चेतना रूपी पात्र में होता रहे धर्म का संचय : आचार्यश्री महाश्रमण
ठाणा, 20 जनवरी, 2024
ठाणे प्रवास के अंतिम दिन आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि आदमी के जीवन में द्वंद्वात्मक स्थितियाँ समुत्पन्न हो सकती हैं। जैसे लाभ-अलाभ, सुख-दुःख, जीवन-मरण, निंदा-प्रशंसा, मान-अपमान, ऐसी अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियाँ हमारे जीवन में आ सकती हैं। सामान्य आदमी हो या महापुरुष उनके जीवन में भी विरोधी परिस्थितियाँ स्थान ग्रहण कर सकती हैं। अध्यात्म की साधना जन्म-मरण से मुक्ति की साधना होती है, वहाँ समता रखना साधना होती है। अनुकूलता में ज्यादा खुशी न हो और प्रतिकूलता में मन मुरझाए नहीं, मध्यस्थता की स्थिति में रहना चाहिए।
साधु को भोजन मिल जाए तो अच्छी बात है। कभी भोजन न मिले तो भी ठीक है। न मिले तो तपस्या का लाभ हो जाता है, मिले तो शरीर को पोषण मिल जाएगा। साधु हर स्थिति में समता रखें। जैन दर्शन में हमें समता-धर्म की बात मिलती है। आदमी के मन में किसी प्रकार का भय न हो। निर्भय आदमी सुखी रह सकता है। व्यक्ति को परम सुखी बनने के लिए समता धर्म की शरण में जाना चाहिए। सबसे कम उम्र में आचार्य बनने वाले, लंबे आचार्यकाल को प्राप्त होने वाले और लंबी यात्राएँ करने वाले गुरुदेव तुलसी हुए हैं। सम्मान भी उनको मिला तो उनका विरोध भी हुआ। गृहस्थ भी हर स्थिति में समता भाव रखे। कई बार एक साथ कई खराब परिस्थितियाँ आ सकती हैं पर समता की साधना से परिस्थितियाँ हमें प्रभावित नहीं कर पाती। सहज आनंद में रहने का प्रयास करें।
मानव जीवन हमें प्राप्त है। हम त्याग, तपस्या, संयम से अध्यात्म की साधना करें, धर्म का संचय करें। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में तेयुप ठाणे, सिटी सेंट्रल, वागले एवं कोपरी के सदस्यों ने समूह गीत की प्रस्तुति दी। ज्ञानशाला की सुंदर प्रस्तुति हुई। ज्ञानार्थियों ने पूज्यप्रवर से संकल्प स्वीकार किए। टीपीएफ अध्यक्ष कमलेश रांका ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। अणुव्रत समिति सदस्यों ने गीत की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।