धन, ज्ञान और शक्ति के साथ हो चरित्र का बल : आचार्यश्री महाश्रमण
नेरुल, नवी मुंबई, 2 फरवरी, 2024
सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति की लौ प्रज्वलित कर रहे आचार्यश्री महाश्रमण जी ने नेरुल प्रवास के प्रथम दिन अपनी मंगल देशना में फरमाया कि हमारे जीवन में ज्ञान का बड़ा महत्त्व है। हमें सम्यक् ज्ञान प्राप्त हो, यथार्थ का बोध हो, सच्चाई का बोध हो। ज्ञान प्राप्ति के लिए स्वाध्याय की अपेक्षा हो सकती है। अध्ययन करने से आदमी ज्ञानवान बन सकता है। धनवान बनना एक चीज है, उसका भी अपना महत्त्व है। संसार में लक्ष्मी, सरस्वती और दुर्गाµये तीन नाम सुनने को मिलते हैं। लक्ष्मी का संबंध धन-संपत्ति के साथ, विद्या और ज्ञान का संबंध सरस्वती से और शक्ति का संबंध दुर्गा के साथ माना जाता है। गृहस्थ को धन चाहिए, विद्यार्थी को ज्ञान प्राप्त करना है और सभी शरीर से और मन से शक्ति संपन्न होना चाहते हैं।
धन, ज्ञान और बल यह तीन चीजें हो जाती हैं। तीनों चीजें हर आदमी में समान रूप से हों, यह तो कठिन है। एक आदमी धनाढ्य है पर वह विद्वान भी हो, एक आदमी विद्या संपन्न है पर साथ में वह धनवान भी हो, कोई बलवान है पर वह ज्ञानवान भी हो यह आवश्यक नहीं है। ये तीनों चीजें एक साथ तो एक जीवन में अच्छी मात्रा में मिलना थोड़ा कठिन काम लगता है। आदमी यह सोचे कि लक्ष्मी, विद्वता और बल जितना है वह ठीक पर मैं चरित्र संपन्न तो अवश्य बनूँ। चेहरा कितना सुंदर है, यह कोई महत्त्व की बात नहीं पर चरित्र सुंदर होना चाहिए।
आदमी बलवान हो जाए, लक्ष्मीवान हो जाए, विद्यवान भी हो जाए, ये अपनी-अपनी विशेषताएँ हैं पर साथ में चरित्रवान भी होना चाहिए। ईमानदारी, अहिंसा, संयम, सादगी, करुणा और मैत्री के संस्कार जीवन में होना चाहिए। चोरी और झूठ-कपट से बचने का प्रयास होना चाहिए। अहिंसा, ईमानदारी, संयम ये चरित्र के आयाम हैं। जीवन में धन, विद्वता और बल अधिकता में नहीं भी हो तो कोई बात नहीं पर चरित्र का बल, सम्यक् ज्ञान, सम्यक् चारित्र है तो मानना चाहिए कि उसके पास बहुत कुछ है।
आदमी का दृष्टिकोण सही हो, यथार्थ परक हो, जीवन में अन्य विद्याओं के अध्यात्म विद्या भी हो। दुनिया में अनेक विद्या संस्थान हैं, अनेकों पढ़ने और पढ़ाने वाले होंगे। जैन शासन में उपाध्याय होते हैं, वे 11 अंग, 12 उपांग के धारक होते हैं, अध्ययन और अध्यापन करने वाले होते हैं, मानो ज्ञान-यज्ञ करने वाले होते हैं। अनेक विद्याएँ पढ़ाई जाती हैं, उनके साथ अध्यात्म विद्या भी विद्यार्थियों को पढ़ाई जाएँ। आचार्य तुलसी एवं आचार्य महाप्रज्ञ जी ने जीवन विज्ञान के प्रशिक्षण की बात बताई थी, जिससे विद्यार्थियों को जीवन में अच्छे संस्कार भी प्राप्त हो सकें। लक्ष्मी, विद्या और बल का महत्त्व है पर संस्कारों के अभाव में उनका दुरुपयोग हो सकता है। आदमी का चित्त, भाव पवित्र बन जाए तो उसके आचरण भी पवित्र रह सकते हैं।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि मनुष्यों में चक्रवर्ती को, देवताओं में इंद्र को, जानवरों में सिंह को, व्रतों में उपशम व्रत को, पर्वतों में सुमेरु को और जन्मों में मनुष्य जन्म को श्रेष्ठ बताया गया है। जैन धर्म में जीवन के चार वर्गीकरण हैंµनारक, तिर्यंच, मनुष्य और देव। मनुष्य जन्म सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। इस जन्म में मनुष्य क्या करता है यह भी महत्त्वपूर्ण है। क्रोध का विष सर्प के विष से भी भयंकर होता है, क्रोध वैर को बढ़ाने वाला है, हम क्रोध पर नियंत्रण करने का प्रयत्न करें। प्रेक्षाध्यान, अनुप्रेक्षा आदि के प्रयोगों से क्रोध को नियंत्रित किया जा सकता है।
पूज्यप्रवर के स्वागत में स्वागताध्यक्ष आनंद सोनी, तेयुप अध्यक्ष कांति कोठारी, महापौर जयवंत सुतार, नामदेव भगत, रवींद्र ठाकरे ने अपने भाव अभिव्यक्त किए। तेममं ने गीत की प्रस्तुति दी।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।