आदमी की वाणी रहे कल्याणी : आचार्यश्री महाश्रमण
भैक्षवगण सरताज आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आगम वाणी का रसास्वाद करवाते हुए फरमाया कि शास्त्र की वाणियां शिक्षाप्रद रूप में प्राप्त होती है। प्राचीन शिक्षाएं जो शास्त्रीय भाषा में हैं, उनकी अपनी गरिमा होती है। आदमी के पास वाणी है, वह वाणी कल्याणी रहे, पाप ग्राहिका न बने, ऐसा यथासंभव प्रयास रखना वांछनीय है। आचार्य प्रवर ने फ़रमाया- आज ज्येष्ठ कृष्णा चतुर्दशी है, मुख्यमुनि का नियुक्ति दिवस है। यह कोई संयोग ही है कि वैशाख शुक्ला चतुर्दशी को साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी का मनोनयन दिवस, ज्येष्ठ कृष्ण द्वादशी को साध्वीवर्या संबुद्धयशाजी का नियुक्ति दिवस और आज मुख्यमुनि महावीरकुमारजी का नियुक्ति दिवस है। मुख्य मुनि को नियुक्त हुए आठ वर्ष हो गए हैं। साध्वीप्रमुखा पद तो पहले से चला आ रहा है, बाद में नए-नए उन्मेष आए हैं। उनमें दो उन्मेष - साध्वीवर्या का पद सृजन और उसी बैठक में नियुक्ति, उसी प्रकार मुख्य मुनि का भी पद सृजन और उसी बैठक में नियुक्ति। उन्मेष बहुत उपयोगी रहें, और जीवन में नए-नए उन्मेष लाने में भी निमित्त बने। मुख्य मुनि भी खूब ज्ञान, दर्शन, चारित्र, स्वाध्याय, ध्यान, सेवा, कौशल सब का विकास होता रहे। साध्वीप्रमुखाजी का तो बड़ा दायित्व है ही, साध्वी समुदाय का, बाइयों का, समाज का दायित्व है।
वाणी से आदमी सत्य या मृषा बोल सकता है। प्रिय या कटु भी बोल सकता है तो सामान्य वचन भी प्रयुक्त कर सकता है। इरादतन झूठ बोलना गलत बात होती है। विस्मृति या प्रमाद से ज्ञानी आदमी के मुख से भी स्खलना हो सकती है, पर मुनि उसका उपहास न करें। झूठ बोलने के पीछे अलग-अलग उद्देश्य हो सकते हैं। दूसरे को कष्ट न हो जाए, स्वयं का अहित न हो जाए या किसी का हित हो जाए इन कारणों से व्यक्ति झूठ बोल सकता है। कभी-किसी का अहित करने व फंसाने के लिए भी व्यक्ति झूठ बोल सकता है। इस प्रकार अनेक कारणों-संदर्भों से व्यक्ति मृषावाद का प्रयोग कर सकता है। शास्त्रकार ने कहा है कि साधु को हिंसाकारी झूठ नहीं बोलना चाहिए। इरादा क्या है, वह बड़ी चीज है।
साध्वीवर्याजी पर समण श्रेणी, मुमुक्षु, सघन साधना शिविर, सुमंगल साधना आदि का दायित्व है। सबका स्वास्थ्य अच्छा रहे, विकास और सेवा का लक्ष्य रहे। चित्त में शांति, समाधि रहे। अपना जीवन भी शांतिमय रहे और दूसरों की सेवा का अच्छा लाभ उठाते रहे। मनोबल बढ़िया रहे। हम चारों में साध्वीप्रमुखा जी उम्र में बड़े हैं, दीक्षा पर्याय में मेरे से छोटे होते हैं पर जीवन पर्याय मेरे से ज्यादा है। आपका जीवन पर्याय और संयम पर्याय खूब आगे बढ़ता रहे। अध्ययन, स्वाध्याय, लेखन का विकास हो। सबका स्वास्थ्य, मनोबल बढ़िया रहे, जल्दी से डर-भय न हो, उच्चावट, उद्वेग, दुःख न हो, ऐसी साधना पुष्ट रहे। चतुर्दशी के उपलक्ष में पूज्यवर ने हाजरी का वचन कराते हुए ईर्या समिति, यातायात आदि के बारे में शिक्षाएं प्रदान करवायी। आचार्यप्रवर के निर्देशानुसार मुनि योगेशकुमारजी ने यातायात नियमों की जानकारी दी। आचार्य प्रवर के सान्निध्य में मुनि निर्मलकुमारजी की स्मृति सभा आयोजित की गई। पूज्य प्रवर ने संक्षिप्त जानकारी प्रदान करते हुए चतुर्विध धर्म संघ के साथ चार लोगस्स का ध्यान करवाया। साध्वीप्रमुखाश्री, मुख्यमुनिश्री, मुनि विश्रुतकुमारजी, मुनि योगेशकुमारजी एवं मुनि दिनेशकुमारजी ने भी उनकी आत्मा की उत्तरोत्तर प्रगति की मंगलकामना की। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।