श्रमण महावीर

स्वाध्याय

श्रमण महावीर

जीवनवृत्त: कुछ चित्र, कुछ रेखाएँ

धार्मिक परंपरा
उस समय भारत के उत्तर-पूर्व में दो मुख्य धार्मिक परंपराएँ चल रही थीं-श्रमण परंपरा और ब्राह्मण परंपरा। सिद्धार्थ और त्रिशला श्रमण परंपरा के अनुयायी थे। वे भगवान् पार्श्व के शिष्यों को अपना धर्माचार्य मानते थे। वर्द्धमान ने जिस परंपरा का उन्नयन किया, उसके संस्कार उन्हें पैतृक विरासत में मिले थे। वे किसी श्रमण के पास गए और धर्म-चर्चा की, इसकी कोई जानकारी प्राप्त नहीं है। उनका ज्ञान बहुत प्रबुद्ध था। वे सत्य और स्वतंत्रता की खोज में अकेले ही घर से निकले थे। कुछ वर्षों तक वे अकेले ही साधना करते रहे।

राजनीतिक वातावरण
उन दिनों वज्जि गणतंत्र बहुत शक्तिशाली था। उसकी राजधानी थी वैशाली। उसकी अवस्थिति गंगा के उत्तर, विदेह में थी। वज्जिसंघ में लिच्छवि और विदेह-दोनों शासक सम्मिलित थे। इसके प्रधान शासक लिच्छवि राजा चेटक थे। सिद्धार्थ वज्जि संघ के एक सदस्य-राजा थे। वर्द्धमान गणतंत्र के वातावरण में पले थे। गणतंत्र में सहिष्णुता, वैचारिक उदारता, सापेक्षता, स्वतंत्रता और एक-दूसरे को निकट से समझने की मनोवृत्ति का विकास अत्यंत आवश्यक होता है। इन विशेषताओं के बिना गणतंत्र सफल नहीं हो सकता। अहिंसा और स्याद्वाद के बीज वर्द्धमान को राजनीतिक वातावरण में ही प्राप्त हो गए थे। धार्मिक वातावरण में वर्द्धमान ने उन्हें शतशाखी बनाकर स्थायी प्रतिष्ठा दे दी।

परिवार
अपने गुणों से प्रख्यात होने वाला उत्तम, पिता के नाम से पहचाना जाने वाला मध्यम, माता के नाम से पहचाना जाने वाला अधम और श्वसुर के नाम से पहचाना जाने वाला अधमाधम होता-यह नीतिसूत्र अनुभव की स्याही से लिखा गया है।
महावीर स्वनामधन्य थे। वे अपनी सहज साधनाजनित विशेषता के कारण अनेक नामों से प्रख्यात हुए। उनके गुण-निष्पन्न नाम सात हैं-वर्द्धमान, समन (श्रमण), महावीर, सन्मति, वीर, अतिवीर और ज्ञातपुत्र। बौद्ध साहित्य में उनका नाम नातपुत्त मिलता है।
महावीर के पिता के तीन नाम थे-सिद्धार्थ, श्रेयांस और यशस्वी। उनका गोत्र था-काश्यप।
महावीर की माता के तीन नाम थे-त्रिशला, विदेहदत्ता और प्रियकारिणी। उनका गोत्र था-वाशिष्ठ।
महावीर के चुल्लपिता का नाम सुपार्श्व, बुआ का नाम यशोदया, बड़े भाई का नाम नदिवर्धन, भाभी का नाम ज्येष्ठा और बड़ी बहन का नाम सुदर्शना था।
महावीर की पत्नी का नाम यशोदा, पुत्री का नाम प्रियदर्शना, धेवली का नाम शेषवती, यशस्वती था।
महावीर का परिवार समृद्ध और शक्तिशाली था। उनके धर्म-तीर्थ के विकास में उसने अपना योगदान दिया था।

विवाह
कुमार वर्द्धमान अब युवा हो गए। उनके अंग-अंग में यौवन का उभार आ गया। वे बचपन से सुंदर थे। युवा होने पर वे अधिक सुंदर दीखने लगे, ठीक वैसे ही जैसे चाँद सहज ही कांत होता है, शरद ऋतु में वह और अधिक कमनीय हो जाता है। कुमार की यौवनश्री को पूर्ण विकसित देख माता-पिता ने विवाह की चर्चा प्रारंभ की।
कुमार वर्द्धमान के जन्मोत्सव में भाग लेने के लिए अनेक राजा आए थे। उनमें कलिंग-नरेश जितशत्रु भी था। वह कुमार को देख मुग्ध हो गया। उसी समय उसके मन में कुमार के साथ संबंध जोड़ने की साध उत्पन्न हो गई। कुछ समय बाद उसके पुत्री का जन्म हुआ। उसका नाम रखा गया यशोदा। पुत्री के बढ़ने के साथ-साथ जितशत्रु के मन की साध भी बढ़ रही थी।
जितशत्रु की रानी का नाम था यशोदया। उसने जितशत्रु से कहा, ‘पुत्री विवाह योग्य हो गई है। अब आपकी क्या इच्छा है?’

(क्रमशः)