विशेषताओं का पलड़ा भारी और कमियों का पलड़ा हल्का बने : आचार्यश्री महाश्रमण
पेण, रायगड। २९ फरवरी २०२४
जनोद्धारक परम पावन आचार्य श्री महाश्रमण जी कोंकण क्षेत्र में अणुव्रत यात्रा के साथ आज पेण गांव में पधारे। अमृत देशना प्रदान करते हुए आचार्य प्रवर ने फरमाया कि जैन वांग्मय में कषाय शब्द का प्रयोग हुआ है। कष-आय अर्थात् कर्म मल का आगमन जिनसे होता है वे कषाय हैं। कषाय और योग ये दो चीजें हैं। पाप कर्म बंध कराने में कषाय का योगदान होता है। भीतर में कषाय बिल्कुल न रहे तो पाप कर्म का बंध नहीं हो सकता। क्रोध, मान, माया और लोभ, ये चार कषाय हमारी चेतना को कलुषित करने वाले हैं। शास्त्र में बताया गया कि क्रोध प्रीति का नाश करने वाला होता है।
मान से विनय का और माया से मित्रता का नाश होता है। लोभ तो सब कुछ नाश करने वाला, बड़ा विनाशक होता है। इससे प्रीति, विनय और मित्रता सब का नाश हो सकता है। क्रोध एक वृत्ति है, कभी-कभी गुस्से में व्यक्ति अकरणीय कार्य भी कर देता है। यह मनुष्य का शत्रु है, इसे छोड़ने का प्रयास करना चाहिए। हम शांति रखें, धैर्य रखें, अधीर न बनें। गुस्सा करना बड़ी बात नहीं है, क्षमा रखना वीरता का भूषण है। कोई हमें गाली भी दे पर हम स्वीकार ही नहीं करे तो हमें क्या हानि हो सकेगी ?
मौके पर कड़ी बात भी कही जा सकती है, पर वह भी शांति से कही जाए। कभी कहना पड़े तो कभी सहना भी चाहिए। प्रयास यह हो कि बात कहने में शान्ति रखें, हर स्थिति में शांति रखें। प्रेक्षाध्यान की अनुप्रेक्षा से गुस्सा कम करने का प्रयास कर सकते हैं। हमारी विशेषताओं का पलड़ा भारी बने और कमियों का पलड़ा हल्का बने। गुस्सा आना भी एक कमजोरी है। क्रोध स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है, दूसरों के लिए भी कष्टप्रद हो सकता है और कषाय से हमारे पाप कर्म का बंध भी हो सकता है। छोटे सहन करते हैं, तो बड़े भी सहन करने का प्रयास करें। गुस्सा नियंत्रण में रहे तो परिवार, समाज और खुद के दिमाग में भी शांति रह सकती है। किसी चीज का अहंकार भी नहीं करना चाहिये। पद, संपत्ति, ज्ञान, सत्ता, बल आदि का भी घमंड नहीं करना चाहिए। इनका सदुपयोग तो सेवा में होना चाहिए। मनुष्य माया, छल-कपट से दूर रहें, लोभ को कम करने का प्रयास करे और संतोषी बनने का प्रयास करे। कषायों से हल्का रहने का प्रयास कल्याणकारी बात हो सकती है। कार्यक्रम का कुशल संचालन हुए मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।