सत्संगत से उत्थान और कल्याण की दिशा होती है प्रशस्त : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

सत्संगत से उत्थान और कल्याण की दिशा होती है प्रशस्त : आचार्यश्री महाश्रमण

मुलुंड, 15 जनवरी, 2024
मुलंुड प्रवास के दूसरे दिन अणुव्रत यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने पावन प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि सत्संगत शब्द चलता है। हमारे यहाँ रात्रि के कार्यक्रमों को भी इन वर्षों में सत्संगत के रूप में अभिहीत किया जाता है। सत्संगत यानी साधुजनों की संगति करना, अच्छी संगति करना। श्रमण-माहनों की उपासना करना, सत्संगत हो जाता है। अच्छे साहित्य को पढ़ना भी पठन रूप में सत्संगत हो सकती है।
प्रश्न होता है कि सत्संगति क्यों करनी चाहिए? सत्संगति से, साधुओं की संगति से पहला लाभ है कि सुनने को कुछ मिल जाए। श्रवण भी ज्ञान का अच्छा माध्यम बनता है। दशवेआलियं में कहा गया है-सुनकर व्यक्ति कल्याण को समझता है और सुनकर व्यक्ति पाप को भी समझ लेता है। ज्ञान से विज्ञान होता है, हेय-गेय का विवेचन हो जाता है। विशेष ज्ञान से विवेक होने से व्यक्ति पापों को छोड़ता है, त्याग करता है। त्याग करने से संयम होता है। संयम होने से आश्रव रूपी कर्म आने का द्वार बंद हो जाता है। फिर तपस्या से व्यवदान-निर्जरण होता है। आगे बढ़ते-बढ़ते अक्रिया की स्थिति और उसके बाद सिद्धि-निर्वाण की प्राप्ति हो जाती है। इस प्रकार साधुओं की पर्युपासना से बड़ा लाभ प्राप्त हो सकता है।
आधुनिक टेक्नॉलोजी ने तो श्रवण को बहुत आसान बना दिया है। श्रवण के भी अनेकों लाभ हो सकते हैं-सावद्य कार्यों से बचा जा सकता है, सामायिक हो तो त्याग रूपी लाभ भी हो सकता है। सुनने से व्यक्ति नई जानकारियाँ प्राप्त कर सकता है, अनेक समस्याओं का समाधान हो सकता है। सुनते-सुनते जीवन में परिवर्तन भी आ सकता है। जीवन की दशा और दिशा बदल सकती है। सुनते-सुनते वैराग्य भाव भी आ सकता है। अच्छा श्रोता एक दिन अच्छा वक्ता भी बन सकता है। हम सलक्ष्य प्रवचन सुन जीवन में उतारने का प्रयास करें।
साधुओं के तो दर्शन भी अपने आपमें पुण्य हैं। साधुता की मुख्य कसौटी सम्यक् ज्ञान, सम्यक्त्व और आचार है। विद्वता, वक्तृत्व आदि ‘सोने पे सुहागा’ वाली बात हो सकती है। साधु ज्ञानवान हो न हो, पर आचारवान तो होना ही चाहिए। साधुता की सुरक्षा करना साधु का प्रथम कर्तव्य बताया गया है। सत्संगत से उत्थान और कल्याण की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करें।
स्थानकवासी संप्रदाय की साध्वी मीरांबाई जी और साध्वी कृष्णाबाई जी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में सकल मुलुंड समाज से विजय पटावरी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों एवं तेरापंथ कन्या मंडल ने भावपूर्ण प्रस्तुति दी। तेयुप सदस्यों ने गीत का संगान किया। जैविभा से सलिल लोढ़ा ने भी अपनी भावना अभिव्यक्त की। ज्ञानशाला ज्ञानार्थी नव्यांग चोरड़िया ने पूज्यप्रवर के समक्ष अपनी कलाकृति प्रस्तुत की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।