मर्यादा की रक्षा करने से हो सकती है स्वयं की भी रक्षा : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

मर्यादा की रक्षा करने से हो सकती है स्वयं की भी रक्षा : आचार्यश्री महाश्रमण

वाशी, 11 फरवरी, 2024
मर्यादा के महामानव आचार्यश्री महाश्रमण जी ने आज प्रातः 160वें मर्यादा महोत्सव के आयोजन हेतु वाशी में मंगल प्रवेश किया। महामनीषी आचार्यप्रवर ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि आज मर्यादा महोत्सव के संदर्भ में बृहत्तर मुंबई में नवी मुंबई के वाशी में हमारा आना हुआ है। हमारे धर्मसंघ में चातुर्मास के बाद मर्यादा महोत्सव का महत्त्व होता है, वह हमारे इतिहास में जुड़ जाता है। मर्यादा महोत्सव हमारे धर्मसंघ में शताधिक वर्षों से मनाया जा रहा है। आद्य प्रवर्तक आचार्य भिक्षु से संबंधित यह धर्मसंघ है। मर्यादा महोत्सव का शुभारंभ पूज्य चतुर्थ आचार्य जीतमल जी के शासनकाल में हुआ था अर्थात् मर्यादा महोत्सव के प्रणेता श्रीमद् जयाचार्य है। उत्तरवर्ती आचार्यों ने इसे आगे बढ़ाया है।
मर्यादा बहुत महत्त्वपूर्ण तत्त्व होता है। मर्यादा की रक्षा करने से स्वयं की रक्षा भी हो सकती है। हम धर्म की रक्षा करेंगे तो धर्म भी हमारी रक्षा करता है। हम मर्यादा की शोभा-आभा बढ़ाएँगे तो हमारी आभा भी सुरक्षित रह सकेगी। आत्मानुशासन का विकास हमारे जीवन में होना चाहिए। आत्मानुशासन का निर्देश है कि मैं स्वयं संयम और तप के द्वारा आत्मा को दांत-अनुशासित रखूँ। आत्मानुशासन बड़े व छोटे, दोनों में होना चाहिए। दूसरों को अनुशासन में रखना मुश्किल हो सकता है पर जहाँ आत्मानुशासन की बात हो वहाँ अनुशासन रखने में सफलता प्राप्त हो सकती है।
हमारे धर्मसंघ में आचार्य को बहुत बड़ा, महिमा मंडित स्थान दिया गया है। सत्ता का केंद्र आचार्य में निहित किया गया है। सर्वोच्च अनुशास्ता का दायित्व आचार्य को निभाना होता है। तेरापंथ के जनक-परमपूज्य आचार्य भिक्षु हुए हैं। अनुशासन की परंपरा को उत्तरवर्ती आचार्यों ने आगे से आगे निरंतरित रखने का प्रयास किया है। इस संदर्भ में पूज्यप्रवर के निर्देशानुसार मुख्य मुनि महावीर कुमार जी व मुनि दिनेश कुमार जी ने मुनि मोहनलाल जी ‘आमेट’ द्वारा रचित गीत ‘स्वामीजी’ एकर तो आकर देखो पाछा आयने’ गीत के ‘गुरु ने बणाया पूरा बादशाह’ पद्य का सुमधुर संगान किया।
आचार्यप्रवर ने आगे फरमाया कि हमारे धर्मसंघ में एकतंत्र-आचार्य तंत्र है, सत्ता का केंद्र आचार्य को बनाया गया है। सारी व्यवस्थाएँ आचार्य के अनुशासन में होती हैं। मर्यादा महोत्सव भी आचार्य की परिधि में एकत्रित होने की बात है। केंद्र का महत्त्व परिधि के आधार पर बढ़ता है। संघ परिधि है, आचार्य केंद्र है। जैसे इंद्र देवों के मध्य शोभायमान होता है, वैसे ही आचार्य भिक्षुओं के मध्य शोभायमान होते हैं। इसलिए संघ-संगठन का भी महत्त्व है। आध्यात्मिक संदर्भ में श्रावक-श्राविकाओं के अनुशास्ता भी आचार्य होते हैं। हमारा संगठन, शासन और आत्मानुशासन मजबूत हो। हमारी साधना, आचार निष्ठा, मर्यादा निष्ठा पुष्ट रहे।
एक संदर्भ में हमारे यहाँ लोकतंत्र भी है। यहाँ विचार-विमर्श होता है, विचारों को सुनने का, कहने का अवसर दिया जाता है, उसके बाद निर्णय होता है। निर्णय एकतंत्र के अंतर्गत रहता है। हमारी सबसे बड़ी मर्यादा है कि सर्व साधु-साध्वियाँ एक आचार्य की आज्ञा में रहें। ये मर्यादाएँ हमारी सुरक्षा करने वाली हैं। हम भी इनकी सुरक्षा करने का प्रयास करते रहें। संविधान का पालन हर जगह उचित होता है। मर्यादाओं के प्रति हमारा सम्मान का भाव हो। परमपूज्य गुरुदेव तुलसी के सान्निध्य में सर्वाधिक मर्यादा महोत्सव हुए हैं। आचार्य तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञ जी के सान्निध्य में भी मुंबई में मर्यादा महोत्सव समारोह हुआ था। आज मर्यादा महोत्सव का मंगल प्रवेश हो गया है। धर्म सर्वश्रेष्ठ मंगल है, अहिंसा, संयम और तप रूपी मंगल हमेशा हमारे साथ रहे।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने अपने उद्बोधन में कहा-

गरल सत्य है, किंतु सुधा का, नहीं कहीं भी अता पता है।
विटप बहुत है, किंतु कल्पतरु, नहीं कहीं खोजे मिलता है।।

दुनिया का सत्य है कि इसमें चारों ओर विष व्याप्त हो रहा है। कषाय रूपी विष फैल रहा है जिसके कारण मानव मन दूषित, अशांत, असंतुलित, तनाव ग्रस्त, दुखी हो रहा है। अशांत को शांत करने, तनाव से मुक्त करने, दुखों से मुक्त करने के लिए वाशी में अमृत पुरुष का शुभागमन हुआ है। ठाणं सूत्र में 10 प्रकार के कल्पवृक्षों का उल्लेख मिलता है। आज एक कल्पवृक्ष वाशी में आया है, जिनके सामने बैठकर हम हमारी इच्छाएँ पूरी कर सकते हैं। पूज्यप्रवर के आशीष से हम आगे विकास कर सकते हैं। यह जंगम कल्पवृक्ष है, इसके द्वारा व्यक्ति ज्ञान को प्राप्त कर सकता है, विवेक चेतना को जागृत कर सकता है। आचार्यप्रवर हित की चेतना, उपशम की चेतना और तत्त्व की चेतना को जागृत करने और साथ में मर्यादाओं का उत्सव मनाने पधारे हैं।
पूज्यप्रवर की अभिवंदना में प्रवास व्यवस्था समिति अध्यक्ष मदनलाल तातेड़, स्वागताध्यक्ष चांदरतन दुगड़, सभाध्यक्ष विनोद बाफना, मनोहर गोखरू, ललित बाफना, तेयुप अध्यक्ष महावीर सोनी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। तेरापंथ महिला मंडल एवं तेरापंथ युवक परिषद ने अलग-अलग स्वागत गीत की प्रस्तुति दी। ज्ञानार्थी गर्वित सोनी ने ‘प्राणी समकित किण विधि आई’ की सुंदर प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।