वैशाख शुक्ला दशमी का दिन है सर्वज्ञता प्राप्ति का दिन : आचार्यश्री महाश्रमण
11वें आचार्य के 15वें पदाभिषेक दिवस पर पहुंचें गुजरात के राज्यपाल देवव्रत आचार्य
जालना। 18 मई, 2024
वैशाख शुक्ला दशमी, परम प्रभु भगवान महावीर का केवलज्ञान कल्याणक दिवस एवं आचार्यश्री महाश्रमणजी का 15वां पट्टोत्सव दिवस। आज से लगभग 14 वर्ष पूर्व आज ही के दिन सरदारशहर में आचार्यश्री महाश्रमणजी विधिवत आचार्य पद पर विराजमान हुए थे, आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के अनन्तर पट्टधर बने थे। आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल देशना प्रदान कराते हुए फरमाया कि आज छः दिवसीय दीक्षा कल्याणक महोत्सव के संदर्भ में आयोजित समारोह के अन्तर्गत दूसरा दिन वैशाख शुक्ला दशमी का दिन है। आज का दिन परम वन्दनीय भगवान महावीर से जुड़ा दिन है। भगवान महावीर ने संन्यास का जीवन लगभग 30 वर्ष की अवस्था में स्वीकार किया था। लगभग साढ़े बारह वर्षों तक भगवान महावीर ने विशेष साधना की, तप तपा और आज के दिन उनकी साधना फलीभूत हुई थी। आज के दिन उन्होंने चार घाति कर्मों के क्षय के द्वारा केवल ज्ञान प्राप्त किया था। आज का दिन ज्ञान प्राप्ति का दिन है, वीतरागता प्राप्ति, शक्ति सम्पन्न होने, सर्वज्ञता प्राप्त करने का दिन है।
महावीर तीर्थंकर बने, उन्होंने देशना दी और एक परम्परा जैन शासन के रूप में आगे बढ़ी। जैन समाज में अध्यात्म की साधना का महत्व है। जैन शासन में चार तीर्थ हैं- साधु-साध्वी और श्रावक-श्राविका। जैन शासन में साधु बनने की दो परम्पराएं हैं- दिगंबर और श्वेतांबर परम्परा। श्वेतांबर परम्परा में दो धाराएं हैं- मूर्तिपूजक और अमूर्तिपूजक परम्परा। अमूर्तिपूजक परंपरा में भी स्थानकवासी और तेरापंथी परम्पराएं हैं।
हमारा संप्रदाय श्वेतांबर परम्परा में तेरापंथी है। लगभग 264 वर्ष का इस सम्प्रदाय का इतिहास है। इसके आद्यप्रवर्तक आचार्य भिक्षु स्वामी थे। उनसे संबंधित परंपरा आगे बढ़ी। संघ को चलाने के लिए नियम, सिद्धान्त और संचालक आवश्यक है। हमारे धर्मसंघ की मर्यादाएं-व्यवस्थाएं हैं। लोकतंत्र हो या राजतंत्र अनुशासन दोनों पद्धतियों में आवश्यक है। हमारा सम्प्रदाय एक धार्मिक-आध्यात्मिक संगठन है। इसमें एक आचार्य की परम्परा है और वर्तमान आचार्य ही भावी आचार्य का निर्णय करते हैं। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के निर्णय और निर्देश के अनुरूप धर्मसंघ की ओर से विधिवत आज के दिन यह कर्तव्य की चद्दर मुझे मुनिश्री सुमेरमलजी स्वामी ‘सुदर्शन’ ने ओढ़ाई थी। अनुशास्ता बनने से पहले यह सोचना चाहिए कि मैं अनुशासित बना हूं या नहीं। ‘निज पर शासन फिर अनुशासन।’ जो सन्यासी है, उन पर अनुशासन करना बहुत भाग्य की बात है। मूलतः साधुता बड़ी बात है। हमारे धर्मसंघ में आचार्य को सर्वोपरि स्थान दिया गया है। तुलना करें तो एक सम्राट-राजा की तरह आचार्य होते हैं। आचार्य के पास सारे अधिकार होते हैं। संगठन को अनुशासन में चलाना भी एक प्रकार की तपस्या-साधना होती है। हमारे साध्वीप्रमुखाजी साध्वी समुदाय की देखभाल करने वाले हैं। इधर साध्वीवर्या व मुख्य मुनि व्यवस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आचार्य