आदमी के दिमाग में रहे अणुव्रत : आचार्य श्री महाश्रमण
वहूर। ११ मार्च, २०२४
दो दिवसीय महाड़ प्रवास पूर्ण कराकर जिनशासन प्रभावक अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य श्री महाश्रमणजी वहूर के फजंदार इंग्लिश स्कूल में पधारे। परम पावन आचार्य प्रवर ने मंगल पाथेय प्रदान कराते हुए फरमाया कि जिस जगत में हम जी रहे हैं, उसमें दुःख बहुलता है। सुख भी मिलते हैं, तो संसार में दुःख भी मिलते हैं। अनेक कारणों या समस्याओं से दुःख हो सकता है। शारीरिक, मानसिक और आर्थिक दुःख भी हो सकता है।
अनेक लोगों के पास भौतिक सुख भी हैं, अनुकूलताएं भी हैं, तो दुनिया में दुःख भी हैं। दुःखों से छुटकारा मिले और आगे दुर्गति में न जाना पड़े, इसके लिए अध्यात्म एक मार्ग है। हम संवर-निर्जरा की अच्छी साधना करें। कर्म निर्जरा से जो आत्म शुद्धि होती है वह सुख है। सुख दो प्रकार का हो जाता है- एक भौतिकता से मिलने वाला सुख, दूसरा कर्मों की निर्जरा से मिलने वाला सुख। ये बाहरी भौतिक सुख भी दुःख का कारण बन सकते हैं। हमें भीतर के सुखों की ओर ध्यान देना चाहिए। आध्यात्मिकता से हमें स्थायी सुख प्राप्त हो सकता है।
विद्या संस्थानों में अलग-अलग विषय पढ़ाए जाते होंगे। ज्ञान अपने आप में जीवन की एक उपलब्धि है। परन्तु ज्ञान के साथ अच्छे संस्कार भी बच्चों को परोसे जाएं, विद्या संस्थानों में संस्कार युक्त शिक्षा दी जाए। अहिंसा, ईमानदारी, विनय, सरलता, निर्भीकता के संस्कार दिया जाए। विद्यार्थियों में सभी मनुष्यों, प्राणियों के प्रति मैत्री का भाव हो, नशा मुक्ति भी हो।
अणुव्रत में यही बातें हमें प्राप्त होती है। आचार्य तुलसी ने अणुव्रत आन्दोलन में छोटे-छोटे नियमों की बात बतायी है। अणुव्रत के नियम-संकल्प स्वीकार किये जाएं तो आदमी का विकास हो सकता है। ज्ञान के लिए कितना प्रयत्न किया जाता है। ऐसा प्रतीत होता है कि शिक्षा के प्रति रुझान और समर्पण है। पर शिक्षा के साथ संस्कार भी हो। विद्या विनय से सुशोभित होती है। विद्या, विनय और विवेक की त्रिवेणी है। विद्यार्थी विद्यावान, विनयवान और विवेकवान बनें। बच्चे अच्छे होगें तो राष्ट्र, समाज और धार्मिक संघों का भी अच्छा विकास हो सकता है। श्रुत संपन्न और शील संपन्न बनें। बाल-पीढ़ी बहुत महत्वपूर्ण सम्पदा होती है, बाल पीढ़ी पर ध्यान रहे, उन्हें अच्छे संस्कार देने का प्रयास होता रहे।
इंसान-इंसान के प्रति मैत्री रखे। सब जीवों के प्रति मैत्री, अहिंसा का भाव रहे। अहिंसा की बात धर्म ग्रन्थों में मिलती है, वो हमारे जीवन में आये तब उपयोगी हो सकती है। अणुव्रत हर जगह होना चाहिए, मूल बात है कि आदमी के दिमाग में होना चाहिए। पूज्यप्रवर ने स्थानीय लोगों, विद्यालय से जुड़े सदस्यों एवं विद्यार्थियों को सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति की संकल्पत्रयी के बारे में समझा कर उन्हें संकल्प स्वीकार करवाये। अणुविभा अध्यक्ष अविनाश नाहर, अभातेयुप अध्यक्ष रमेश डागा, संपूर्ति समारोह सह संयोजक राजेश मेहता, विद्यालय से राही फजंदार, एवं रमेश खोत ने अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन अणुविभा के सहमंत्री मनोज सिंघवी ने किया।