करुणा सम्राट मेरे आराध्य

करुणा सम्राट मेरे आराध्य

यास्यामीति गुरुक्रमे स लभते
ध्यायंश्चतुर्थं फलम्,
षष्ठं चोत्थितुमुघतोऽष्टममयो
गन्तुं प्रवृत्तोऽध्वनि।
तद्वत् सो दसमं बहिर्गुरुगृहात् प्राप्तस्ततो द्वादशं,
मध्ये पाक्षिकमीक्षते गुरुवरे मासोपवासं फलम्।।
मैं गुरु के पास जाऊं इस चिंतन मात्र से वह उपवास के फल को प्राप्त होता है। उत्थित हुआ बेले का फल, उद्यत हुआ तेले का फल, जाने में प्रवृत्त चार उपवास का फल, मध्य में पहुंचा पखवाड़े का फल एवं गुरु को देखने पर एक मास की तपस्या का फल मिलता है। संस्कृत साहित्य का यह श्लोक अपरम्पार गुरु महिमा को दर्शाता है।
अध्यात्म संपदा की दृष्टि से देखा जाए तो दुनिया का कोई भी देश भारत की तुलना नहीं कर सकता। भारत संतों की पुण्यस्थली व योगियों की योगभूमि है। योगभूमि सरदारशहर में मेरे आराध्य युग संरक्षक महाप्राण युगपुरुष महाश्रमण का दुगड़ परिकर में जन्म हुआ। मंत्री मुनि सुमेरमलजी के हाथों मोहन की दीक्षा का सुअवसर भी इसी भूमि को प्राप्त हुआ। आश्चर्य की बात है जिस भूमि में जन्मे, पले-पुसे, खेले, बड़े हुए उसी भूमि को अपने लाल लाडले को एक महान धर्मसंघ के ग्यारहवें पट्टधर के रूप में देखने का महा अवसर भी उस भूमि को ही उपलब्ध हुआ। धन्य हो गई वह धरा। धन्य हो गई मां नेमा। धन्य हो गया झूमरकुल।
तेरापंथ के 11वें पट्टधर, कलियुग में भी सतयुग की याद दिला रहे हैं। 15वें पदाभिषेक के सुअवसर पर सत्य के महान उद्गाता उर्ध्वचेता महामनीषी के दिव्य रूप की मैं अभिवंदना करती हूं।
महाकवि शेक्सपियर के शब्दों में-
“जिंदगी की कीमत जीने में है जीवन बिताने में नहीं” वास्तव में ही गुरु महाश्रमण का जीवन अध्यात्म की महाऋचा है, आनंद का एक महाग्रंथ है। दिव्य शक्तियों का अक्षयधाम है। बुद्धि, वैभव व प्रज्ञा का अखूट खजाना है।
अहिंसा, करुणा, दया, प्रेम व मैत्री की बलवती सेना निरंतर उनकी सहचरी बनी हुई है।
पदाभिषेक के प्रसंग पर मैं नमन करती हूं आराध्य के चुंबकीय व्यक्तित्व को मैंने पढ़ा सुना कि विश्व का सबसे भारी चुंबक रूस में है, जिसका वजन 40.32 टन है। मैंने अनुभव किया एक चरित्रनिष्ठ, सत्यनिष्ठ, सिद्धांतनिष्ठ, अध्यात्मनिष्ठ एवं तुलसी-महाप्रज्ञ की महनीय कृति महासाधक महाश्रमण की मुखमुद्रा में जो चुंबकीय आकर्षण है उसका न तो कोई वजन है, न कोई माप। वह अमाप्य, अतुलनीय है। एक बार आपके पास आने वाला आपका अपना हो जाता है। आपके विचारों में दौलत है आपके दिमाग में समृद्धि है। आपके अंतस् में हर क्षण शुभ भावों का, पवित्र भावों का झरना बह रहा है। मैं नमन करती हूं धर्मसिद्ध सम्राट महाश्रमण के करुणामय रूप को। राजस्थान में मोतियों के आभूषण का क्रेज है। आठ प्रकार के मोतियों की चर्चा आती है
1. सूकित मोती, 2. सर्प मोती
3. वांस मोती, 4. वराह मोती
5. गज मोती, 6. शंख मोती
7. नील मोती (मछली के गर्भ से)
8. मेघ मोती (बादलों से)
सात मोती कइयों ने देखे होंगे। आठवां किसी ने नहीं देखा। आठवां मोती मेघ मोती जन्म लेता है। धरती पर गिरने से पहले देवता उन्हें उठा लेते हैं। कभी गिरता है तो उस मोती की आभा महापुरुषों में होती है। ऐसा लगता है महायोगी महाश्रमण के आभामंडल में मेघ मोती की आभा है। मेघमोती की विशेषता है - करुणा। महाश्रमण के कण-कण में करुणा का निर्झर प्रवाहित हो रहा है। इसी का परिणाम है कि भक्तों की भावना को ध्यान में रख कितने लम्बे-लम्बे चक्कर लेकर भी अपने पैरों से हिन्दुस्तान की धरती को माप रहे हैं। औरंगाबाद में अक्षयतृतीया का प्रसंग है। अहमदनगर से सीधे भी जा सकते थे। लगभग 155 कि.मी. के आसपास ही पड़ता पर बीड़ की क्षेत्र स्पर्शना हेतु भक्तों की भावना रखने प्रभुता संपन्न सम्राट महाश्रमण उन पर करुणा कर लगभग 155 किमी. का चक्कर इस भयंकर गर्मी में भी ले रहे हैं।
प्रभु की इस अपरंपार करुणा को नमन। नमन करती हूं त्रिशल्यनाशक भगवन् महाश्रमण के पुश्कल संवत महामेघ के रूप को। संवत महामेघ एक वर्षा से ही दस हजार वर्षों तक पृथ्वी को स्निग्ध कर देता है। गणमाली महाश्रमण के अमृतमयी वचनों का पुष्करावर्तमेघ निरंतर भव्य प्राणियों के हितार्थ बरसता रहता है। वैराग्यपूर्ण वचनों को सुन उनके विचार भी वजनी बन जाते हैं और वे बन्धन से मुक्ति की दिशा में अग्रसर हो जाते हैं। ऐसे संसार तारक प्रभु को नमन।
प्रेरणा के प्रकार महाश्रमण तुम्हें प्रणाम,
संयम के पर्याय महायोगी तुम्हें प्रणाम।
करुणा सम्राट महादेव तुम्हें प्रणाम,
हे शक्तिधर! हे जलधर! लो भक्तिभरा प्रणाम।।
पदाभिषेक के अवसर पर-
भावशुद्धि से भवशुद्धि हो, बस तथास्तु कह दो भगवन्!!!