साधुपन मिलना है बड़े भाग्य की बात : आचार्यश्री महाश्रमण
आचार्य महाश्रमण दीक्षा कल्याणक महोत्सव सम्पन्नता का पांचवां दिन। अध्यात्म साधना के सजग प्रहरी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रेरणा पाथेय प्रदान कराते हुए फरमाया कि जैन दर्शन में अनेक वाद हैं, जिनमें आत्मवाद एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है, जिसके अनुसार आत्मा शाश्वत है, आत्मा अमूर्त है, असंख्येय प्रदेशात्मक एक पिंड है। आत्मा संकुचित-विकुचित हो सकती है। छोटे से एक शरीर में अनंत आत्माएं समाहित हो सकती हैं तो एक आत्मा पूरे लोक में भी फैल सकती है। आत्मवाद के साथ कर्मवाद भी जुड़ा है। आत्म सकर्मा भी होती है और अकर्मा भी होती है। कर्म आत्मा के लगे हुए होते हैं, कर्मों के फल भी भोगने को मिलते हैं वह आत्मा की सकर्म अवस्था है। आत्मा पूर्णतया कर्मों से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त हो जाती है वह आत्मा की अकर्म अवस्था है। कर्मवाद एक ऐसा सिद्धांत है जिसको समझ लेने से, आत्मसात कर लेने से पापों से बचने की प्रेरणा प्राप्त हो सकती है। पुण्य-पाप अपना-अपना होता है, खुद के कर्म खुद को भोगने होते हैं।
आत्मवाद-कर्मवाद को समझ लेने से व्यक्ति के भीतर में वैराग्य भाव प्रकट हो सकता है। वैराग्य भाव प्रकट होने के कई कारण हो सकते हैं, जैसे किसी को जाति-स्मृति ज्ञान हो जाये, आत्मवाद-कर्मवाद जैसे सिद्धान्तों को समझने का मौका मिल जाए, नरक-स्वर्ग, जन्म-मरण को जान लेने से संवेग जाग जाए, जीवन में कोई ऐसी घटना घट सकती है जिससे अभिप्रेरित होकर आदमी संयम के पथ पर चलने के लिए उद्यत हो जाए, ग्रंथों को पढ़ने से, दृश्यों को देखने से दु:खों से छुटकारा पाने की प्रेरणा जाग जाए। रास्ता दिख जाए तो आदमी सांसारिक जीवन को त्याग कर विरक्ति के पथ पर चलना शुरू कर सकता है।
नव तत्त्वों को अच्छी तरह समझ लिया जाये तो संक्षेप में अध्यात्म आत्मसात हो सकता है। षड् द्रव्य वाद व पंचास्तिकाय वाद जानने से सृष्टि को समझा जा सकता है। संतों के प्रवचन सुनने से भी साधुत्व के भाव जागृत हो सकते हैं। कोई भाग्यवान होते हैं, जिन्हें साधुता प्राप्त होती है। एक भवतारी गृहस्थ-श्रावक भी हो सकते हैं। आत्मा हल्की होने से मरुदेवा माता हाथी के होदे पर ही केवलज्ञान व मोक्ष को प्राप्त हो गई। कर्मवाद का सिद्धांत तो सब पर लागू होता है। भगवान महावीर की आत्मा ने पूर्व भव में चक्रवर्ती-वासुदेव पद काे पाया, तो देवलोक और सातवीं नरक को भी पाया। अंतिम भव में तीर्थंकर पद भी प्राप्त किया था, साधना कर सिद्धत्व को भी प्राप्त कर लिया था।
साधुपन मिलना बड़े भाग्य की बात है। वास्तव में साधुत्व का स्पर्श कर लेते हैं वे धन्य हैं। यों तो अभव्य जीव भी बाह्य रूप में साधु या आचार्य बन जाए पर सिद्ध का स्थान अभव्य जीव को कभी नहीं मिल सकता। संतों की कल्याणी वाणी कितनों के जीवन में परिष्कार लाने में निमित्त बन सकती है। आचार्य भिक्षु ने हेमराजजी स्वामी को झकझोरा। मुनि श्री हेमराज जी दीक्षित हो गए, शिक्षित और विकसित हो गये थे। हमारे धर्मसंघ के महान संतों में एक ऊँची पंक्ति में जिनका नाम लिखा जाए ऐसे संत मुनि हेमराज जी स्वामी थे। ''संत सतयुगी मोजी वेणी, स्वरुप कालू मगन त्रिवेणी'' इधर खेतसीजी स्वामी, मोजीराम जी स्वामी, स्वरुपचंद जी स्वामी, कालू जी स्वामी 'रेलमगरा', मंत्री मुनि मगन लाल जी स्वामी आदि महान संतों की श्रेणी में थे।
हमारे धर्मसंघ में सबसे कम उम्र में दीक्षा लेने वाली साध्वी गुलाबांजी ने लगभग 7.5 वर्ष में ही दीक्षा ले ली। श्रीमद् जयाचार्य का सान्निध्य उन्हें प्राप्त हुआ। साध्वियों में मुखिया का स्थान मिल गया।
मिट्टी को कुम्भकार का योग मिल जाए तो घड़ा बनाया जा सकता है। इसी प्रकार गुरु प्रेरणा दें, सामने वाले में क्षयोपशम हो तो दीक्षा की बात भी हो सकती है। आचार्यों एवं साधु-साध्वियों ने कितनों को दीक्षा दी है, शिक्षा दी है तो परीक्षा भी ली है। पारमार्थिक शिक्षण संस्था मुमुक्षओं का एक ट्रेनिंग सेंटर है। भाग्यवान को मानो ऐसा सत्पथ प्राप्त हो सकता है, कई बार भाग्य पूरा साथ न दे तो पथ से विचलित भी कोई हो सकता है। सुबह का भूला शाम को लौट आये तो भी अच्छा है। साधु का जीवन निर्मल रहे। केशों से मुंडित होने की अपेक्षा कषायों से, क्लेशों से मुंडित हो जाना बड़ी बात होती है। संयोगों से मुक्त अणगार जीवन प्राप्त होता है, कितना बड़ा भाग्य होता है तो भिक्षु का जीवन प्राप्त होता है। 'जैसी करणी-वैसी भरणी' सूक्त से आदमी को संबोध प्राप्त हो जाये तो वह संयम की दिशा में अग्रसर हो सकता है।
पूज्यवर की अभ्यर्थना में साध्वी वृंद ने परिसंवाद प्रस्तुत किया। अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल की महामंत्री नीतू ओस्तवाल ने आचार्य श्री महाश्रमण दीक्षा कल्याण महोत्सव वर्ष के सन्दर्भ में 'महाश्रमणोस्तु मंगलम्' के अंतर्गत किये गए अनेकों कार्यक्रमों की जानकारी श्रीचरणों में प्रस्तुत की। तेरापंथ कन्या मंडल द्वारा महाश्रमण अष्टकम का संगान किया गया। मुमुक्षु सलोनी नखत एवं बिंदु नखत ने कविता पाठ किया। मुख्य मुनि के संसार पक्षीय कोचर परिवार ने पूज्य प्रवर की अभिवंदना में गीत का संगान किया। जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा के महामंत्री विनोद बैद ने पूज्य प्रवर की अभिवंदना में अपने विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर उपासिका मंजू दुगड़ ने 41 की तपस्या का प्रत्याख्यान किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।