आत्म निग्रह है दु:ख मुक्ति का मार्ग : आचार्यश्री महाश्रमण
अध्यात्म योगी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आगमवाणी का रसास्वाद कराते हुए फरमाया कि आदमी दु:ख से मुक्त रहना चाहता है। शान्ति रहे, सुख रहे, यह सुखप्रियता आदमी में होती है। दु:खों से मुक्त होने की भावना हो सकती है। जो हम प्राप्त करना चाहते हैं उसे प्राप्त करने का तरीका क्या है? किसी मंजिल पर पहुंचना है तो उसका रास्ता क्या है? रास्ता मिल जायेगा, उस पर चलेंगे तो संभव है, हमें मंजिल भी मिल जायेगी। आदमी का लक्ष्य - साध्य बढ़िया बना लिया तो एक कार्य तो हो गया। साधन हमें मिल जाये, मार्ग हमें मिल जाये, उस पर चलना शुरू कर दें तो एक दिन लक्ष्य की प्राप्ति हो सकती है। सर्व दु:ख मुक्ति हमारा साध्य है या साध्य होना चाहिए। इसका साधन है- हे पुरुष! अपने आप का ही निग्रह करो, अपना ही संयम करो। आत्मानुशासन बढ़िया चीज है।
पाप दुःख है, पाप का हेतु है - आश्रव। आश्रव से कर्म का बंध होता है और वे कर्म फिर हमें दु:ख देने लगते हैं। मोक्ष सर्व दु:ख मुक्त अवस्था है। मोक्ष का उपाय है- संवर और निर्जरा। अपने आप का निग्रह करने से संवर हो जायेगा और तपस्या से निर्जरा भी हो सकेगी। मन, वचन, शरीर और इंद्रियों पर संयम हो और त्याग की चेतना जाग जाये। यह आत्म निग्रह की साधना हो जाती है।
आगमों में हमें तत्व ज्ञान व धर्म साधना की बातें मिलती हैं। नवकार मंत्र जैन शासन का एक महत्वपूर्ण तत्व है। इसके प्रति हम सबकी आस्था है। पंच परमेष्ठी काे हम श्रद्धा से नमन करें। पंच परमेष्ठी 108 गुणों के धारक होते हैं। एक बार नमस्कार महामंत्र का स्मरण संसार सागर से तारने वाला बन सकता है। जैन शासन में अनेक सम्प्रदाय हैं, सब अपनी साधना करते रहें। आपस में मैत्री-सद्भावना रखने का व धार्मिक सहयोग करने का प्रयास करें, सौहार्द का भाव रहे। पूज्यवर के स्वागत में वर्धमान स्थानकवासी संघ की ओर से सुभाष मुथा ने अपने विचार व्यक्त किए। जयमल संघ की समणी जी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। सुभाष नाहर, जालना महिला मंडल ने अपनी प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।