धर्माचार्य होते हैं। धर्म संबंधी निर्णय करना, शास्त्रों का पठन-पाठन करना भी धर्माचार्य करते हैं। हम अध्यात्म की साधना को पुष्ट करते रहें। मैं आज के दिन आचार्यश्री तुलसी व आचार्यश्री महाप्रज्ञजी का स्मरण करता हूं। उन्होंने मुझे नेतृत्व की दिशा में आगे बढ़ाया था। आज के दिन आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने तो पूर्णरूपेण अपना अधिकार मुझे सौंपा था। गुजरात के राज्यपाल महोदय का भी आज आना हुआ है।
मुख्य मुनि महावीरकुमारजी ने कहा कि आज का दिन जैन शासन एवं तेरापंथ धर्मसंघ के लिए एक विशिष्ट दिन है। 14 वर्षों के काल में गुरुदेव ने हमें यह बता दिया है कि वे एक वीतरागता की मूर्ति बन गये हैं। आपका व्यक्तित्व और कर्तृत्व पावन और महान है। आपका शासनकाल साधना से ओत-प्रोत शासनकाल है। आचार्यप्रवर के शासन में पवित्रता और निश्चिन्तता है। तेरापंथ सभा के मंत्री अनिल संचेती ने स्वागत वक्तव्य दिया, राजकुमार पुगलिया ने राज्यपाल महोदय का परिचय प्रस्तुत किया। पूज्यवर की अभ्यर्थना में मुनि राजकुमारजी, मुनि विनम्रकुमारजी, मुनि सुधांशुकुमारजी, मुनि रत्नेशकुमारजी, मुनि अर्हमकुमारजी, मुनि ऋषिकुमारजी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। राज्यपाल महोदय की उपस्थिति में राष्ट्रगान का गायन हुआ। संघगान से कार्यक्रम का समापन हुआ। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।
मानवता के कल्याण के लिए समर्पित हैं आचार्यश्री महाश्रमण
गुजरात के महामहिम राज्यपाल देवव्रत आचार्य ने कहा कि मुझे यह जानकर सुखद अनुभव हुआ कि आपने बहुत ही छोटी आयु में जीवन के परम तत्व को समझते हुए इस भौतिक संसार से विरक्ति का रास्ता चुना और मानवता के कल्याण के लिए, विश्व की भलाई के लिए अपना पूरा जीवन ही समर्पित कर दिया। इन छः दिनों में आपका जन्म दिन, पदारोहण दिन और संन्यास के पचास वर्ष पूर्ण हो रहे हैं। भारत देश की संस्कृति सबसे पुरातन संस्कृति है। काल-गणना के संदर्भ में भारत जैसा दूसरा देश नहीं है। जो गतिशील है, वो संसार है। जिस समाज का नैतिक मूल्य, चरित्र, सोच सबके कल्याण की होगी, उस समाज को आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं सकता। आचार्यश्री महाश्रमणजी और इनके साधु-साध्वी इसी मिशन पर घर को त्याग कर लगे हुए हैं। उनका यही मिशन है कि यह सृष्टि और सुखमय हो, सबमें भाईचारा, एकता, अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह की भावना का विकास हो।
आज के दिन तेरापंथ के इतिहास में जुड़ा नया अध्याय
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी ने अपने उद्बोधन में कहा कि प्रभो! आज आपके पट्टोत्सव-दायित्व ग्रहण का दिन है। सभी आचार्यों ने कुशलता से अपने दायित्व का निर्वाह किया था। नेतृत्व की शैली सबकी अपनी-अपनी होती है। आज के दिन तेरापंथ के इतिहास में ग्यारहवां अध्याय जुड़ा था। आचार्य तब निर्भार बनते हैं, जब वे अपने दायित्व को सौंप देते हैं। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने गंगाशहर में अपना दायित्व सौंपते हुए आपको युवाचार्य पद पर स्थापित किया था। आज हम सभी आपके कर्तृत्व, नेतृत्व का अभिनन्दन कर रहे हैं।