अर्हम
साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभा
(1) विकासोत्सव का यह त्योहार
बना है पट्टोत्सव आधार।
आर्यवर महाप्रज्ञ उपकार
हो रहा इससे गण गुलजार॥
(2) द्वितीया कार्तिक की श्रीकार
उजालों की शुभ हुई फुहार।
आ गए तुलसी बन अवतार
उदित मानो विधु सौम्याकार॥
(3) देखकर तुलसी का दीदार
मिला माँ को मुक्ता-भंडार।
ज्येष्ठ भ्राता सारे दिलदार
सहज पाया बहनों का प्यार॥
(4) सीख शाला का शिष्टाचार
बढ़ाई ज्ञानार्जन रफ्तार।
देख प्रतिभा में नया निखार
बनाया मॉनीटर दमदार॥
(5) लाडनूं में गुरु-साक्षात्कार
हृदय से जुड़ा हृदय का तार।
प्रकट कोई पिछला संस्कार
उत्स की खोज महादुश्वार॥
(6) जगा मन में सपना सुकुमार
बसाऊँ चरणों में संसार।
करूँ निज आत्मा का उद्धार
बताए माँ को हृदयोद्गार॥
(7) मिला चम्पक मुनि का सहकार
मगन मुनि करुणा का ना पार।
खुला श्री गुरुवर का दरबार
मनोरथ करना है साकार॥
(8) बहन क्यों भटके भव-कान्तार
दिया उसकी दीक्षा का तार।
भ्रात मोहन को खुशी अपार
सुना जब भगिनी का निस्तार॥
(9) कहा माँजी के चरण जुहार
बनाना क्या सबको अनगार?
सहम बोली माँ साहस धार
तुझे सौंपा पूरा अधिकार॥
(10) अभी तो मेरा नहीं विचार
अनुज की वय कच्ची अवधार।
करूँगा चिन्तन समय निहार
करे क्यों कोई फिर तकरार?
(11) खड़े हो प्रवचन में इक बार
हौसले का लेकर हथियार।
करूँ ना मैं विवाह-व्यापार
कराओ त्याग मुझे करतार!
(12) त्याग तुलसी! तीखी तलवार
समझपूर्वक करना स्वीकार।
आज मैं खुद करता इकरार
करो प्रभु! मेरी नैया पार॥
(13) हुए सुन मोहन चित्राकार
छोड़ देगा तुलसी घर-बार।
रोकना अब इसको बेकार
प्रार्थना की गुरु से साभार॥
(14) पूज्यश्री कालू करुणागार
निवेदन करके अंगीकार।
शीघ्र दीक्षित कर किया विहार
अचानक फला भाग्य मन्दार॥
(15) मिली शिक्षाएँ विविध प्रकार
सध गया समुचित साध्वाचार।
अर्हता ने पाया विस्तार
हस्तगत लघु वय में गणभार॥
(16) बन गए तुलसी पहरेदार
शुरू की शासन की संभार।
कसे वीणा के उलझे तार
शून्य में प्राणों का संचार॥
(17) विरोधों के अनगिनत प्रहार
कभी ना मानी उनसे हार।
मिला बेहद आदर-सत्कार
नहीं छू पाया अहं लिगार॥
(18) विलक्षण वाणी का इजहार
विलक्षण गीतों की झंकार।
विलक्षण गलती पर फटकार
विलक्षण थी उनकी पुचकार॥
(19) विलक्षण थे वे सिरजनहार
विलक्षण था उनका व्यवहार।
लगाया ग्रंथों का अम्बार
पढ़ें हम उनको बारम्बार॥
(20) तेज जब बहता वलयाकार
दु:ख दुविधा कर देता क्षार।
अनाड़ी ढह जाता अनिवार
हुआ पैदा सबमें इतबार॥
(21) स्निग्धता के प्रभु पारावार
बरसते थे बन धारासार।
विकस्वर होते दिल-कचनार
धरा-अम्बर में जय-जयकार॥
(22) किया सक्षम प्रतिनिधि तैयार
सौंप उसको गण की पतवार।
बने गुरुवर तुलसी निर्भार
विकासोत्सव उसका उपहार॥