अद्भुत श्रोता हैं आचार्य श्री महाश्रमण

अद्भुत श्रोता हैं आचार्य श्री महाश्रमण

किसी भी व्यक्ति को देखने का अपना-अपना नज़रिया होता है। श्री राम को कोई नीतिधर राजा के रूप में देखता है तो कोई पतित पावन भगवान के रूप में। कोई उनका मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप का आकलन करता है तो कोई मुक्त आत्मा के रूप का। इसी प्रकार श्री कृष्ण की कहानी है। विश्व की लगभग 8.02 अरब मनुष्यों की अभिवृत्तियों को प्रदर्शित करने वाला एकमात्र ऐसा पात्र है जिसमें हर इंसान अपने पसंद का कोई न कोई रूप ढूंढ़ सकता है। बड़ा आकर्षक व्यक्तित्व रहा है श्री कृष्ण का। वर्तमान युग में भी एक ऐसे आकर्षक व्यक्तित्व हैं जिनके जीवन के हर कोण में कुछ विलक्षणताएं मुखरित हैं। वाणी भले ही उनकी ज्यादातर मौन रहे। वैखरी वाणी को वे बड़े मापतोल के साथ काम में लेते हैं, लेकिन परा, पश्यन्ती और मध्यमा उनके कार्य संपादन में सदा सक्रिय रहती हैं। इस विलक्षण विशेषता को धारण करने वाले महान व्यक्तित्व का नाम है- आचार्यश्री महाश्रमण।
आचार्य श्री महाश्रमण श्रीधर हैं। सम्यक्त्वश्री, संयमश्री, तपश्री, चारित्रश्री, आगमश्री, अप्रमत्तश्री, लिखितश्री, संकल्पश्री, रूपश्री, स्मितश्री, सेवाश्री आदि अनेक श्रीयां उनके जीवन में प्रतिपल आकर्षण का संचार कर रही हैं। यही वजह है कि इनके सान्निध्य में देश-विदेश से अनेक लोग पहुंचते हैं, इन्हें देखने के लिए, दर्शन की एक झलक पाने के लिए। आने वाले लोग उनके अलग-अलग स्वरूपों के दर्शन कर मन को आह्लादित करते हैं। मैंने भी उनके कई रूप देखे हैं उनमें से एक है- वे अद्भुत श्रोता हैं।
अद्भुत श्रोता
आचार्यश्री महाश्रमण किस तरह के श्रोता हैं? उनके लिए उपमा खोजनी मुश्किल है। फिर भी, यदि कोई उनके लिए उपमा खोजना चाहे तो उसे महापुराण ग्रंथ में डुबकी लगानी पड़ेगी। महापुराण में चौदह प्रकार के श्रोताओं का उल्लेख प्राप्त है-
मृच्चलिन्यजमार्जारशुककंकशिलाहिभिः।
गोहंसमहिषच्छिद्रघटदंशजलौककैः।।
चौदह प्रकार के श्रोता- मिट्टी, चलनी, बकरा, बिलाव, तोता, बगुला, पाषाण, सर्प, गाय, हंस, भैंसा, फूटा घड़ा, डांस और जोंक के समान कहे गये हैं। ये भेद श्रोता के गुण-दोषों से तुलना करके बताये गये हैं। उत्तम कोटि के श्रोता गाय और हंस के समान होते हैं। जैसे गाय खाती तो है घास, लेकिन देती है दूध, वैसे ही जो थोड़ा सा उपदेश सुनकर चिंतन, मनन, और मंथन से ज्ञान के नये रहस्यों को पा लेते हैं वे गाय के समान श्रोता हैं। जो केवल सार वस्तु को ग्रहण करते हैं, वे हंस के समान श्रोता हैं। आचार्य श्री महाश्रमण उत्तम कोटि के श्रोता हैं। उनमें श्रोता के शुश्रूषा, श्रवण, ग्रहण, धारण, स्मृति, ऊह, अपोह और निर्णीत- ये आठों गुण सन्निहित हैं।
श्रोता वक्ता तादात्म्य
आचार्यश्री महाश्रमण शशककर्णी हैं। उनके कानों की संरचना देखेंगे तो लगेगा वे कुछ सुनने को उद्यत हैं, और ऐसा है भी। आप उन्हें कहते जायें वे सुनते जाएंगे। दक्षिण भारत की यात्राओं के दौरान देखा, जब वे श्रद्धा के घरों के आगे से गुजरते, परिवार के लोगों की भीड़ जमा हो जाती। आचार्यश्री एक छोटी टेबल पर बिराज जाते, कोई स्वागत गीत सुनाते, कोई भाषण बोलते, कहीं कहीं बच्चों की प्रस्तुतियां भी हो जातीं। आचार्यश्री बड़े धैर्य के साथ सबको सुनते। स्थान पर आते-आते आधा दिन व्यतीत हो जाता। प्रवचन के समय भी ऐसा ही होता है। आचार्यश्री का मुख्य उद्बोधन हो जाने के पश्चात् जो जाना चाहे, चले जाएं, परंतु आचार्यश्री वहीं बिराजे रहते हैं।
सजग श्रवणेन्द्रिय
