साधना के हेम शिखर हैं आचार्य श्री महाश्रमण
भारतीय संस्कृति के विक्सित पुष्प युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता के सर्वोत्तम, सर्वश्रेष्ठ तथा आध्यात्मिक पहलुओं का प्रतिनिधित्व करते हुए श्रेष्ठता की अगम्य गहराइयों में पैठ कर मोती निकालने का कार्य कर रहे हैं। गंभीर अनुभवों और अपने सेवा-त्यागमय जीवन के द्वारा सभ्यता एवं संस्कृति के सारभूत तत्त्वों को जीवित रखने का प्रयास कर रहे हैं। जिनके शान्त चेहरे की ओर एक दृष्टि निक्षेप से ही दर्शक को शान्ति और आह्लाद प्राप्त होता है। विश्व के प्रांगण में कभी-कभी ऐसे व्यक्तित्व का उदय होता है जिनका जीवन अनेकों के लिए प्रेरणादायी बनता है। जिनकी वाणी में धर्म और दर्शन आकार लेते हैं, कथनी-करनी में समरसता होती है, जिनका जीवन ज्ञान-साधना-कर्म की प्रयोगशाला है, ऐसे कषाय विजेता व्यक्तियों की सतत् आत्मलक्षी जीवन साधना एवं प्रतिपादित मूल्यों के द्वारा ही मानवता ने आध्यात्मिकता में विकास किया है।
लगता है अथक परिश्रम मानस को अपार तृप्ति प्रदान करता है, अपराजेय साहस से महामारी या भूकम्प, मूसलाधार बरसात हो या विपदाओं की रात, कभी कदम पीछे नहीं हटते। चिन्तन की गहराई से प्रशासकीय गुणों के साथ आत्मानुशासन का नया सूर्य उदित करते रहते हैं। जलधि का गांभीर्य प्रमाणित करने की आवश्यकता नहीं है। जागृत चेतना विषमताओं-विभावों-विजातीय वृत्तियों के कंटकों से परे 'असुभाओ नियट्टणं सुभाओ पयट्टणं' को जीवन सूत्र बनाकर जीवन में निहित परम श्रेय को समुपलब्ध कर रहे हैं।
दीर्घ यात्राओं में कठोर श्रम से शुष्क नहीं बने, ज्योतिर्मय नेत्र आशा एवं शान्ति का आश्वासन देते हैं, संतुलित व्यवहार अपने आलोक से सबको मुग्ध कर देता है। जहां कहीं भी पधारते हैं नई भावना एवं नए वातावरण का सृजन हो जाता है। जिस बहुमुखी व्यक्तित्व को न आयामों की संख्या में बांधा जा सकता है न कोणों की गणना हो सकती है। प्रत्येक दिशा में भिन्न छवि का आयाम प्रक्षेपित होता है, जिस कोण से दृष्टिपात करते हैं नया आयाम नजर आता है। प्रतिपल जागरूक रहना प्रतिदिन की चर्या है, कर्मठता की अर्चना है, लोक कल्याण नीति है, आत्मोत्थान हृदय की झंकार है, जीवन के प्रणीत यह सफलता का शिखर तेरापंथ की ऊंचाई को द्विगुणित कर रहा है। ऋजु हृदय में विराजित अनुकम्पा पूर्ण व्यवहार मृदुता से भरी वाणी, सेवा-सिद्धांतों के प्रति निष्ठा, साधना के हेम शिखर का स्पर्श कराने लगती है। कभी निराश और उदासीन जीवन के लिए आशा की किरण बन जाते हैं, युवाओं को आध्यात्मिकता में रंग जाने का परामर्श देते हैं, संस्थागत प्रवृत्तियों में पवित्रता रखने का प्रतिबोध देते हैं, कभी संघ समाज की विकासशील कार्यपद्धति में प्रोत्साहन देते हैं। भव्यात्माओं की शक्तियों का विनियोजन पारखी जौहरी की तरह करते हैं, आत्मविकास के स्वर्णिम सूत्रों से सबका मार्गदर्शन करते हैं। संवेगवर्द्धक प्रवचन अनेक व्यक्तियों के जीवन को ढालने में सिद्धहस्त बने हैं। जिनके जीवन का अवलोकन एवं व्यक्तित्व का विश्लेषण अपने आप में युग की कहानी का सृजन है। ऐसे समृद्ध विराट व्यक्तित्व को संयम की स्वर्ण जयंती पर बारम्बार अभिनंदन।