आत्मा ही परम ऐश्वर्य संपन्न ईश्वर है : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

आत्मा ही परम ऐश्वर्य संपन्न ईश्वर है : आचार्यश्री महाश्रमण

भिवंडी, 21 जनवरी, 2024
मुंबई की टेक्सटाइल सिटी भिवंडी में आज तेरापंथ के एकादशम अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी का पावन पदार्पण हुआ। विशाल जनमेदिनी को अध्यात्म का रसास्वाद कराते हुए अहिंसा के अग्रदूत ने फरमाया कि जैन दर्शन में अनेक वाद-सिद्धांत हैं। आत्मवाद जैन दर्शन का एक प्रमुख सिद्धांत है, जहाँ आत्मा को शाश्वत बताया गया है। आत्मा कभी पैदा हुई है, यह जैन दर्शन नहीं स्वीकार करता। जैन दर्शन के अनुसार तो आत्मा हमेशा ही थी, है और हमेशा ही रहेगी।
जो शाश्वत है, उसकी उत्पत्ति नहीं और विनाश भी नहीं होता। अनंत-अनंत आत्माएँ हमारे इस लोक-सृष्टि में हैं। न तो कभी एक नई आत्मा बढ़ती है और न ही एक आत्मा कभी घटती है। जितनी आत्माएँ अनंत काल पहले थी, उतनी आत्माएँ आज हैं और अनंत काल के बाद भी उतनी आत्माएँ दुनिया में रहेंगी। आत्माएँ संसार से मोक्ष में जा सकती हैं, अव्यवहार राशि से व्यवहार राशि में आ सकती हैं, पर नई आत्मा पैदा नहीं होती।
आत्मवाद आस्तिकवाद का प्रमुख सिद्धांत है। जो पूर्वजन्म या पुनर्जन्म, स्वर्ग-नरक आदि को नहीं मानता वह नास्तिकवादी है। ईश्वर कर्तृत्व को जैन दर्शन नहीं मानता। जैन दर्शन में आत्मा ही ऐश्वर्य संपन्न ईश्वर रूप में है, आत्मा ही सुख-दुःख की कर्ता है। जैन दर्शन पूर्वजन्म और पुनर्जन्म को स्वीकार करता है। मतिज्ञान के एक भेद जाति स्मृति से कई जीवों को पूर्व जन्म की स्मृति हो सकती है। मृत्यु और जन्म के समय ऐसी स्थितियाँ बनती हैं जिसमें पिछले जीवन की स्मृतियों पर पर्दा आ जाता है। जाति स्मृति समनस्क भवों का ही हो सकता है। तीर्थंकर आदि दूसरों से सुनकर भी पूर्व जन्म की जानकारी हो सकती है।
कर्मवाद का सिद्धांत भी जैन दर्शन में है। आत्मा कर्मों का बंधन करती है, तो फल भी भोगती है। कर्मों का निर्जरण भी हो सकता है। पूर्वकृत कर्मों का वेदन करने से या तपस्या से कर्म का निर्जरण करने से छुटकारा मिल सकता है। आत्मा ही कर्मों की कर्ता और भोक्ता भी है। हमें जीवन में बुरे कार्यों-पापों से बचना चाहिए। ताकि बुरे फल नहीं भोगना पड़े। जैन धर्म में 18 पाप बताए गए हैंµप्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह, क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष, कलह, अभ्याख्यान, पैशुन्य, परपरिवाद, रति-अरति, मायामृषा, मिथ्यादर्शन शल्यµइनसे बचने का प्रयास होना चाहिए।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि कुछ लोग विद्वान होते हैं, कुछ योगी होते हैं, कुछ लोगों के पास प्रखर प्रतिभा होती है, किसी के पास शौर्य होता है, किसी का आचरण अच्छा होता है, कोई समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त करता है, पर वे लोग विरल होते हैं, जो अपनी शक्ति को परोपकार में लगाते हैं। परोपकर वह व्यक्ति कर सकता है, जो अहिंसा-चेतना से ओतप्रोत होता है। आचार्यप्रवर भगवान महावीर के सिद्धांतों में प्रगाढ़ आस्था रखते हैं। हम अहिंसा की गहराई में जाकर मन से अहिंसक बने। आचार्यप्रवर के जीवन में करुणा की चेतना जागृत है। परोपकार करने वाला सबको प्रिय लगता है।
परमपूज्य के स्वागत में यहाँ के विधायक महेश प्रभाकर चौगुले, पूर्व विधायक रईस शेख, स्थानीय सभाध्यक्ष राजेंद्र बाफना, समस्त जैन महासंघ से मीठालाल जैन ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। ज्ञानशाला, तेममं एवं तेयुप की सुंदर प्रस्तुति हुई। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।