विवेक सम्पन्न साध्वी सोमलताजी
मन को झकझोरने वाले, दिल को रोमांचित करने वाले, अन्तश्चेतना की सुषुप्ति को हरने वाले वो पल आत्म-जागरण के पल थे। सचमुच, आपकी साधना-आराधना, आपका त्याग, सहजता, सरलता, पापभीरूता, आत्मरमणता नमनीय व स्तुत्य थी और रहेगी। मैं लगभग १3 वर्षों से आपके पास हूं। इस काल में आपने मुझे अनेक बार संकोच वृत्ति को छोड़कर उपदेश देने के लिए प्रेरित किया। कई बार आप मेरे लिए छः विगय का प्रत्याख्यान कर लेती। यह थी सहयोगी साध्वियों के विकास के प्रति आपकी शुद्ध भावना।
शुभ भावों में निरन्तर आत्मा में तल्लीन रहने वाली ‘शासनश्री’ साध्वी सोमलता जी का व्यक्तित्व निराला था। वात्सल्य भाव, आत्मीयता अविस्मरणीय है। ऐसी महान् साध्वी के बारे में अपने विचारों को लिखने में असमर्थता प्रकट कर रही हूं। मैंने अपनी आंखों से देखा- देह देवालय से देव विदा हो गया। आपके आदर्श जीवित रहेंगे। आपका जीवन अमृत से भरे पात्र की तरह चित्त समाधि के रस से भरा था। आपश्री के घट में दया थी, आप विवेक सम्पन्न थे। आपकी जागरूकता ने ही आपको प्रत्याख्यान की दिशा की ओर गतिमान किया।
अंतिम समय में चौविहार तेले का प्रत्याख्यान स्वयं किया और साथ ही संकेत भी दे दिया कि मैंने जीवन भर के आहार-पानी का यानि चौविहार त्याग कर दिया है। आप मुझे आलोयणा करा के शुद्ध करें। यह वही कह सकता है जिसने मौत का सामना करने की हिम्मत बटोर ली है। आपने असहनीय वेदना में मौत का अभिनंदन किया और मौत उनके लिए मोक्ष का द्वार बन गई। ऐसी शुद्धात्मा को श्रद्धा से नमन करती हूं। कामना करती हूं कि आप अतिशीघ्र ही भव सागर से तरकर सिद्धालय में वास करें। आपका मृत्यु महोत्सव बना महान। आपको याद रखेगा सारा जहान।।