पुण्याई के महापुंज : महातपस्वी महाश्रमण
जिनशासन के महान् पारावार में चिंतामणि सम भैक्षव शासन हमें मिला है जहां परम प्रतापी, पुण्यशाली, महातपस्वी आचार्य श्री महाश्रमण जी की शासना हमें प्राप्त है। आचार्य श्री महाश्रमण जी पुण्य के अक्षय भंडार हैं। न जाने हमने कौनसे सद्कार्य किए होंगे जो हमें उनका पावन वरदहस्त मिला है। परंतु हमसे भी सहस्र गुना अधिक सद्कार्य आचार्य श्री ने पिछले भवों में किए होंगे, जिस कारण उनका पुण्य इतना उज्ज्वल है।
गीत में लिखा गया है -
एक तो तेरे पुण्य उजले, दूसरी तप साधना...
सचमुच पूज्य प्रवर के पुण्य अति उज्ज्वल हैं जो उन्हें दुर्लभ मनुष्य भव, जिन शासन, तेरापंथ धर्म संघ प्राप्त हुए। इतना ही नहीं इस नंदन वन में संयम यात्रा का महान आरक्षण भी मिला जो आप श्री सतत गतिमान रहते हुए दूसरों को भी संयम में स्थित और स्थिर कर रहे हैं। इससे भी आगे जाएं तो आपको गणाधिपति तुलसी एवं आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी की निकट सेवा का स्वर्णिम अवसर प्राप्त हुआ। थोड़ा और आगे बढ़ें तो युवाचार्य महाप्रज्ञ के अंतरंग सहयोगी, साझपति, महाश्रमण, युवाचार्य पद आदि विभिन्न रूपों में आप श्री द्वारा दी गई सेवाएं भी आपके पुण्य का उदय मानना चाहिए। वर्तमान में आप युगप्रधान शांतिदूत आचार्य के रूप में धर्म संघ की वल्गा को थामे हुए हैं। इतना सब कुछ एक ही व्यक्तित्व में समा जाना पुण्याई के अक्षय कोष से ही संभव हो सकता है।
आपश्री अपने इस अक्षय कोष को निरंतर वर्धमान बनाने की दिशा में प्रयत्नशील हैं। सैंकड़ों चारित्रात्माओं की साधना में सहयोगी बनना, हजारों व्रती श्रावकों की व्रत चेतना को पुष्ट बनाना, लाखों-लाखों लोगों को अहिंसा, संयम और तप की प्रेरणा देना, करोड़ों लोगों को सद्भावना, नैतिकता एवं नशा मुक्ति का संदेश देना। ये सब आपके पुण्य कोष को वृद्धिंगत ही कर रहे हैं। इनके अतिरिक्त आपश्री का दृष्टि संयम, वाणी संयम, खाद्य संयम, काय क्लेश आदि आदि अनेकों उपायों से आप अपने पुण्य के आभावलय को दिन प्रतिदिन विस्तार दे रहे हैं।
आप जैसी परम पुनीत पुण्य शाली आत्मा को पाकर सब परम सौभाग्य का अनुभव करते हैं। आपकी पावन सन्निधि निरंतर मानव जाति को अध्यात्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती रहे। आपश्री के दीक्षा कल्याण वर्ष की सम्पन्नता, 63वें जन्म दिवस,15वें पदाभिषेक दिवस एवं 51वें दीक्षा दिवस के अद्वितीय अवसर पर भाव भरा अभिनंदन, अभिवंदन।
जब भी पाता दर्शन तेरे, खो जाता मन मोर है,
अधरों पर आकर रुक जाता, भीतर मन का शोर है,
वो पल मन भावन लगता है, जब सन्निधि तेरी मिलती है,
मीरा के ज्यों श्याम, राम तुम मेरे, नस-नस कहती है।।