झूठ का त्याग कर सच्चाई की साधना करें : आचार्यश्री महाश्रमण
भीलवाड़ा, 23 सितंबर, 2021
अमृत देषणा प्राप्त कराने वाले आचार्यश्री महाश्रमण जी ने प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि दुनिया में सच्चाई भी जीवत है, तो झूठ भी चलता है। शास्त्रकार ने झूठ बोलने के दस प्रकार बताए हैं।
एक आदमी गुस्से के कारण झूठ बोल जाता है। गुस्से के वशीभूत हो गया और मित्र को भी शत्रु कह देता है। गुस्से के कारण आदमी अपने आप पर कंट्रोल नहीं रख पाता। न करने का काम कर लेता है, न बोलने की बात बोल देता है। दूसरा झूठ हैमान निश्रित-अहंकार में बोल देना। घमंड में आकर आदमी है तो निर्धन पर स्वयं को धनवान बता देता है।
झूठ बोलने का तीसरा प्रकार हैमाया निश्रित। माया के वशीभूत होकर आदमी झूठ बोल देता है। कपट कर लेता है। जैसे नकटा आदमी बोलता है कि नाक कटा लो, भगवान के दर्शन हो जाएँगे। यह एक दृष्टांत से समझाया। आदमी माया रचकर कितनों की नाक कटवा देता है। चौथा प्रकार हैलोभ निश्चित झूठ। अल्प मूूल्य की चीज को बहुमूल्य की बता देना।
पाँचवाँ प्रकार हैप्रेयस निश्रित। प्रेम या राग के वशीभूत हो झूठ बोल देना। छठा प्रकार हैद्वेष निश्रित। द्वेष के कारण से भी आदमी झूठ बोल देता है। मन में द्वेष का भाव है, तो गुणवान को भी निर्गुण बताने का प्रयास किया जाता है। सातवाँ कारण हैहास्य-निश्रित। हास्य-हास्य में आदमी झूठ बोल देता है। मजाक में किसी की चीज उठा ली और पूछे तो नकार जाता है, कारण मन बहलाने के लिए ऐसा कह देते हैं।
आठवाँ प्रकार हैभय निश्रित। डर के कारण आदमी झूठ बोल देता है। नौवाँ प्रकार हैआख्यायिका। कोई कहानी को झूठे तरीके से गूंफित कर देते हैं। क्योंकि उसमें सरसता आ जाएगी। लोग अच्छा समझेंगे। अतथ्यात्मक कहानी गढ़ लेते हैं। सिद्धांत के विरुद्ध ऐसी-वैसी कहानियाँ मनगढ़ंत कर देते हैं। दसवाँ प्रकार हैउपघात निश्रित। किसी को पीड़ा पहुँचाने के लिए। चोर नहीं है, फिर भी उसे चोर बता देते हैं ऐसे भले आदमी को बुरा बता देना।
ये झूठ बोलने के दस प्रकार हैं। यहाँ धातव्य बात यह है कि झूठ बोलने से जितना बचा जा सके, उतना तो मैं टालूँ। गृहस्थों को भी झूठ तो बोलना ही नहीं चाहिए। अपने बचाव के लिए दूसरे पर आरोप लगा देता है। स्वयं द्वारा की गई गलती को अस्वीकार कर लेता है। यों आदमी न्यायालय या पुलिस में झूठ बोलता है। पवित्र पुस्तक की शपथ लेकर झूठ बोल देता है।
झूठ बोलना अविश्वास का कारण बन सकता है। झूठे आरोप लगाने से आदमी का सम्मान नहीं रहता है। कई बार आदमी मनो-विनोद के कारण झूठ का सहारा ले लेता है। हास्य रूप में या लोगों को इकट्ठा करने के लिए झूठ बोल देता है। यह एक कथानक से समझाया।
आत्मा की दृष्टि से तो मृषावाद पाप है। झूठ और चोरी दोनों से बचना चाहिए। साथ में सामायिक-स्वाध्याय, जप आदि की साधना करे। झूठ को छोड़ने का प्रयास करना चाहिए। गीत में सुंदर कहा गया है‘सत्यवादिता सधै न थांस्यूं तो रहणो चुपचाप है। कपटाई कर झूठ बोलणो, जग में मोटो पाप है।’
गृहस्थों को यह प्रयास करना चाहिए कि मेरी वाणी से झूठ बात न निकले। झूठ बोलने से बचें। झूठ का रास्ता तात्कालिक तो लाभ पहुँचा सकता है, पर व्यवहार में लंबे काल में आदमी का विश्वास चला जाता है। हमें झूठ बोलने से बचने का प्रयास करना चाहिए। पूज्यप्रवर ने तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए। ऊषा बांठिया ने 27 की तपस्या के प्रत्याख्यान ग्रहण किए।
मुख्य नियोजिका जी ने श्रवण के शेष प्रकारों के बारे में समझाया। मिमांशा करने से हमारे ज्ञान की श्रीवृद्धि करने में सफलता मिलती है। जब ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम होता है, तब आदमी को अवधिज्ञान प्राप्त होता है। देवों एवं नारकीय जीवों में तो अवधिज्ञान होता ही है। मनुष्य तथा तिर्यंच में भी अवधि ज्ञान हो सकता है। अवधि ज्ञान के प्रकारअनुगामी, अनानुगामी, वर्धमान और चारित्र की विशुद्धि को विस्तार से समझाया।
साध्वी शरदयशा जी ने सुमधरु गीत का संगान किया। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने बताया कि जीव-जीव का उपकारी होता है। कोई जीव अनुपयोगी नहीं है।