सब प्राणियों को समझें अपने समान : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

सब प्राणियों को समझें अपने समान : आचार्यश्री महाश्रमण

वारकरी समाज द्वारा आचार्य प्रवर का 'धर्म दिवाकर' सम्मान से किया गया अभिनंदन

तीर्थंकर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी का मेहकर में पावन पदार्पण हुआ। अमृत वर्षा कराते हुए परम पावन ने फरमाया कि आदमी के जीवन में धर्म होता है तो वह कल्याण की दिशा में आगे बढ़ सकता है। प्रश्न है कि कौन सा धर्म जीवन में होना चाहिए? जैन, बौद्ध, सनातन, इस्लाम या सिक्ख कौनसा धर्म? ये सब सम्प्रदाय हैं, इनमें भी धर्म की बात हो सकती है। धर्म का सार बताया गया - अहिंसा, संयम और तप धर्म है। सब प्राणियों को अपने समान समझें। मैं ये नहीं चाहता, दु:ख नहीं चाहता तो दूसरे प्राणी भी कष्ट नहीं चाहते। धर्म का सर्वस्व सार है कि अपने लिए जो प्रतिकूल है, वह काम हमें दूसरों के लिए भी नहीं करना चाहिए। हिंसा होती है वहां दुःख हो सकता है। जहां अहिंसा है, वहां सुख-शांति है। दूसरा धर्म है - संयम। अपने पर अपना अनुशासन, संयम रखें। जबान पर लगाम रखें। बोलना है तो सत्य बोलें, प्रिय बोलें, अप्रिय सत्य भी न बोलें। ऐसा प्रिय भी न बोलें जो असत्य हो। हर सत्य बात बोलना आवश्यक नहीं है, वाणी का विवेक रखें। मन और शरीर का भी संयम रखें। बुरा देखो मत, बुरा सुनो मत, बुरा बोलो मत, बुरा काम करो मत और किसी का बुरा सोचो मत। इन्द्रियों का नियंत्रण करने का प्रयास करें।
तपस्या भी धर्म है। अनेक रूपों में तपस्या हो सकती है। धर्म का प्रचार करना व यात्रा करना भी तपस्या है। अणुव्रत के छोटे-छोटे नियम गृहस्थ अपने जीवन में स्वीकार कर सकते हैं। ध्यान-स्वाध्याय करना भी तपस्या है। व्यक्ति नशीली चीजों का सेवन न करें, नशा दुर्दशा करने वाला है। भोजन में भी अभक्ष्य पदार्थ के भक्षण से बचें। संयम की चेतना, नशामुक्ति, सद्भावना, नैतिकता जीवन में रहे। भारतवर्ष में भिन्न-भिन्न भाषाएं, धर्म-सम्प्रदाय और जातियां हैं, इन सबके होते हुए भी व्यक्ति के जीवन में मैत्री भाव रहे। अच्छे मूल्य, अच्छे गुण आदमी के जीवन में होते हैं तो आदमी की आत्मा, आदमी का जीवन अच्छा रह सकता है, आदमी कल्याण की दिशा में आगे बढ़ सकता है।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी ने उद् बोधन में कहा कि व्यक्ति आत्मा के शुद्ध स्वरूप को जानना चाहता है। आत्मा का साम्राज्य जिस व्यक्ति को उपलब्ध हो जाता है, वह व्यक्ति परमसुख का अनुभव कर सकता है। ध्यान के प्रयोग से आदमी आत्मा की दिशा में आगे बढ़ सकता है, आत्मा का साक्षात्कार कर सकता है। ध्यान का सुदर्शन चक्र जिस व्यक्ति के हाथ में आ जाता है, वह दु:खों से मुक्त हो जाता है, आनन्द की अनुभूति करता है। प्रेक्षाध्यान के माध्यम से व्यक्ति भीतरी जगत में प्रवेश कर सकता है। संत ज्ञानेश्वर, संत तुकाराम, संत नाम देव से संबंधित 'वारकरी समाज संत सम्मेलन' की भूमिका डॉ. अभय कोठारी ने प्रस्तुत की। मुनि पुलकितकुमार जी ने इस सन्दर्भ में अपनी भावना अभिव्यक्त की। नरसिंह संस्थान मेहकर के अध्यक्ष रंगनाथ महाराज ने कहा आचार्य श्री महाश्रमण जी ज्ञान, तपस्या और वैराग्य के साक्षात अवतार हैं।  हमारे संप्रदाय के साहित्यों में जैन धर्म की भूरि-भूरि प्रशंसा की गई है। आपका-हमारा नजदीक का संबंध है। आपका सान्निध्य हमें प्राप्त हुआ है, यह हमारे लिए सौभाग्य की बात है। वारकरी समाज द्वारा पूज्यप्रवर को सम्मान पत्र समर्पित करते हुए 'धर्म दिवाकर' अलंकरण से अलंकृत किया गया।पूज्यप्रवर ने संत सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए फरमाया कि संतों का समागम होना और धर्म की चर्चा होना एक महत्वपूर्ण बात होती है। भारत में अनेक पंथ, संत और ग्रंथ हैं। संतों से सन्मार्ग, ग्रंथों से सद्ज्ञान और पंथों से पथदर्शन प्राप्त होता रहे। धर्मोपासना के साथ आत्मोपासना होती रहे, आत्मा का कल्याण होता रहे।
पूज्यप्रवर के स्वागत में स्थानीय सभाध्यक्ष मंगलचंद कोठारी, सकल जैन समाज की ओर से जयचंदलाल बांठिया, स्थानीय सांसद प्रताप राव जाधव, कांग्रेस कमेटी महाराष्ट्र से श्याम कुमार ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। तेरापंथ महिला मंडल, चंदनबाला महिला मंडल एवं ज्ञानशाला ने अपनी प्रस्तुति दी। सुनीला नाहर ने आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी के ग्रंथ - ऋषभायण पर तैयार किया गया शोध प्रबंध पूज्यवर को समर्पित कर अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।