महावीरों के सिद्धांतो को समझने और प्रयोग करने का प्रयास करें
भगवान महावीर का जन्म वर्तमान बिहार राज्य के क्षत्रिय कुंडग्राम में माता त्रिशला एवं पिता सिद्धार्थ के घर हुआ। आपके बड़े भाई का नाम नन्दी वर्धन था। भगवान महावीर इस अवसर्पिणी काल के चौबीसवें तीर्थंकर कहलाये। आप ही एक मात्र ऐसे तीर्थंकर हुए जो दो माताओं की कुक्षी में रहे। पहले आप देवानंदा ब्राह्मणी की कुक्षी में 82 दिन रहे परंतु देवेन्द्र के आदेशानुसार गर्भ का परिवर्तन किया गया और माता त्रिशला की कुक्षी से आपका जन्म हुआ। तीर्थंकरों के पंच कल्याणक होते हैं- च्यवन, जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान और निर्वाण। इन पांचों समय देवता उत्सव मनाते हैं, नारकी के जीव भी प्रसन्न होते हैं। नरक और देव गति में पैदा होने वाले जीवों को अवधि ज्ञान होता है वे अवधि ज्ञान के योग से जानकर पांचों समय तीर्थंकर बनने वालों का स्वागत सम्मान करते हैं। जो जीव तीर्थंकर बनने वाले होते हैं उनको भी तीन ज्ञान मति, श्रुत और अवधि गर्भकाल से ही होते हैं।
भगवान महावीर ने गर्भ में ही यह संकल्प कर दिया था कि जब तक माता-पिता जीवित रहेंगे तब तक दीक्षा नहीं लूंगा। इसी कारण लगभग 28 वर्ष तक आप गृहस्थ जीवन में रहे। जब माता-पिता का स्वर्गवास हो गया तब आपने अपने बड़े भाई से दीक्षा की अनुमति मांगी पर अनुमति नहीं मिलने पर दो वर्ष तक घर में साधना करते रहे।
आपने तीस वर्ष की अवस्था में दीक्षा स्वीकार की और साढ़े बारह वर्ष घोर तपस्या के बाद आपको केवल ज्ञान प्राप्त हुआ। आप साधना काल में निर्जन स्थानों में रहकर ध्यान-मौन करते, तपस्या में पानी का भी सेवन नहीं करते। आपकी तीव्र तपस्या के आंकड़ों को सुनकर-पढ़कर हृदय कांप उठता है। आपकी प्रथम देशना में कोई भी व्रती नहीं बना परन्तु दूसरी देशना से अंतिम तक की आपकी देशना चार तीर्थ की वृद्धि करने वाली साबित हुई। आपके शासन काल में चौदह हजार साधु और छत्तीस हजार साध्वियां दीक्षित हुए। आपने दो प्रकार के धर्म की व्याख्या की- महाव्रत और अणुव्रत।
भगवान महावीर के मुख्य सिद्धांत थे- अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकांत। अतीत में इन्हीं से समस्या का समाधान होता था, वर्तमान में भी अगर इन तीनों पर गहराई से चिंतन किया जाये तो स्वस्थ व्यक्ति, स्वस्थ परिवार, स्वस्थ समाज, स्वस्थ देश और स्वस्थ विश्व का सपना साकार हो सकता
है। हिंसा, परिग्रह और एकांत चिंतन व्यक्ति को कभी अमन चैन से रहना नहीं सीखा सकता है।
भगवान महावीर ने साहस कर महिलाओं को दीक्षित किया उनका कथन था कि महिलाओं को भी मोक्ष का अधिकार है। महावीर के समय में महिलाओं के साथ बड़ा ही अत्याचार चल रहा था, सती प्रथा, दास प्रथा जैसी कुरूतियां व्यापक बनी हुई थी। महावीर ने अपने उपदेशों से सतीप्रथा और दासप्रथा का नामोनिशान मिटा दिया। आज हम उच्च पदों पर आसीन महिलाओं को देखते हैं उसे भगवान महावीर के ही सार्थक श्रम का परिणाम समझना चाहिये। भगवान महावीर जितने आध्यात्मिक थे उससे अधिक वे वैज्ञानिक थे। आज हम जितने वैज्ञानिक उपकरण देख रहे हैं, यह सब अधिक उनकी दिव्य देशना का ही प्रताप मानना चाहिये। भगवान महावीर ने कहा मैं जो उपदेश देता हूं मेरी वाणी लोक के अंत तक पहुंचती है, मैं यहां बैठा हूं पर सर्वत्र दिखाई दे रहा हूं। ऐसी बातें श्रदालु तो सुनकर प्रसन्न होते परंतु अन्य लोग उपहास करते। परंतु आज हम देखते हैं मोबाईल और टी.वी. के कारण दूर से भी आसानी से सुना और देखा जा सकता है। उन्होंने कहा था कि पानी का अपव्यय मत करो, पानी की एक बूंद में असंख्य जीव हैं, जिसको आज के वैज्ञानिको ने सिद्ध कर दिया। उन्होंने कहा कि शक्ति के लिए ध्यान का अभ्यास करो जिससे स्मरण शक्ति भी अच्छी रहेगी।
आज हम देखते हैं कि ध्यान का क्रम छूटता जा रहा है जिससे स्मरण शक्ति का ह्रास होता जा रहा है। उन्होंने कहा था गुस्सा विकास का लक्षण नहीं है, क्षमा से व्यक्ति आत्मा और स्वास्थ्य का ही नहीं परिवार, व्यापार, सत्कार सब में आगे बढ़ता है। आज हम इसे अच्छी तरह से देख पा रहें हैं। घर-घर में तनाव, टकराव, अलगाव, मन-मुटाव, दुराव जो बढ़ रहा है उसमें मुख्य कारण गुस्सा ही है। यह वर्ष भगवान महावीर का 2550 वां निर्वाण वर्ष है हम अधिक से अधिक भगवान के उपदेशों को, सिद्धांतो को पढ़ने, समझने और प्रयोग करने का प्रयास करें जिससे यह देव दुर्लभ मनुष्य जन्म सफल ही नहीं सुफल हो। केवल आयोजनों से हम अपने जीवन को सफल नहीं कर सकते हम उस प्रभु की वाणी को आत्मसात करके सिद्ध बुद्ध बन सकते हैं। आयोजनों के साथ-साथ महावीर के सिद्धांतों को अपनाने का प्रयास करे।