संख्या, गुणवत्ता और ज्ञान का विकास होता रहे : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

संख्या, गुणवत्ता और ज्ञान का विकास होता रहे : आचार्यश्री महाश्रमण

युगप्रधान आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी द्वारा संगरूर, पंजाब में हुई वर्धमान महोत्सव की स्थापना

डोंबीवली, 26 जनवरी, 2024
तेरापंथ के महानायक, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण जी ने त्रिदिवसीय वर्धमान महोत्सव के प्रथम दिन आगम वाणी का रसास्वाद करवाते हुए फरमाया कि वासुदेव ने अरिष्टनेमि के प्रति मंगलभावना व्यक्त की। वर्धमान बनो। तीन शब्द मिलते हैं- वर्धमान, हीयमान और अवस्थित वर्धमान यानी बढ़ता हुआ, हीयमान यानी घटता हुआ और अवस्थित यानी न घटता हुआ, न बढ़ता हुआ। पिछले कई वर्षों से मर्यादा महोत्सव की पृष्ठभूमि के रूप में वर्धमान महोत्सव आयोजित हो रहा है।
वर्धमान महोत्सव के नाम को तीन रूपों में व्याख्यायित किया जा सकता है। पहला, जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर का नाम वर्धमान है। अतः यह सहज ही भगवान महावीर के नाम से युक्त हो जाता है। वर्धमान का दूसरा अर्थ है-बढ़ता हुआ। मर्यादा महोत्सव से पहले के दिनों में गुरुकुलवास में चारित्रात्माओं की संख्या बढ़ जाती है, वर्धमान हो जाती है, तो यह संख्या वृद्धि के संदर्भ में वर्धमान महोत्सव हो जाता है। तीसरा संदर्भ है कि धर्मसंघ में साधु-साध्वियों, समणियों की संख्या बढ़े, श्रावक-श्राविकाओं की संख्या बढ़े और संख्या के साथ सबकी गुणवत्ता भी बढ़े।
सन् 2006 में संगरूर, पंजाब में आचार्य महाप्रज्ञ जी ने वर्धमान महोत्सव की स्थापना की थी। संख्या वृद्धि अच्छी बात है, गुणात्मक वर्धमानता बहुत बड़ी बात है। हम ज्ञान के क्षेत्र में विकास करने का प्रयास करें। हमारे धर्मसंघ में पीएचडी, एमबीए, सीए, सीएस आदि डिग्री धारी चारित्रात्माएँ हैं, कई इस दिशा में वर्धमान हैं। परंतु ज्ञान को बहुत अवकाश है। महाप्रज्ञ श्रुताराधना भी ज्ञान प्राप्ति का माध्यम है। अनेकों साधु-साध्वियाँ आगम कार्य, भिक्षु वाङ्मय आदि के कार्य में भी संलग्न हैं। मुनि महेंद्र कुमार जी स्वामी के पास कोई डिग्री तो नहीं थी, पर ज्ञान के क्षेत्र में विशिष्ट प्रतिभा संपन्न थे। तेरापंथ के इतिहास की अपूर्व घटना है कि दो साध्वियाँ वाईस चांसलन भी रही हुई हैं। समणियाँ भी जैन विश्व भारती एवं विदेशों में भी पढ़ाती हैं।
परमपूज्य आचार्य भिक्षु के पास कोई डिग्री नहीं थी पर उनका आगमों का ज्ञान, उनकी प्रज्ञा, मेधा, बेजोड़ थी। श्रीमद् जयाचार्य के राजस्थानी साहित्य का कोई मूल्यांकन करे तो उन्हें तो कितनी बार डॉक्टरेट मिल सकती है। गुरुदेव तुलसी का संस्कृत का ज्ञान, तत्त्वज्ञान, तेरापंथ के सिद्धांतों का ज्ञान, राग-रागिनियों का ज्ञान भी असीम था। आचार्य महाप्रज्ञ जी भी किसी कॉलेज में नहीं पढ़े पर उनकी विद्वता इतनी थी कि अनेकों विद्यालयों, विश्वविद्यालयों के अध्यापक-प्राध्यापक भी उनसे ज्ञान प्राप्त कर सकते थे। हम स्वाध्याय करते रहें, आगमों का स्वाध्याय करें, कंठस्थ करें, हमारे ज्ञान का विकास होता रहना चाहिए।
साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि परमपूज्य आचार्य भिक्षु पथ सृष्टा थे जिन्होंने जिनवणी पर आधारित एक पंथ का निर्माण किया-तेरापंथ। उन्होंने अनुस्रोत को छोड़ प्रतिस्रोत में बढ़ने का साहस किया, उस साहस की परिणति है-तेरापंथ। तेरापंथ जिनशासन का अद्भुत धर्मसंघ है। यह वर्धमान है, प्राणवान है, प्रगति के शिखरों पर चढ़ रहा है और दूसरों के लिए पथदर्शक बन रहा है। आज्ञा और अनुशासन ही जिनशासन का आधार है, इनके बिना संघ हड्डियों का ढाँचा मात्र कहलाता है। भगवान महावीर ने उत्तराध्ययन में कहा है कि बुराइयों और दोषों को दूर करने का एक उपाय है-अनुशासन। मर्यादा, व्यवस्था और आज्ञा तीनों मिलकर अनुशासन को अर्थ देते हैं, इनके बिना अनुशासन निष्प्राण बन जाता है। मर्यादाओं के साथ आचार्य भिक्षु ने तेरापंथ को वर्धमानता का आशीर्वाद प्रदान किया। तेरापंथ धर्मसंघ को एक से बढ़कर एक कुशल अनुशास्ता प्राप्त हो रहे हैं।
हम सबमें आचार निष्ठा वृद्धिंगत हो, हमारी विनम्रता बढ़े, सहिष्णुता बढ़े और हमारा समर्पण बढ़े। ये चारों गुण आत्मानुशासन को बढ़ाने वाले हैं। हम स्वयं का विकास करें और संघ का विकास भी करते रहें। वर्धमान महोत्सव के उपलक्ष्य में समणीवृंद ने गीत का संगान किया। तेरापंथ सभा, डोंबीवली के अध्यक्ष गणपत हिंगड़ ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। तेरापंथ महिला मंडल एवं तेरापंथ समाज डोंबीवली ने गीत की प्रस्तुति दी। निशा नवीन इंटोदिया ने 13 की तपस्या का प्रत्याख्यान किया। तेरापंथ कन्या मंडल एवं तेरापंथ किशोर मंडल ने संयुक्त प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।