सत्यान्वेषण और मैत्रीपूर्ण व्यवहार हो जीवन में : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

सत्यान्वेषण और मैत्रीपूर्ण व्यवहार हो जीवन में : आचार्यश्री महाश्रमण

सरवली-कल्याण, 22 जनवरी, 2024

अयोध्या में नवनिर्मित श्रीराम मंदिर का उद्घाटन हुआ है। श्री राम त्रिषष्टि शलाका पुरुषों में आठवें बलदेव के रूप में विख्यात हैं। उनके जीवन से आध्यात्मिकता और वीतरागता की प्रेरणा प्राप्त होती रहे।

तेरापंथ के राम, पुरुषोत्तम आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मर्यादा पुरुषोत्तम समवसरण में नाकोड़ा कर्ण-बधिर विद्यालय-सरवली के प्रांगण में पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि आदमी को अपने जीवन में यथार्थ का पथ स्वीकार करना चाहिए। यथार्थविद् और यथार्थवादी बन जाना बहुत बड़ी बात हो जाती है।
एक शब्द है-आप्त। जो यथार्थ का वेत्ता है, यथार्थ-भाषी है, वह आप्त होता है। सच्चाई को पाने के लिए आदमी को खोजी-अन्वेषक बनना होता है। इससे सच्चाई उजागर हो सकती है। आत्मना स्वयं सत्य का अन्वेषण करें। विज्ञान के द्वारा भी कई यथार्थ सामने आ सकते हैं। आदमी जो बोले, बात रखे वह बात यथार्थ हो। आदमी को झूठ बोलने, छल-कपट करने से बचना चाहिए। साधु के तो दूसरा महाव्रत सर्व मृषावाद विरमण होता है, जिसके अंतर्गत झूठ न बोलने का संकल्प रहता है। गृहस्थ भी मिथ्या भाषण से बचने का प्रयास करें। दुराग्रह से जो जकड़ गया है, उसके लिए सच्चाई को उजागर करना मुश्किल है। भीतर की गहराई में जाने से जो सच्चाईयाँ मिलती हैं, वे संभवतः ग्रंथों से नहीं मिल सकती। केवलज्ञान जिसे हो गया तो उसके लिए तो सारी सच्चाईयाँ एकदम सामने आ गई। केवलज्ञानी के लिए कोई बात अज्ञात नहीं है। केवलज्ञानी ने जो प्रवेदित किया है, वह सत्य और निशंक होता है।
यह खोज का विषय है कि मैं कौन हूँ? मेरे भीतर है क्या? पूर्वजन्म व पुनर्जन्म है या नहीं? इनमें भी अनाग्रह भाव से ध्यान दिया जाए। पुनर्जन्म है, इस सिद्धांत को ध्यान में रखकर अपनी जीवनशैली का निर्धारण करना चाहिए। पापों से बचना चाहिए। प्राणियों के प्रति मैत्री का भाव रहे। सबके प्रति मंगल और सद्भाव रहे। सच्चाई को पाने की साधना करनी है, तो दूसरों की सच्ची बात का खंडन नहीं करना चाहिए। हम जीवन में सत्यान्वेषण और मैत्रीपूर्ण व्यवहार करने का प्रयास करें।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि जो व्यक्ति अच्छा इंसान बनना चाहता है वो अपने जीवन में चार रक्षक-सत्य, प्रेम, न्याय और त्याग को अपनाए। हमें पूज्यप्रवर में ये चारों रक्षक दिखाई देते हैं। इसी कारण आप जहाँ-जहाँ पधारते हैं, लोग आपको सम्मान देते हैं। इनसे हमारा जीवन भी आदर्श बन सकता है। पूज्यप्रवर के स्वागत में स्कूल की प्रिंसिपल अश्विनी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। विद्यालय के कर्ण-बधिर बच्चों ने सुंदर प्रस्तुति दी। स्कूल संस्थान के संस्थापक ट्रस्टी अनिल जैन ने सभी का आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।