शांति, क्षमा, सेवा और अनासक्ति में वर्धमान बनें : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

शांति, क्षमा, सेवा और अनासक्ति में वर्धमान बनें : आचार्यश्री महाश्रमण

28 जनवरी, 2024
त्रिदिवसीय वर्धमान महोत्सव व डोंबीवली प्रवास के अंतिम दिन तेरापंथ धर्मसंघ के दैदीप्यमान नक्षत्र आचार्यश्री महाश्रमण जी ने धर्मसंघ को वर्धमानता के लिए पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि अपने जीवन में हम अच्छे संदर्भों में वर्धमान रहें, यह हमारी मनोभिलाषा रहनी चाहिए। गृहस्थों के लिए भी वर्धमान रहने की बात होती है, साधु जगत और समणियों के लिए भी वर्धमानता की बात है। गृहस्थों में भौतिक वर्धमानता की अभिलाषा होती है, वह आवश्यक भी हो सकती है, परंतु उन्हें आध्यात्मिक वर्धमानता की कांक्षा भी रखनी चाहिए। श्रावक-श्राविकाएँ भी तीर्थ चतुष्टय के अंग हैं, उनकी भी धार्मिक आराधना में वर्धमानता होती रहनी चाहिए। टाइम मैनेजमेंट भी वर्धमानता में सहायक तत्त्व बन सकता है। समय नियमितता जीवन में रहनी चाहिए। दिनचर्या अच्छी होगी तो कार्य भी अच्छा होगा।
दो प्रकार के कार्य होते हैं-एक व्यक्तिगत, दूसरा सामूहिक। सामूहिक कार्य में समय की नियमितता रहे। आगमों में सूत्र आते हैं-काले कालं समायरे-समय पर काम करो, खणं जाणाहि पंडिए-क्षण को, अवसर को पहचानो, ये समय नियोजन की प्रेरणा देते हैं। समय पर काम करें, अवसर को पहचानें और उसका लाभ उठाने का प्रयास करें। यह हमारी जागरूकता का प्रमाण बन सकता है। हमें जीवन में वर्धमान होना है, हम कषायमंदता की ओर आगे बढ़ें। हमारे क्रोध, मान, माया और लोभ पतले पड़ें। हम क्षमा में वर्धमान बनें। जीवन में सहिष्णुता और धैर्य होना चाहिए। तकलीफ आ सकती है, पर झटपट अधीर नहीं बनना चाहिए। शारीरिक प्रतिकूलता को भी सहन करना चाहिए। मानसिक दृष्टि से भी सहिष्णुता रहे। अपनी आलोचना, निंदा का जवाब हम अपने अच्छे कार्यों से दें।
सारी अनुकूलताएँ जीवन में मिलती रहें यह जरूरी नहीं। कहीं सम्मान तो कहीं अपमान भी मिल सकता है। पर हम मानसिक शांति रखें। हमें शांति में वर्धमान होना चाहिए। मन में अनासक्ति का भाव रहे। कमल की तरह संसार में रहते हुए भी निर्लिप्त रहने का प्रयास करे। हमारा धर्मसंघ आचार्य भिक्षु से संबंधित है। लगभग 264 वर्ष होने जा रहे हैं। आचार्य भिक्षु के इतिहास को देखें, कितने कष्ट उन्होंने झेले, फिर भी वे समभाव में रहें। आचार्य तुलसी के जीवन में कितने विरोध के प्रसंग आए, उन्होंने भी प्रतिकूल स्थितियों को समता और सहिष्णुता से सहन किया। प्रतिकूल परिस्थितियाँ आ जाएँ तो हम समता, सहिष्णुता का भाव रखें, अनासक्ति का भाव रखें। आसक्ति से व्यक्ति को बचना चाहिए, साधु को गृहस्थों से कितनी उपयोगी सामग्री प्राप्त होती है, उनमें भी चारित्रात्माओं को अनासक्ति की भावना रखनी चाहिए। संतोष परम सुख है, साधु अल्पेच्छ रहे, अपने आपको अभिसंतुष्ट रखें।
