हमारे धर्मसंघ की विशिष्ट साध्वी थी साध्वी सोमलताजी
हमारा शासन जयवंता शासन है। इसमें समय-समय पर अनेकानेक चारित्रात्माएं आचार्यों के शासनकाल में तपी हैं, खपी हैं। उन्होंने अपने-अपने व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व से धर्मसंघ को सेवा प्रदान की है। शासन हमारे लिए आश्वास है, विश्वास है, शरण है। हम शासन को सेवा देते हैं तो शासन हमें संरक्षण व निश्चिंतता देता है। ऐसी चारित्रात्माएं सबके लिए पूज्य है। साध्वी सोमलताजी एक ऐसी साध्वीवरा थी जिन्होंने अपने कर्तृत्व से बहुत कुछ दिया है। उनके द्वारा विरचित कुछ गीत तो समाज में लोकप्रिय बने हैं। जैसा मैंने जाना साध्वीश्री विशिष्ट एवं प्रबुद्ध थी, कुशल वक्ता थी, उनमें साहित्यिक स्फुरणा थी।
जहां-जहां साध्वीश्री का पदार्पण तथा प्रवास हुआ वहाँ के श्रावक आज भी स्मरण करते हैं। सूरत का श्रावक समाज भी निष्ठा से याद करता है। पिछले कुछ समय से साध्वीश्री अस्वस्थ चल रही थी, पर उनका मनोबल, आत्मबल प्रशस्त था। साध्वीश्री का यह विशेष सद्भाग्य रहा कि उन्हें मुंबई में गुरु सन्निधि का सुयोग संप्राप्त हो गया। उनके मन में गुरु के प्रति सदैव अगाध आस्था रही है।
परम पूज्य आचार्य प्रवर के हृदय में अपार कृपा का भाव रहा है। आचार्यवर की विशेष अनुकंपा से उग्रविहारी तपोमूर्ति व साध्वीश्री के भ्राता मुनि कमलकुमारजी स्वामी दिल्ली से लम्बे-लम्बे विहार करते हुए पधारे। इतने वर्षों से निंरतर एकांतर तप और उसमें भी करीब चालीस-चालीस कि.मी. विहार सचमुच उनके प्रखर व्यक्तित्व का स्वयंभू साक्ष्य है। वसंत पंचमी के दिन गुरु दर्शन के बाद गुरुवर के विशेष इंगित से दादर पधारे और भगिनी- भ्राता के परस्पर दर्शन हुए फिर मर्यादा महोत्सव के बाद पुनः दादर पधार गए। एक अच्छा सुयोग मिल गया। अंत में संथारा पूर्वक समाधिमरण प्राप्त किया। साध्वी श्री की आत्मा निःश्रेयस् प्राप्ति की दिशा में गतिमान रहे, यह काम्य है।