सुखी बनने का उपाय है समता की साधना : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

सुखी बनने का उपाय है समता की साधना : आचार्यश्री महाश्रमण

जिनवाणी के व्याख्याता आचार्यश्री महाश्रमणजी आज प्रातः लगभग 11 किमी का विहार कर शेरे गाँव के श्री मामासाहेब मोहोल विद्यालय में पधारे। आगम वाणी का श्रवण कराते हुए पूज्यप्रवर ने फरमाया कि अपने आप को विशेष प्रसन्न बनाने का, सुखी बनाने का उपाय बताया गया है- समता की साधना। अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियां जीवन में आ सकती है, उनमें मानसिक संतुलन रखना।
शास्त्र में कहा गया है-
'लाभालाभे सुहे-दुक्खे, जीविए-मरणे तहा।
समो निंदा-पसंसासु, तहा माणावमाणओ।।'
जीवन में लाभ-अलाभ, सुख-दुख की स्थिति आ सकती है, दोनों स्थितियों में शांति, संतुलन रहना चाहिए। जीवन-मृत्यु व निन्दा-प्रशंसा की स्थिति में भी शांति व धैर्य रखना चाहिये।
यह समता और शांति का सूत्र है, यह भीतर से सुखी रहने का सूत्र है। राग-द्वेष में नहीं जाना अध्यात्म की साधना होती है। बड़े-बड़े महापुरूषों के जीवन में कठिनाईयां और अनुकूलताएं भी आ सकती हैं। रामचंद्र जी जीवन में वनवास की स्थिति भी आई। महापुरुषों के जीवन में कठिनाइयां आ सकती हैं तो सामान्य व्यक्ति के जीवन में भी प्रतिकूलता आ सकती है, उनमें समता का परिचय दे।
विद्यार्थी पढ़ते हैं, ज्ञान का खजाना भरते हैं, यह भी एक उपलब्धि है पर साथ में अच्छे संस्कार भी आये तो जीवन सुन्दर बगिया बन सकता है। बगीचा बनाने के लिए फूलों की सुगन्ध चाहिये। विद्यालयों में अच्छें संस्कार दिये जायें कि बच्चे सच्चे और अच्छे रहें, कच्चे न रहें। उनमें ज्ञान के साथ अहिंसा, संयम, नैतिकता के अच्छे संस्कार भी आएं तो जीवन बगिया खिल सकती है।
हमारे देश में कितने-कितने विद्यालय, महाविद्यालय और विश्व विद्यालय मिलते है, जहां शिक्षक ज्ञान का आदान-प्रदान करते हैं। बालकों को शिक्षकों से अच्छे संस्कार मिले। समय-समय पर धर्मगुरुओं से भी अच्छे संस्कार मिलते रहें। बच्चे डिजिटल डिटोक्स और नशामुक्ति को अपनाएं। स्कूल के विद्यार्थियों ने सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति की संकल्पत्रयी स्वीकार की। पूज्यप्रवर के स्वागत में विद्यालय के प्रधानाचार्य जिगले सर एवं शिक्षिका गायकवाड़ ने अपनी भावना अभिव्यक्त की।
कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।