महाश्रमण तो महाश्रमण हैं
महाश्रमण की गरिमा-महिमा, सुनकर होता हर्ष अपार।
महाश्रमण को ध्याने वाला, बन जाता है गुण भंडार।।
लघुवय में दीक्षा लेकर के, ज्ञान-ध्यान का कर अभ्यास,
अपना वर व्यक्तित्व बनाया, जन-जन के मन में उल्लास।
अष्टादश वय में चिंतन, निर्णय सुन चकित हुए नर नार।।
साझपति व महाश्रमण पद, तुलसी गुरुवर का उपहार,
महाप्रज्ञ ने देख योग्यता, सौंप दिया गण का सब भार।
नेमां झूमर के नन्दन को, वन्दन करते बारम्बार।।
पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण, यात्राएं मंगलकारी,
अप्रमत्तता देख आपकी, नत मस्तक हैं संसारी।
दूरदर्शी हर कार्य आपका, फर्क नहीं है इसमें तार।।
दीक्षा की यह स्वर्ण जयंती, लेकर आई नव उत्साह,
देख आपके कार्य कर रहे, जैन-अजैन सभी वाह-वाह।
महाश्रमण तो महाश्रमण हैं, दिग्गज लोगों के उद्गार।।
एकादशवें अधिशास्ता हैं, वीतराग तुल्य साकार।
जुग-जुग जीओ नेमांनंदन, गाता है मुनि कमल कुमार।।