हमारी आत्मा अनादिकालीन है, हमेशा थी और रहेगी। अनंत जन्म-मरण हमारी आत्मा ने कर लिए हैं। आगे भी कितने जन्म-मरण होंगे पता नहीं। कई आत्माएँ अनंत जन्म-मरण कर मनुष्य भव प्राप्त करके, साधना करके मोक्ष को प्राप्त हो जाती हैं, जन्म-मरण के चक्र से छुटकारा पा लेती हैं। शरीर का तो नाश हो जाता है, पर आत्मा सदैव शाश्वत रहती है। हमारी आत्मा में अनेक संस्कार हैं। हमारी आत्मा में जो दुर्वृत्तियाँ हैं, कषाय हैं, इनके कारण से आगे से आगे जन्म-मरण होते रहते हैं। जन्म-मरण सीमित हो जाए तो अच्छी बात है। हम अपनी दुवृर्त्तियों को कम करने का प्रयास करें।
लोभ की वृत्ति दुर्वृत्तियों की राजा है। सोने-चाँदी के पर्वत भी मिल जाएँ तो भी संतोष नहीं होता। इच्छाएँ आकाश के समान अनंत हैं, अंतहीन हैं। महानगरी की चकाचौंध में आदमी भ्रमित हो आत्मा के स्वभाव से दूर हो जाए, बाह्य भावों में रच-पच जाए। इससे भीतरी शांति समाप्त हो सकती है। भौतिकता के जगत में आध्यात्मिकता हमारे साथ रहे। पद्म की तरह भौतिकता में भी अध्यात्मरूपी आदमी निर्लिप्त रह सकता है। लालच और लाभ के कारण आदमी अनेक पाप कर सकता है। लोभ पाप का जनक है। जो व्यक्ति आत्मा के आसपास रहता है, उसकी लोभ चेतना कमजोर रह सकती है, समाप्त हो सकती है। परम शांति पाना है, तो हमें अध्यात्म का सहारा लेना ही होगा। दूसरा कोई उपाय नहीं है। पदार्थों से सुविधा मिल सकती है, पर अध्यात्म की साधना से शांति मिल
सकती है।
अध्यात्म का मार्ग महापुरुषों ने बताया है। हम जैन शास्त्रों को देखें कितनी-कितनी अध्यात्म की बातें बताई गई हैं और धर्मग्रंथों में भी हो सकती है। आज बौद्ध धर्म गुरु भी आए हैं। महावीर और बुद्ध समसामयिक पुरुष थे। महापुरुष अच्छा-सच्चा रास्ता बताते हैं, वो कहीं पर भी मिले उसको लेने में अच्छाई ही है। अध्यात्म, व्रत और ध्यान के द्वारा हम अपने विकारों को कम करने का प्रयास करें, भीतर में रहने का प्रयास करें, यह काम्य है।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि जो व्यक्ति शाश्वत सुखों को प्राप्त करना चाहता है वह भौतिक संसाधनों में नहीं उलझता। शाश्वत सुखों को प्राप्त करने के लिए धर्म को समझना होगा। धर्म को अपने जीवन में उतारने का प्रयास करना होगा। धर्म तो उत्कृष्ट मंगल है, उसके साधन हैं, अहिंसा-संयम और तप। त्याग-धर्म है, भोग अधर्म है। संयम धर्म है, असंयम अधर्म है। भोग सुख का साधन बन सकता है, पर सिद्धियाँ नहीं दे सकता।
बौद्ध गुरु राहुल बोधि जी ने पूज्यप्रवर का स्वागत करते हुए कहा कि आप लोगों को सुख और शांति का मार्ग बता रहे हैं। आपका जीवन ही त्यागवृत्ति है। गुरुदेव तुलसी का हमारे गुरुजी से अच्छा संबंध था। गुरु वचन आत्मा के अंधकार को दूर कर आत्मा में प्रकाश का अनुभव कराने वाले होते हैं। पूज्यप्रवर के स्वागत में स्थानीय विधायक पराग भाई शाह, स्वागताध्यक्ष कांता तातेड़, शर्मिला तातेड़, तेरापंथ सभा अध्यक्ष शांतिलाल बाफना, विपिन भाई सिंघवी, मुकेश भाई, तेरापंथ समाज, घाटकोपर ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।