आत्मानुशासन की प्रेरणा देता है अणुव्रत: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

आत्मानुशासन की प्रेरणा देता है अणुव्रत: आचार्यश्री महाश्रमण

माणगांव। ६ मार्च, २०२४

महायोगी युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ माणगांव पधारे। पावन प्रेरणा पाथेय प्रदान कराते हुए पूज्य प्रवर ने फरमाया कि आचार्य श्री तुलसी द्वारा रचित अणुव्रत गीत में पहला पद्य आत्मानुशासन से सम्बन्धित है।
'अपने से अपना अनुशासन, अणुव्रत की परिभाषा।
वर्ण, जाति या संप्रदाय से, मुक्त धर्म की भाषा।
छोटे-छोटे संकल्पों से, मानस परिवर्तन हो।।'
स्वयं के द्वारा स्वयं पर अनुशासन करना अणुव्रत की परिभाषा है। दूसरों के द्वारा किया गया अनुशासन परानुशासन हो जाता है। स्वयं अपने विवेक से सही मार्ग पर चलें, संयमित रहें और सदाचार के पथ पर चलें। दो शब्द हो जाते हैं- आत्मानुशासन और परानुशासन। दूसरों पर अनुशासन करने वाले को खुद पर भी अनुशासन करने का प्रयास करना चाहिये। अनुशास्ता बनना बड़ी बात है पर उसकी पृष्ठभूमि में भी आत्मानुशासन होना चाहिए। दूसरों का अनुशास्ता तो कोई बनाए या ना बनाए पर आत्मानुशास्ता जरूर बनें।
अणुव्रत के संकल्प स्वीकार किये जाते हैं, संकल्प आदमी इच्छा से स्वीकार करता है इसलिए अणुव्रत स्वयं पर अनुशासन करना सिखाता है। अणुव्रत एक ऐसा धर्म है, जो वर्ण, जाति और सम्प्रदाय से मुक्त है, जिसके माध्यम से छोटे-छोटे संकल्यों को स्वीकार करने की प्रेरणा दी जाती है जिनसे मनुष्य का हृदय परिवर्तन हो सकता है। मनुष्य तंत्र-मंत्र के प्रयोग से देवी-देवताओं को वश में करने का प्रयास भी करते हैं। पर जब तक हमारा मन हमारे वश में नहीं होगा तो देव हमारे वश में कैसे हो पाएंगे? हमारे मन, वाणी, शरीर व इन्द्रियों पर हमारा अनुशासन हो। अपनी आत्मा को वश मे करना ही सबसे बड़ा तंत्र-मंत्र-यंत्र है।
साध्वी प्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी ने अपने उद्बोधन में कहा कि जिनके सामने चिन्तामणी रत्न, कल्पवृक्ष, कामधेनु का मूल्य भी कम हो जाता है, जो अपने शिष्य की मति और वैभव को निर्मल करते हैं, ऐसे गुरु चरण हमेशा विजय को प्राप्त करें। माणगांव वासी सौभाग्यशाली है कि यहाँ ऐसे गुरु का शुभागमन हुआ है। आचार्यप्रवर के स्वागत में अशोक बंब ने अपने भाव अभिव्यक्त किए। तेयुप, जैन संघ महिला मंडल एवं तेरापंथ कन्या मंडल ने अपनी-अपनी की प्रस्तुति दी। ज्ञानशाला की सुंदर प्रस्तुति हुई । कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।