धर्म साधना से बढ़ें परम सुख के पथ पर : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

धर्म साधना से बढ़ें परम सुख के पथ पर : आचार्यश्री महाश्रमण

उल्हासनगर, 23 जनवरी, 2024
मुंबई के औद्योगिक क्षेत्र उल्हासनगर में महायोगी आचार्यप्रवर ने मंगलपावन प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि प्रश्न होता है कि इस संसार में सुखी कैसे बना जा सकता है, रहा जा सकता है। शास्त्र में सुखी रहने के संदर्भ में बताया गया है कि सुखी बनने के लिए अपने आपको तपाओ, सुकुमारता को छोड़ो। आदमी में कुछ कठोर जीवन जीने का सामर्थ्य भी हो जाए। प्रतिकूलता को आसानी से झेलने की ताकत हो जाए। कठिनाई से ज्यादा डरो मत, भागो मत, जागो।
थोड़ी सी प्रतिकूलता के कारण व्यक्ति कार्य को करना छोड़ देता है, तो कितना ज्यादा नुकसान हो जाता है। लाभ से वंचित रह जाता है। अनेक प्रसंगों में हम थोड़ी कठिनाई को स्वीकार करने का मनोभाव रख लें तो वह ज्यादा परेशान न भी करे। मन में धैर्य और शांति रहे। कठोरता को स्वीकार करो, सुकुमारता को छोड़ो तो सुखी बन सकोगे।
दूसरी बात कामनाएँ सीमित
रखो। ज्यादा भौतिक इच्छा रखने से आदमी दुखी बन सकता है। तीसरी बातµद्वेष-ईर्ष्या को छोड़ो। किसी के साथ ईर्ष्या मत रखो। दूसरों को सुखी देखकर हमें दुखी नहीं बनना चाहिए तो दूसरों को दुखी देखकर हमें सुखी नहीं बनना चाहिए। चौथी बात बताई कि राग भाव को छोड़ो। राग से दुःख हो सकता है। राग के समान दुःख नहीं है तो त्याग के समान सुख नहीं है। त्यागी सुखी बन सकता है।
हमें महत्त्वपूर्ण मानव जीवन मिला है, इसका लाभ उठाना चाहिए। शरीर और आत्मा अलग है। हम चिंतन करें कि शरीर के लिए कितना समय लगाते हैं और आत्मा के लिए कितना समय लगाते हैं। 24 घंटों में 2 घड़ी (48 मिनट) तो कम से कम आत्मा के लिए, धर्म के लिए लगाने का प्रयास करें। जप, ध्यान, स्वाध्याय या आत्म-चिंतन में कुछ समय लगाएँ। 2 घड़ी का एक मुहूर्त होता है, तो सामायिक भी हो सकती है। इससे हम सुखी बन सकते हैं।
गृहस्थ निंदनीय कार्यों को करने से बचें। पाप कर्म के कार्य न हो जाएँ। उम्र 75 के आसपास हो जाए तो ज्यादा से ज्यादा समय में धर्म साधना करने का प्रयास हो। अच्छे कार्यों से हम परम सुख की ओर आगे बढ़ सकते हैं।
आज उल्हासनगर आना हुआ है। नारायण भाई की तरह जीवन में परिवर्तन आ सकता है। संतों की संगत जीवन की दशा और दिशा को बदलने में कामयाब हो सकती है। परिवारों में अच्छे संस्कार बने रहें।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि सिंधी व्यक्तियों ने भी जैन धर्म को स्वीकारा जो आजादी के समय शरणार्थी थे। नारायण भाई ने अनेक लोगों को समझाकर जैन बनाया। संतों की संगत से जीवन में रूपांतरण आ सकता है। उल्हासनगर इसका एक उदाहरण है। सत्संगत मिलना दुर्लभ है, इससे हमारा जीवन अमूल्य बन जाता है।
पूज्यप्रवर के स्वागत में उल्हासनगर सभा अध्यक्ष जीतूभाई, महिला मंडल, जीतमल चोरड़िया, ज्ञानशाला प्रशिक्षिकाओं ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। ज्ञानशाला ज्ञानार्थियों द्वारा नारायण भाई के जीवन पर सुंदर प्रस्तुति हुई।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।