दूसरों की पीड़ा में नहीं आत्मोत्थान में बनें सहायक: आचार्यश्री महाश्रमण
जिनशासन प्रभावक आचार्य श्री महाश्रमणजी आज अपनी धवल सेना के साथ पीठी पधारे। मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए महातपस्वी ने फरमाया कि हमारी दुनिया में मित्र भी मिल सकते हैं, तो शत्रु भी मिल सकते हैं। हम एक अपेक्षा से किसी को अपना मित्र या शत्रु भी मान सकते हैं, व्यवहार के आधार पर ऐसा चिन्तन हो सकता है। परन्तु धर्म का सिद्धान्त है कि सबसे बड़ा कोई शत्रु हमारी आत्मा ही हो सकती है। जितना नुकसान हमारी आत्मा हमारा कर सकती है, उतना नुकसान अन्य कोई शत्रु भी नहीं कर सकता। अन्य कोई शत्रु तो तकलीफ दे सकता है, गला काट दे या जान से मार दे, इससे ज्यादा क्या कर सकता है। शरीर भले नष्ट हो जाये पर आत्मा अमर है, आत्मा कभी नहीं मरती। कोई भी ऐसा शस्त्र दुनिया में नहीं है, जो आत्मा को खत्म कर सके। परन्तु हमारी आत्मा जब बहुत बड़ी दुश्मन बन जाती है तो कितने जन्मों में तकलीफ पानी पड़ सकती है, नुकसान भोगना पड़ सकता है। इसलिए आर्ष वाणी में कहा कि कंठ को काटने वाला दुश्मन भी उतना नुकसान नहीं कर सकता, जो नुकसान हमारी दुरात्मा बनी हुई आत्मा कर सकती है।
जो आदमी दया विहीन हैं, धर्माचरण नहीं करने वाले हैं, अहिंसा, संयम, तप की आराधना में रुचि नहीं लेने वाले हैं, जब बाद में मौत निकट आती है तब सोच सकते हैं कि अरे! मैंने धर्म नहीं किया, पाप ज्यादा किया है, अब मेरा क्या होगा? अगली गति कहां मिलेगी? अब मुझे नरक में जाना पड़ेगा। धर्म के पथ पर चलने वाला अच्छी गति में जा सकता है और पाप कर्म ज्यादा करने वाला अधोगति में पैदा हो सकता है। हम ध्यान दें कि हम मनुष्य हैं इस मनुष्य जन्म के बाद दुर्गति में न जाता पड़े इसलिए अहिंसा, संयम और तप रूपी धर्म की आराधना करने का प्रयास करें। छोटी-छोटी हिंसा से भी बचें। दूसरे को पीड़ा नहीं पहुँचानी चाहिए, हो सके तो किसी का आत्मोत्थान करें। यह चिंतन करें कि मुझे सुख प्रिय है, तो अन्य जीवों को भी सुख प्रिय हो सकता है। जो व्यवहार मैं दूसरों से नहीं चाहता वह व्यवहार मैं भी दूसरों के साथ नहीं करुं। पापों से जितना हो सके बचने का प्रयास करें। धर्म के मार्ग पर चलने का प्रयास करें। छोटे-छोटे नियम जीवन में आ जाये तो आदमी अच्छी प्रगति कर सकता है। दुर्गति से बच सकता है। हम धर्म के पथ पर चलने का प्रयास करें। पूज्यवर के स्वागत में पीठी गांव के सरपंच ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि भी दिनेश कुमार जी ने किया।