ज्यों-की त्यों धर दीन्हि चदरिया

ज्यों-की त्यों धर दीन्हि चदरिया

जिनका जीवन पानी की तरह निर्मल, गतिशील, फेन की तरह उज्जवल, पवित्र, शशांक की तरह तेज चाल, खिलते पुष्प सी चेहरे की मुस्कान, गोरख विद्या से सम्मोहित करने वाले मधुर वचन और कबीरजी के शब्दों में 'ज्यों-की त्यों धर दीन्हि चदरिया' की कहावत को आत्मसात करने वाली एक दिव्य आत्मा- शासनश्री साध्वी सोमलताजी महाराज। अपनी साधनारूपी सुरभि से सबको सुंगधित कर और साधु का अन्तिम मनोरथ स्वीकार कर सदा-सदा के लिए इस दुनिया से विदाई ले ली। इतिहास पुरुष, नवसृजनकर्ता आचार्यश्री तुलसी के निर्देशानुसार साध्वी प्रमुखाश्री लाडांजी के कर कमलों से संयमरत्न ग्रहण कर, ग्यारह वर्षों तक गुरुकुलवास का दुर्लभ अवसर प्राप्त कर, स्वयं का जीवन धन्य बनाया। श्रद्धा के रंग से रंगा हुआ, प्रमोद भावना से मुखरित, सेवाभावना से युक्त साध्वीश्री का जीवन हम सभी साध्वियों के लिए प्रेरणासोत था।
ई.सन् 2020 में 'शासनश्री' साध्वी पद्मावतीजी और 'शासनश्री' साध्वी सोमलता जी का एक महीने का प्रवास, सहवास वह मधुर यादें एवं दूध-पानी की तरह घुलनसार स्वभाव हृदयरूपी स्लेट पर हमेशा के लिए अंकित हो गया। अंतिम समय में शारीरिक अस्वस्थता बहुत होते हुए भी दृढ़ मनोबल का परिचय दिया। संकल्पशक्ति के साथ स्वयं ने ही तेले का प्रत्याख्यान कर वीरता का परिचय दिया। सहवर्तिनी सभी साध्वियों के सहयोग से एवं तपोमूर्ति भाई महाराज मुनि कमल कुमार जी के योग से मंदिर के गुंबज की तरह संयम को शिखर चढ़ाया एवं शीघ्र ही अपने मनोरथ को साकार, सिद्ध कर लिया।
आदरणीया साध्वी शकुन्तला जी महाराज, साध्वी संचितयशाजी, साध्वी जागृतप्रभाजी, साध्वी रक्षितयशाजी अग्लान भाव से सेवाकर शासनश्रीजी की चित्त समाधि, संयम में सहयोगी तो बनी है पर संघ प्रभावना का भी कार्य किया है। सेवा भावना की जितनी अनुमोदना करें उतनी कम है। अग्रणी ऋण से यात्किंचित उऋण होने का सुअवसर प्राप्त हुआ। सभी साध्वियां इस विषम परिस्थिति को धैर्य के साथ सहन कर चित्त समाधि रखें। यही मंगलकामना।