मोक्ष के लिए आवश्यक है अहंकार के हाथी से नीचे उतरना : आचार्यश्री महाश्रमण
भारतीय धर्म दर्शन में मोक्ष की बात आती है। जीवन का या आत्मा का परम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति है। सर्व दु:ख मुक्ति, हमेशा के लिए एकांत सुख की प्राप्ति मोक्ष की स्थिति में होती है। साधुपन लिया जाता है और श्रावकत्व भी ग्रहण किया जाता है, इसके भी मूल में मोक्ष प्राप्ति का लक्ष्य होता है। मोक्ष की प्राप्ति में वे व्यक्ति असफल हो जाते हैं जो चण्ड होते हैं, गुस्सेल प्रकृति वाले होते हैं। उपरोक्त विचार युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी ने नारायण गांवहाण में अपने मुख्य प्रवचन में समुपस्थित जन समूह को सम्बोधित करते हुए रखे।
आचार्य प्रवर ने आगे फरमाया कि भगवान महावीर के जीवन वृत्त में चण्ड कौशिक सर्प का प्रसंग आता है। पूर्व भव में चण्ड प्रकृति के कारण वह सर्प की योनि में पैदा हुआ। भगवान महावीर के संपर्क से, प्रतिबोध प्राप्त कर उसे जाति स्मरण ज्ञान हो गया। मनुष्य की योनि से तो वह पतन की ओर आया पर तिर्यंच गति से साधना कर वह देवगति में चला गया।
राग नहीं है, द्वेष नहीं है,
किंचित भी संक्लेश नहीं है।
भावों में आवेश नहीं है,
संतों का संदेश यही है।।
चण्डता, आवेश हमारे लिए अहितकर है। वीतरागता की स्थिति, क्षमा की स्थिति उच्च कोटि की होती है। गुस्से वाला व्यक्ति मानो काले नाग की तरह डसने वाला होता है। एक सांप के जिसके पास दंत नहीं है, गरल नहीं है वह शांति रखे वह सामान्य बात है और एक सांप जो दंत और गरल होते हुए भी क्षमा भाव रखे वह महान है।
कहा गया है-
महान वह होता है जो विष को पीना जानता है,
आने वाली हर सांस को जीना जानता है।
बातों में माहिर कई मिलेंगे दुनिया में,
सम्मान वह पाता है जो समर वेला में सीना तानता है।।
आचार्य श्री ने आगे फरमाया कि कम खाओ, स्वस्थ रहो, गम खाओ, मस्त रहो और नम जाओ, प्रशस्त रहो। कम खाना, ऊनोदरी करना स्वास्थ्य के लिए अच्छा है। गम खाना अर्थात् मौके पर मौन और क्षमा धारण कर लेना। नम जाना अर्थात् जो पूज्य हैं, आराध्य हैं, बड़े हैं उनके सामने नम जाना, प्रशस्त रहना। एक आदमी झुकता है तो दूसरा भी झुक जाता है।
दूसरों को झुकाना है तो पहले खुद को झुकना चाहिए। कहां झुकना और कहां नहीं झुकना, यह विवेक, सिद्धांत या प्रोटोकॉल की बात हो जाती है। अहंकार के कारण नहीं झुकना बढ़िया बात नहीं होती। खुद झुको तो दूसरे भी झुक सकेंगे। शास्त्रकार ने बताया है की क्षमा वीर आदमी का आभूषण है, सक्षमता होने पर भी क्षमा रखना बड़ी बात है। जो चण्ड होता है उसे मोक्ष नहीं मिलता। चण्डता के अतिरिक्त बुद्धि और धन का अहंकार भी मोक्ष मार्ग में बाधक बन सकता है। अहंकार के हाथी से नीचे उतरना आवश्यक है।
यदि छोटा भाई पहले दीक्षित हो गया और बड़ा भाई बाद में साधु बना तो बड़ा भाई छोटे भाई को वंदन करें यह विधि है। पूज्यवर ने संयम पर्याय के बारे मे बताते हुए कहा कि हमारे धर्मसंघ में मुनि राजकरण जी स्वामी पहले साधु बन गए थे। उनके पिता मुनि गंगाराम जी स्वामी बाद में साधु बने थे तो पिता के लिए भी बेटा वंदनीय बन गया। बड़ा भाई, छोटा भाई, पिता-पुत्र यह उम्र की बात संसार तक ठीक है, दीक्षा के संदर्भ में उम्र की बात गौण है।
हमारे मुनि ध्यानमूर्ति जी ने आठवें दशक में दीक्षा ली तो मैंने इनको पहले सावचेत किया था कि तुम इतनी बड़ी उम्र के हो, घर के मुखिया रहे हुए हो, इतने पढ़े-लिखे हो, दीक्षा ले लोगे तो छोटे संतों को भी वंदना करनी होगी। तब इनका मंतव्य था कि यह तो बहुत ही सौभाग्य की बात है। आचार्य प्रवर ने प्रसंगवश फरमाया कि मुनि श्री मगनलाल जी स्वामी फरमाते थे कि अहंकार किस बात का करना है? हमारा जीव पता नहीं कहां-कहां गया होगा, कितनी बार बोर की गुठली बनकर
लोगों के पैरों में आया होगा। हमारी आत्मा ने कहां-कहां जन्म लिया होगा। शास्त्र कार ने कहा कि बुद्धि का, ऋद्धि का घमंड नहीं करना चाहिए। जो चुगल खोर है, अनुशासित नहीं रहता है, विनय वान नहीं है, असंविभागी है वह भी मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता है। हमें अहंकार से बचने का प्रयास करना चाहिए। अहंकार, अभिमान को छोड़कर निरहंकार बनने का प्रयास कर मोक्ष की दिशा में बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।