समत्व योग की साधिकाः साध्वी सोमलताजी
सहिष्णुता की प्रतिमूर्ति साध्वी प्रमुखाश्री लाडांजी के कर कमलों से एक मात्र दीक्षित साध्वी सोमलताजी हमारे धर्मसंघ की एक दीपती साध्वी थी। वे प्रतिभा संपन्न थी, गायक थी और गीतकार भी थी। कुशल प्रवचनकार थी। मैंने अनुभव किया उनकी भाषा के पुद्गल शुभ थे। श्रोताओं को प्रियता की अनुभूति होती थी। उनकी योग्यता का अंकन करते हुए गुरुदेव श्री तुलसी ने उनको अग्रणी का दायित्व सौंपा। वे जहां भी गई, अपना प्रभाव छोड़ा और धर्मसंघ की विशेष प्रभावना की। पिछले कई वर्षों से बहुत सारी अनुकूलताएं होते हुए भी वे स्वास्थ्य की दृष्टि से प्रायः संघर्ष करती रही। फिर भी वे मन से, भावनाओं से प्रायः स्वस्थ रही। देह भाव से ऊपर उठकर आत्मभाव में, स्वभाव में रमण करती रही। तीव्र असातोदय में भी उन्होंने जो समत्व का, आत्मलीनता का परिचय दिया वह अद्भुत था। साध्वी सोमलताजी विशेष सौभाग्यशालिनी
थी कि उन्हें मोहमयी मायानगरी मुम्बई में परम पूज्य कल्याण कल्पतरू युगप्रधान आचार्य प्रवर श्री महाश्रमण जी की पावन सन्निधि में गुरुकुलवास में रहने का दुर्लभ योग मिला। साध्वी प्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी तथा साध्वीवर्या संबुद्धयशाजी की सेवा और संभाल में रहकर उन्होंने विशेष धन्यता का अनुभव किया। उग्रविहारी, तपोमूर्ति मुनिश्री कमल कुमारजी स्वामी का प्रलंब विहार कर पधारना, सेवा और समाधि प्रदान करना, मानों दोनों की साधना और संकल्प शक्ति का चमत्कार था। अंतिम समय में अनशन पूर्वक पार्थिव शरीर को त्याग कर वे निर्बंध बन गई। साध्वी शकुंतलाश्री जी, संचितयशाजी, जागृतप्रभाजी, रक्षितयशाजी ने आत्मीय भाव से सेवा कर उनकी समाधिपूर्ण साधना में सहयोगी बनी, वह भी प्रशस्य है। साध्वी सोमलता जी प्रयाण कर गई, पर उनकी सुयश सुरभि संघ उपवन में सदा महकती रहेगी। उनके आत्मोदय की यात्रा वीतरागता का वरण करे, मंगलकामना।