ज्ञान प्राप्त कर श्रेयस्कर पथ को चुनें: आचार्यश्री महाश्रमण
ऐरोली, नवी मुंबई, 30 जनवरी, 2024
अणुव्रत अनुशास्ता परम पावन आचार्यश्री महाश्रमण जी ने ऐरोली, नवी मुंबई के ज्योतिपुंज समवसरण में अपनी मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि मनुष्य के पास पाँच इंद्रियाँ हैं, जिन्हें ज्ञानेंद्रियाँ कहा जा सकता है। कान, आँख आदि पाँच इंद्रियाँ हैं, ये ज्ञान की माध्यम हैं। इन पाँचों में भी दो इंद्रियाँ ज्ञान की बहुत बड़ी माध्यम बनती हैंµश्रोत और चक्षु। नाक से गंध का ज्ञान होता है, जिह्वा से रस का बोध होता है, स्पर्शन इंद्रिय से स्पर्श की अनुभूति हो जाती है। ज्ञान तो शेष तीन इंद्रियों से भी होता है परंतु श्रोत और चक्षु, इन दो से अधिक ज्ञान ग्रहण की संभावना रहती है।
हम कान से सुनते हैं, सुनते-सुनते अनेक जानकारियाँ प्राप्त हो सकती हैं। धर्मोपदेश सुनकर ग्रहण किए जाते हैं, स्कूल-कॉलेज के विद्यार्थी सुन-सुनकर ज्ञान ग्रहण कर लेते हैं। आँख से भी हम ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं। चक्षु न हो तो पढ़ने में कठिनाई हो सकती है। श्रोत और चक्षु दोनों से ज्ञान पुष्ट होकर प्राप्त हो सकता है। कई बार हम कान से सुनते हैं पर जब देखते हैं तो वो बात वैसी नहीं लगती। जो सुना वो आँख से देखने को हू-ब-हू मिलता है तो वह ज्ञान, वह बात या सूचना एकदम पुष्ट हो सकती है।
आदमी सुनकर कल्याण की बात को जानता है, पाप को भी जानता है। जो श्रेय है वह आचरण आदमी को करना चाहिए, कल्याणकारी पथ पर चलना चाहिए। आचार्य तुलसी ने अणुव्रत का पथ दिखाया, व्यक्ति उस पथ को जान ले, ज्ञान कर ले, फिर कल्याणकारी बात को जीवन में उतारे और गलत बात को छोड़ दे तो उसकी चेतना अच्छी बन सकती है। आचार्य महाप्रज्ञ जी प्रेक्षाध्यान कराते थे, प्रवचन भी कराते थे, शास्त्रों का संपादन भी करते थे। ये अणुव्रत, प्रेक्षाध्यान, जीवन विज्ञान ऐसे पथ हैं जिन पर चलने से व्यक्ति कल्याण को प्राप्त कर सकता है। अणुव्रत का ही सार हैµसद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति। ये तीन चीजें आदमी के जीवन में आ जाएँ तो आशा है कि आदमी का जीवन अच्छा बन सकता है, समाज और राष्ट्र भी अच्छा बन सकता है। हर आदमी महात्मा नहीं बन सके तो दुरात्मा तो न बने, सदात्मा बनने का प्रयास करे।
भगवान महावीर जैसे महापुरुष दुनिया में हुए हैं, इन महापुरुषों ने बहुत साधना की होगी। आज भी अच्छे ग्रंथों के रूप में ज्ञान का खजाना भारत में प्राप्त है। सूक्त, सुभाषित, संदेश को आत्मसात कर कल्याण की बात को जीवन में उतारने का प्रयास करना चाहिए। गृहस्थ में भी साधना की चेतना हो सकती है, कुछ अंशों में गृहस्थ भी संतों का सा जीवन जी सकते हैं। गृहस्थ साधु न भी बन सके, त्याग, संयम, सज्जनता के गुणों से अपने जीवन को भावित करे तो उनकी चेतना पवित्र बन सकती है।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि व्यक्ति वृद्ध हो जाता है, तब भी उसकी तृष्णा समाप्त नहीं होती है। आज भौतिक पदार्थों का आकर्षण बढ़ रहा है, उसके कारण व्यक्ति सुख का जीवन नहीं जी पा रहा है। यह आकर्षण या आसक्ति दुःख को पैदा करने में निमित्त बनती है। जो व्यक्ति आसक्ति को छोड़ देता है वह व्यक्ति सुख-शांति का अनुभव कर सकता है। वास्तव में धनी व्यक्ति वह होता है जिसके जीवन में संतोष आ जाता है।पूज्यप्रवर के स्वागत में ऐरोली सभाध्यक्ष छोगालाल सोनी, स्वागताध्यक्ष धर्मेश किशनलाल तातेड़ की ओर से उनके प्रतिनिधि ने अपने उद्गार व्यक्त किए। तेरापंथ महिला मंडल एवं तेरापंथ युवक परिषद ने पृथक्-पृथक् गीत का संगान किया। तेरापंथ कन्या मंडल एवं किशोर मंडल ने संयुक्त प्रस्तुति से अपनी भावना अभिव्यक्त की।
अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी द्वारा अंतर्राष्ट्रीय शांति के लिए अणुव्रत अहिंसा सम्मान-2023 तुर्की-यूएसए की ब्रिजॉन अनवर को प्रदान किया गया। अणुविभा उपाध्यक्ष मनोज सिंघवी ने पुरस्कार की जानकारी दी। इंटरनेशनल अणुव्रत कॉन्फ्रेंस सह-संयोजक दीपक पुगलिया ने प्रशस्ति पत्र का वाचन किया। अणुविभा ट्रस्टी सुमतिचंद गोठी ने ब्रिजॉन अनवर का परिचय प्रस्तुत किया। ब्रिजॉन अनवर ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।