आचार्यश्री महाश्रमण की श्रोत्रेन्द्रिय राष्ट्रपति के बॉडीगार्ड की तरह सजग रहती है। दर्शनार्थ आने वाले महानुभावों को भी अपने मन की अभिव्यक्ति देने का अवसर प्रदान किया जाता है। एक बार हम पूर्वी भारत की यात्रा की यात्रा कर रहे थे। एक भाई के मन में काफ़ी कुछ बातें उफ़न रही थीं। मैंने कहा- देखिए, आपकी बातों का समाधान हम तो नहीं कर सकेंगे, आपको जब भी अवसर मिले आप गुरुदेव से निवेदन करें। समाधान वहीं से मिल सकेगा। उसने कहा- मैं पर्युषण के पश्चात् जाने ही वाला हूँ। वे गुरु सन्निधि से लौटे तो संतुष्ट नज़र आ रहे थे। उन्होंने बताया कि उनकी गुरुदेव से क़रीब आधा घंटे बात हुई। सारी बातें निवेदन कर दी। गुरुदेव ने सारी बातें बड़े ध्यान से सुनीं। पूछा भी था कि कुछ और कहना है तो बोलो। मैंने पूछ लिया - गुरुदेव ने क्या फ़रमाया? उन्होंने बताया- गुरुदेव ने कहा आपके विचार बहुत अच्छे हैं। मैंने सोचा- आधे घंटे बात का उत्तर सिर्फ़ पांच शब्दों में! सत्य है- विचारों की गहराई को शब्दों की लंबाई से नहीं मापा जा सकता। न बोलकर जो कहा जाता है वह सटीक होता है। बोलकर कहने से वह हमेशा अधूरा ही रह जाता है। महावीर ने अनेकान्त इसीलिये दिया कि लोग ये जान सके- कथन के आर-पार जो अनकहा है उसको समझे बिना सत्य हाथ नहीं लग सकता।
मोटिवेशनल लिस्नर
आपने बहुत से लोकप्रिय प्रेरक वक्ताओं के नाम सुने होंगे, पर कोई ऐसे जनप्रिय प्रेरक श्रोता का नाम नहीं सुना होगा जो स्वयं चुप रहकर आपको बात करने के लिए प्रेरित करते हों। जो स्वयं न बोलकर भी आपको बहुत कुछ अहसास करा देने का सामर्थ्य रखते हों। तो आज सुन लीजिए वह नाम है- आचार्य श्री महाश्रमण। एक घटना पढ़ी थी- अमेरिका में गृहयुद्ध चल रहा था। लिंकन उसका समाधान खोजने की कोशिश में थे। किसके साथ मशविरा करें? उन्हें अपने एक घनिष्ठ मित्र की याद आयी। उन्होंने मित्र को संदेश भेजा कि उसे एक समस्या पर विचार- मंथन करना है, तुम्हारी आवश्यकता है। मित्र आ पहुँचा। मित्र के समक्ष वे ‘दासों की मुक्ति’ की घोषणा को उचित सिद्ध करने के लिये घंटो तक अपने विचार सुनाते रहे। काफी देर बोलने के बाद उन्होंने हाथ मिलाया और धन्यवाद देते हुए कहा कि आपने मेरी बड़ी सहायता की। मित्र सुनकर हैरान रह गया- कैसी सहायता? मैंने तो कुछ कहा ही नहीं। कहने का अवसर भी तो नहीं दिया। उसे कुछ समझ में नहीं आया। समझ में आएगा भी कैसे?
लिंकन को वास्तव में किसी सलाहकार या सलाह की ज़रूरत नहीं थी, उन्हें तो आवश्यकता थी एक सच्चे श्रोता की, जो केवल उनके मन में उठ रहे विचारों को सुन ले। बस। समाधान तो उनके पास था ही। उन्होंने अपने तर्कों को अकाट्य बनाने के लिए एक छोटा सा रिहर्सल करना चाहा था। लिंकन का उद्देश्य पूरा हो गया।
अटूट धैर्य
लिंकन के मित्र जैसी मित्रता निभाने के लिए अटूट धैर्य की आवश्यकता होती है। लिंकन के मित्र में कितना धैर्य रहा होगा, ये तो वो ही जाने पर आचार्यश्री महाश्रमण ने अपने भीतर एक अद्भुत श्रोता को जन्म दिया है जिसका कोई जोड़ नहीं। अपनी सुनाने वाले तो बहुत मिलेंगे, प्रेरणा और उपदेश देने वाले भी बहुत मिलेंगे लेकिन दूसरों की सुनने वाले नहीं-न तो तारीफ़ न तरक़्क़ी और न ही दुःख-दर्द।
इस युग में परिवारों की हालत और बड़े-बूढ़ों की स्थिति ऐसी बन रही है कि परिवार के साथ रहते हुए भी वे अकेले हैं। समाज में बसते हुए भी वे उजड़े हुए से हैं। इससे मानसिक संतुलन बिगड़ रहा है। अगर उन्हें कोई अच्छा श्रोता मिल जाए तो उनकी आधी बीमारी ऐसे ही ठीक हो जाये।
बुझते हुए दीपकों में फिर से टिमटिमाने की ताक़त आ जाये, यदि उन्हें मोटिवेशनल स्पीकर के स्थान पर मोटिवेशनल लिस्नर मिल जाये। ज्यादा मुश्किल नहीं है मोटिवेशनल स्पीकर बनना, मोटिवेशनल लिस्नर बनने के लिए तो स्वयं को तपाना पड़ता है। आचार्य श्री महाश्रमण हम सबके लिए आदर्श हैं क्योंकि अद्भुत श्रोता हैं।