साधु की निर्लोभता की साधना तो होनी ही चाहिए। समणियों में भी आसक्ति, संतोष का भाव रहना चाहिए। गृहस्थों में भी इच्छा परिमाण, भोग-उपभोग के प्रति जागरूकता रहे। संघ, संघपति और संविधान के प्रति निष्ठापूर्ण जागरूकता रहे। हम अपनी आत्मा, संघ-संगठन व स्वास्थ्य के प्रति भी जागरूक रहें। हमारे साधु-साध्वियाँ जो चाहें बहिर्विहार में हों या गुरुकुलवास में हो वर्धमानता का प्रयास करते रहें। सेवा की अपेक्षा हो तो तैयार रहें। दिमागी सेवा देना भी बहुत महत्त्वपूर्ण है। शारीरिक सेवा को देने के लिए तैयार रहें। physical और Intellectual दोनों प्रकार की सेवा देने का प्रयास करें। सेवा केंद्रों में वृद्ध-ग्लानों की सेवा करना अच्छा कार्य है। इससे निर्जरा और पुण्य बंध दोनों हो सकते हैं। सेवा में वर्धमान रहे। सेवा करने वाला ही मेवा प्राप्त कर सकता है।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि ऊँचाई तभी उपयोगी होती है जब उसकी जड़ें मजबूत होती हैं। वृक्ष विशालता तभी प्राप्त करता है जब उसकी जड़ें मजबूत होती हैं, और उन जड़ों को सम्यक् सिंचन मिलता है। वृक्ष की जड़ों को माली से सिंचन मिलता है और संगठन का विस्तार तभी होता है जब संगठन की जड़ों को भी सिंचित किया जाता है। तेरापंथ धर्मसंघ की यशस्वी आचार्य परंपरा ने इस धर्मसंघ को सिंचित किया है और वर्धमान बनाया है। इसके सदस्यों में गणनिष्ठा, गणीनिष्ठा, आचार निष्ठा, मर्यादा निष्ठा और अनुशासन निष्ठा है। इसी के कारण धर्मसंघ वर्धमानता की ओर अग्रसर हो रहा है। जिस संघ में अच्छे संस्कारों का बीजारोपण होता है, वह संघ प्रवर्धमान बनता है। तेरापंथ धर्मसंघ में प्रारंभ से ही साधु-साध्वियों में अच्छे संस्कारों का बीजारोपण किया जाता है। तेरापंथ धर्मसंघ की एक मर्यादा है कि मैं अपना शिष्य-शिष्या नहीं बनाऊँगा। चतुर्दशी की हाजरी के द्वारा भी साधु-साध्वियों को संस्कारों की प्रेरणा प्राप्त होती है। यदि कोई सदस्य मार्ग से च्युत भी हो जाता है तो ये संस्कार उसे पुनः मार्ग पर लाने में सहयोगी बनते हैं। संघ की प्रवर्धमानता का एक हेतु है-विनम्रता। इन स्वस्थ परंपराओं के कारण हमारा धर्मसंघ प्रवर्धमान हो रहा है। वर्धमान महोत्सव के उपलक्ष्य में मुनिवृंदों ने गीत की प्रस्तुति दी। शिव सेना नगर प्रमुख राजेश मोरे ने पूज्यप्रवर के दर्शन किए एवं अपनी भावना अभिव्यक्त की।
मुनि अनुशासन कुमार जी एवं मुनि मृदुकुमार जी ने भी पूज्यप्रवर के प्रति अभिवंदना अभिव्यक्त की।
जिम खाना के बच्चों ने प्रस्तुति दी। तनुश्री प्रह्लाद भोंसले ने अपनी अभिव्यक्ति दी। ज्ञान मंदिर स्कूल के विद्यार्थियों ने गीत की प्रस्तुति दी। मदन कोठारी ने अपनी कृति पूज्यप्रवर को अर्पित की। डोंबीवली टीपीएफ से रवि कुमट ने पूज्यप्रवर की अभिवंदना में अपनी भावना अभिव्यक्त की।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।