अहंकार की भावना साधक की साधना को कर सकती है मंद : आचार्य श्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

अहंकार की भावना साधक की साधना को कर सकती है मंद : आचार्य श्री महाश्रमण

पोटनेर। ५ मार्च, २०२४

अनन्त आस्था के केन्द्र आचार्य श्री महाश्रमण जी लगभग १४ किमी का विहार कर पोटनेर के श्री कोंकण पार्श्व जैन तीर्थ धाम पधारे। मंगल देशना प्रदान कराते हुए अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री ने फरमाया कि कई साधक इस जीवन के पश्चात् देवलोक में चले जाते हैं तो कई मोक्ष में भी चले जाते हैं, सिद्धि को प्राप्त हो जाते हैं। मोक्ष को प्राप्त करना बहुत विशेष बात हो जाती है, परंतु मोक्ष प्राप्त करने के लिए अध्यात्म की उच्चता की अपेक्षा होती है। सदा उपशांत रहने वाले, अममत्व रखने वाले, अकिंचन साधक, अध्यात्म की उच्च साधना कर सकते हैं। जो साधु अपनी साधना व संयम में लीन रहने वाले होते हैं, वे केवलज्ञान को प्राप्त कर सकते हैं। केवलज्ञान प्राप्ति के बाद उस जीवन के पश्चात मोक्ष निश्चित हो जाता है। आदमी को उपशांत, क्षमाशील होना चाहिए। अहंकार, मोह, माया, लोभ का भाव नहीं रखना चाहिए। आदमी के भीतर कभी-कभी अहंकार का नाग भी फुफकारता है। किंचन, ज्ञान अथवा कुछ होने का घमंड आदमी को हो सकता है, पर उपलब्धि का घमंड नहीं होना चाहिए। ज्यूं वन की वनराजिया, खाती देख खपाय।
त्यूं साधक की साधना, ख्याति देख खपाय।। जैसे जंगल में कोई खाती पेड़ को काट दे, वैसे ही ख्याति या अहंकार की भावना साधक की साधना को मंद कर सकती है। कहा गया है-जब मैं था तब प्रभु नहीं थे, जब प्रभु विराजमान हो गए तब मैं नहीं। प्रेम की गली अति संकड़ी है उसमें अहंकार और विनय दोनों साथ साथ नहीं चल सकते। कोई व्यक्ति बड़ा है पर बड़ा बनना भी आसान नहीं है, उसके लिए कितना तपना-खपना पड़ता होता है। ज्ञान प्राप्त करना है तो अहंकार को थोड़ा दूर रखें। ज्ञान और ज्ञानदाता दोनों के प्रति विनय का भाव रखें।
जो अभिवादन शील है, वृद्धों की सेवा करने वाला है, उसके चार बातों का विकास हो सकता है- आयुष्य, विद्या, यश-कीर्ति और बल। अहंकार को हम नकार कर दें। जीवन में आध्यामिक या भौतिक उपलब्धियां हो सकती हैं, दोनों का महत्व भी हो सकता है। साधना करने वालों को भी कई लब्धियां प्राप्त हो सकती है। लब्धियों से अनिष्ट भी किया जा सकता है और किसी को बचाया भी जा सकता है। बड़ी उपलब्धि केवलज्ञान और वीतरागता की प्राप्ति है, परम उपलब्धि मोक्ष की प्राप्ति है। हमें अंहकार-घमंड से बचना चाहिए, मान अहंकार को छोड़ कर निरहंकार बनना चाहिए, यह आत्मा के लिए हितकर बात हो सकती है। पूज्य प्रवर ने अणुव्रत गीत एवं 'प्रभु पार्श्व देव चरणों में' गीतों का आंशिक संगान करवाया। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।