मनुष्य को एकांत सुख देने वाला है धर्म : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

मनुष्य को एकांत सुख देने वाला है धर्म : आचार्यश्री महाश्रमण

तीर्थंकर के प्रतिनिधि आचार्य श्री महाश्रमणजी ने बीड़ प्रवास के दूसरे दिन अमृत देशना प्रदान कराते हुए फरमाया कि जिस व्यक्ति का मन सदा धर्म में रत रहता है, उसे देव भी नमस्कार करते हैं। मनुष्य मनुष्य को नमस्कार करे यह तो सामान्य बात है, मनुष्य देव को नमस्कार करे यह भी सामान्य बात हो सकती है, परन्तु स्वर्ग में रहने वाले देव किसी मनुष्य को नमस्कार करें यह विशेष बात हो जाती है। धर्म की यह महिमा है कि धर्म होने से देव भी नमस्कार करते हैं। मनुष्य को एकान्त सुख, सर्व दुःख मुक्ति दिलाने वाला धर्म होता है। वह धर्म अहिंसा, संयम और तप है। इन तीन के सिवाय कोई और आध्यात्मिक धर्म नहीं होता है।
प्रश्न है कि अहिंसा धर्म क्या है? सभी प्राणियों को अपनी आत्मा के समान समझना और उनके प्रति अनुकम्पा-मैत्री का भाव रखना अहिंसा है। हमारी दुनिया में अनन्त-अनन्त संसारी जीव हैं जो जन्म-मरण करने वाले हैं। जीवों के प्रति अहिंसा की भावना होनी चाहिए, हिंसा से बचने का प्रयास होना चाहिए। दुःख हिंसा से प्रसूत होते हैं। हिंसा के पीछे राग-द्वेष के भाव भी जुड़े रहते हैं। आदमी के मन में समता-अभय के भाव हों। डरना भी दुर्बलता है, तो डराना भी दुर्बलता है। अभय से आदमी अहिंसा की अच्छी साधना कर सकता है। ऐसे जनों को नमस्कार है किया गया है जिन्होंने भय को जीत लिया है। हिंसा का एक कारण भय हो सकता है, हिंसा लोभ के कारण भी हो सकती है। अहिंसा को परम धर्म कहा गया है तो अपरिग्रह को भी परम धर्म कहा गया है। परिग्रह हिंसा का कारण बन सकता है, आक्रोश के कारण से भी आदमी हिंसा कर सकता है। शास्त्र की वाणी है- किसी को भी जान बूझकर मारो मत, यह अहिंसा धर्म है। सब प्राणी जीना चाहते हैं कोई मरना नहीं चाहता।
यह धर्म सा नहीं होनी चाहिये। गृहस्थ जीवन में भी जितनी अहिंसा रह सके, रखने का प्रयाध्रुव और शाश्वत है। हम अहिंसा धर्म की आराधना करें। साधु तो अहिंसा मूर्ति होते हैं। साधु तो यह सोचें कि मेरे प्राण भले चले जाए पर मेरे कारण से किसी जीव की हिंस करें। गृहस्थ भी अणुव्रतों को, बारह व्रतों को पालने का प्रयास करे। गृहस्थ जीवन में भी अहिंसा, संयम की साधना का प्रयास करे। अणुव्रत में भी संयम की बात है, सद्‌भावना, नैतिकता और नशामुक्ति जीवन में रहे। जीवन में सद्गुणों का महत्त्व है, जीवन में अच्छी विशेषताएं हो। तप भी धर्म है, तपस्या बाह्य और आभ्यंतर भी होती है। अहिंसा, संयम और तप हमारे जीवन में रहे। हम मोक्ष की साधना में आगे बढ़ने का प्रयास करें।
मुख्य मुनि महावीर कुमार जी ने कहा कि भगवान महावीर ने सबको जागने की प्रेरणा दी। जो जागता है, वह धन्य होता है। गुरु शिष्यों को जागृति का सन्देश देते हैं। जागने वाले का श्रुत ज्ञान स्थिर और परिचित रहता है। जो मुनि स्वाध्याय नहीं करता, जो सोता है उसका श्रुत ज्ञान स्थिर नहीं रह पाता। भगवान ने कहा है कि पाप कार्य में प्रवृत लोगों का सोना अच्छा है, धर्म कार्य में प्रवृत्त लोगों का जागना अच्छा है। जो ज्ञानी होते हैं वे सोते हुए भी जागृत रहते हैं। आचार्य श्री महाश्रमण जी अपनी यात्राओं के माध्यम से विलास से विरक्ति का, जागृति का संदेश दे रहे हैं। साध्वीवर्या संबुद्धयशाजी ने कहा कि हमें मनुष्य जीवन प्राप्त हुआ है, उसके अच्छे उपयोग का सद्ज्ञान कराने वाले गुरु होते हैं। हम सौभाग्यशाली हैं कि हमें ऐसे गुरु प्राप्त हैं जो हमारे जीवन को सार्थक और सफल बनाने वाले होते हैं। सम्यक् मार्ग को प्राप्त करने के लिए सद्गुरु का मिलना आवश्यक है। सच्चे गुरु अज्ञान का नाश कराने वाले, आगम अर्थ का ज्ञान कराने वाले, पुण्य-पाप का भेद कराने वाले, करणीय और अकरणीय का भेद करने वाले होते हैं।
पूज्यवर के स्वागत में मुनि लक्ष्य कुमार जी ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। तेरापंथी सभा-बीड के अध्यक्ष नेमकरण समदड़िया, जैन समर्थ गच्छ के अध्यक्ष विजयराज जैन, दिगम्बर जैन समाज के अध्यक्ष नरेन्द्र महाजन व सुभाष जैन ने पूज्य प्रवर की अभिवंदना में अपने विचार व्यक्त किए। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों एवं तेरापंथ कन्या मंडल ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। तेरापंथ महिला मण्डल, तेरापंथ युवक परिषद व जैन समाज की महिलाओं ने पृथक पृथक गीत का संगान किया। बीड की बहन-बेटियों एवं अम्बाजोगाई तेरापंथ महिला मण्डल ने भी गीत का संगान किया। महाराष्ट्र सरकार के मंत्री जयदत्त अन्ना क्षीरसागर ने भी आचार्यश्री के दर्शन अपनी विचार अभिव्यक्ति किए। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।