उनका जाना रिक्तता की अनुभूति करा गया

उनका जाना रिक्तता की अनुभूति करा गया

‘शासनश्री’ साध्वी सोमलताजी धर्म संघ की एक सुयोग्य साध्वी थी। वे कई विशेषताओं से सम्पन्न थी। वे कुशल वक्ता, मधुर गायिका और सरस रचनाकार थी। उनके द्वारा रचित गीत रूचिकर होते थे। आचार्यश्री की उन पर कृपा बरसती रही। साध्वी सोमलता जी ‘सहिष्णुता की प्रतिमूर्ति’ सप्तम साध्वी प्रमुखाश्री लाडांजी द्वारा बीदासर में दीक्षित अनन्य साध्वी थी। तपोमूर्ति उग्रविहारी मुनिश्री कमलकुमारजी एवं शासनश्री साध्वी सोमलता जी दोनों सगे भाई-बहिन युगप्रधान आचार्यश्री तुलसी के शासनकाल में दीक्षित हुए।
मुनिश्री कमलकुमारजी का दिल से दिल्ली से उग्रविहार सार्थक हो गया, सफल हो गया। मुम्बई (वाशी) मर्यादा महोत्सव पर गुरुदर्शन सान्निध्य का शानदार अवसर तो पाया ही, चिर-प्रतीक्षारत सहोदरी ज्येष्ठ भगिनी से साक्षात् मिलन का दृश्य भी अद्भुत था। अनुकंपावर्षी आचार्यश्री महाश्रमणजी का विशेष संदेश अपने सहोदर मुनिश्री द्वारा प्राप्त कर उन्हें कितनी खुशी हुई होगी, कितना आत्मबल बढ़ा होगा। भगिनी सहोदरी साध्वीश्री की संयम यात्रा की सम्पन्नता के करीब उन्हें चौविहार अनशन करवाकर मुनिश्री कृतार्थ हो गए। मेरे साथ साध्वी सोमलताजी लगभग चार वर्ष रहे। अनुकूल समयोचित सहयोग किया। उनका जाना रिक्तता की अनुभूति करा गया। प्रकृति के शाश्वत नियम को टाला नहीं जा सकता। साध्वी सोमलता जी ने अपने साधना काल में धर्मसंघ की प्रभावना में जो विरल पृष्ठ जोड़े वे अनुकरणीय रहेंगे।