संबोधि

स्वाध्याय

संबोधि

आत्मपुराण में लिखा है- 
'कामेन विजितो ब्रह्मा, कामेन विजितो हरिः। 
      कामेन विजितो विष्णुः, शक्रः कामेन निर्जितः॥'
काम ने ब्रह्मा को परास्त कर दिया, काम से शिव पराजित हैं, विष्णु को भी काम ने जीत लिया और इन्द्र भी काम से पराजित है। संसार इससे अतृप्त है। इस दृष्टि से वैज्ञानिकों की बात ठीक है। कबीर ने इसी सच्चाई को प्रकट करते हुए कहा है-'विषयन वश त्रिहुं लोक भयो, जती सती संन्यासी।' इसके पार पहुंचना बड़े-बड़े योगी और मुनियों के लिए भी सहज नहीं है। कुछ ही व्यक्ति इसके अपवाद होते हैं, जो इस विराट ऊर्जा को परमात्मा की ऊर्जा के साथ संयुक्त कर देते हैं। शिव और शक्ति का संयोग साधना है। इस स्वाभाविक शक्ति को कैसे ऊपर उठाया जा सके और कैसे परमात्मा की विराट ऊर्जा में इसका प्रयोग किया जा सके? साधक यदि इसमें दक्ष होता है तो शनैः शनै वह अपने को इस योग्य बना सकता है। यहां कुछ प्रयोग दिए हैं। इससे पूर्व हमें यह जान लेना चाहिए और स्वीकार कर लेना चाहिए कि काम वासना एक मौलिकवृत्ति है, सहज है। यह सृष्टि काम का ही विस्तार है। काम की निंदा और घृणा करने से वह नष्ट नहीं होता और न केवल दमन करने से। काम जन्म भी देता और मारता भी है। कहा है-मरणं बिन्दुपातेन, जीवनं बिंदुधारणात्। ऊर्जा का क्षीण होना मृत्यु है और उसका संरक्षण जीवन है। 
'खणमित्त सुक्खा बहुकाल दुक्खा'- सुख स्वल्प है और दुःख अनल्प है। काम–वासना के सुख से अतृप्त व्यक्ति पुनः उसी सुख के लिए काम–वासना में उतरता है। वह जो थोड़ा सा सुख है, वह है-दो के मिलन का। मनोवैज्ञानिकों ने यह स्वीकार किया है– इस सुख की झलक ही आदमी को ध्यान समाधि की ओर प्रेरित करती है। ध्यान में व्यक्ति परम के साथ मिलता है। काम से मुक्त होने के लिए ध्यान है। गहन ध्यान समाधि में द्वैत नहीं रहता। इसलिए काम-ऊर्जा को ध्यान में रूपांतरित करना आवश्यक है। काम ऊर्जा नीचे है, मूलाधार में स्थित है और परमात्मा ऊपर सहस्रार में स्थित है। उस ऊर्जा को सहस्रार तक ले जाना साधना है। उस परम मिलन के क्षण को शिव-शक्ति का योग कहा है– 'हंसः'–हं शिव है और सः शक्ति। इसके विविध प्रयोग हैं। चित्त की एकाग्रता और निर्विचारता ऊर्जा को ऊपर उठाती है और सहस्रार में पहुंचाती है। कुछ मननीय बिन्दु-
१. सबसे पहले आवश्यक है- जागरण। साधक अपने मन, वाणी और शरीर के प्रति पूर्ण होश से भरे रहने का सतत प्रयत्न करे। जब भी चित्त में काम का तूफान उठे, उसे देखे, विचार करे, यह क्या हो रहा है? मैं कहां जा रहा हूं? क्यों अपना होश खो रहा हूं? क्या मिला है इससे? काम–वासना के साथ बहे नहीं, रुके और ध्यान करे, मन को ऊपर ले जाए और उसे सहस्रार पर स्थिर करे।
 २. मूलबंध–श्वास का रेचन कर नाभि को भीतर सिकोड़ कर गुदा को ऊपर खींचना मूलबंध है। मूलबंध का अभ्यास और पनः–पनः प्रयोग भी काम–विजय में सहायक है। 
३. आसन–सिद्धासन पद्मासन, पादांगुष्ठासन आदि भी इसमें उपयोगी होते हैं। काम-केन्द्रों पर दबाव डालकर वासना को निर्जीव किया जा सकता है। 
४. योगियों ने इसके लिए विविध प्राणायामों का प्रयोग भी किया है जो वीर्यशक्ति को सहस्रार में स्थित कराता है, वैसा अभ्यास भी साधक के लिए अपेक्षित है। 'श्वास विज्ञान' पुस्तक में से एक प्राणायाम का प्रयोग नीचे प्रस्तुत किया जाता है- 
जननशक्ति को परिवर्तित करना - प्राणशक्ति रज या वीर्य में संगृहीत है। जननेन्द्रिय प्राणियों के जीवन में प्राण का एक कोष रूप है। उत्पादन उसका कार्य है। इस शक्ति का प्रयोग विध्वंस में भी किया जा सकता है और विकास में भी। इस काम शक्ति को विध्वंसात्मक न बनाकर विकास में योजित करना मानव की बुद्धिमत्ता है। इसका अभ्यास सरल है। ताल युक्त श्वास एक साधन है। तालयुक्त श्वास का महत्त्व अत्यंत स्पष्ट और प्रभावकारी है तथा अनेक विध प्रयोगों को सफल बनाने वाला है।