आत्म कल्याण करने का महान रास्ता है संथारा

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आत्म कल्याण करने का महान रास्ता है संथारा

चंगड़ा बांधा (बंगाल)।
संथारा साधक अभयराज सुराणा के निवास पर मुनि प्रशांत कुमार जी ने कहा कि भगवान महावीर स्वामी ने धर्म के दस द्वार बताए। उनके माध्यम से व्यक्ति धर्म में प्रवेश करता है। हम अपने जीवन में क्षमा का विकास करें। लाखों-करोड़ों वर्षों से क्षमा का यह सूत्र चला आ रहा है। भगवान महावीर स्वामी ने कहा कि हम इसे जीवन व्यवहार में लाएँ तभी आत्मा निःशल्य बनेगी। किसी के प्रति वैर का भाव न रखें। अभयराज सुराणा ने हिम्मत का कार्य किया है। संथारा आत्मकल्याण करने का महान रास्ता है। संथरा आत्मा को चमकाने वाला है। संथारा करने वाला भय, निराशा, क्रोध से मुक्त होकर आत्मा को निर्मल, पवित्र बनाता है। आत्मा उच्च भाव मेें होती है। खाने-पीने की आसक्ति को छोड़कर परमात्मा के साथ सीधा संबंध जुड़ जाता है। जीवन में संथारा भी सौभाग्य से आता है।
मुनि कुमुद कुमार जी ने कहा कि श्रावक के तीन मनोरथ होते हैं। प्रत्येक श्रावक प्रतिदिन इनका आत्मचिंतन करता रहे। श्रावक जीवन में विवेक, जागरूकता होनी जरूरी हैं। करणीय को अपनाकर आध्यात्मिकता का जीवन जीएँ। संथारा करने वाले अभयराज शरीर, पदार्थ एवं पारिवारिक जनों की आसक्ति को छोड़कर आत्मा के साथ जुड़े हुए हैं। उनकी चेतना जागृत बनी रहे। आत्म कल्याण की ओर आगे बढ़ते रहें। आत्मा के साथ जुड़ाव हो जाए तो आत्मा भिन्न, शरीर भिन्न का जो बोध होता है, उससे कितने ही कर्मों का क्षय हो जाता है। विजय सिंह बरड़िया, सिंपल बरड़िया, बीणा सुराणा ने विचारों की अभिव्यक्ति दी।