मनुष्य जीवन में पाप से बचें और धर्म का आचरण करें : आचार्यश्री महाश्रमण
जन-जन का कल्याण करने वाले महातपस्वी आचार्य श्री महाश्रमणजी ने महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र से खान्देश में मंगल प्रवेश किया। लगभग चौदह किलोमीटर का विहार कर आचार्यप्रवर अपनी धवल सेना के साथ जलगांव जिले के देवलगांव (गुजरी) के जिला पंचायत मराठी प्राथमिकशाला पधारे। महामनस्वी ने पावन प्रेरणा पाथेय प्रदान कराते हुए फरमाया कि हमारे आत्म हित के लिए ज्ञान का बहुत महत्त्व है। सद्ज्ञान, आत्म कल्याण का बोध प्राप्त हो जाये, जीवन कल्याण का बोध प्राप्त हो जाए और सम्यग्ज्ञान के अनुसार हमारा आचरण हो जाये तो हमारी आत्मा मुक्ति की दिशा में अग्रसर हो सकती है। ज्ञान एक ऐसा तत्व है, जिससे करणीय और अकरणीय की जानकारी प्राप्त हो सकती है। धार्मिक ज्ञान में मन निमग्न हो जाता है उससे चेतना-आत्मा की शुद्धि भी हो सकती है। सत्संगत का महत्व बताया जाता है। साधु जो त्यागी है, सन्यास का जीवन स्वीकार कर लिया है, संसार से उपरत हो गया है, कंचन कामिनी के चक्र से मुक्त हो गया है वह एक त्यागी व्यक्ति हो सकता है।
संतों से सद्ज्ञान प्राप्त होता है। साधु की वाणी से कभी वैराग्य भाव भी जाग सकता है। व्यक्ति जन्म-मरण की परम्परा से अपने आप को मुक्त करने के लिए साधना का पथ स्वीकार करे। गृहस्थ जीवन भी अच्छा बने। जीवन में अहिंसा, संयम और नैतिकता का समावेश रहे। यह मानव जीवन बड़ा दुर्लभ बताया गया है। वीतराग प्रभु के प्रति हमारी भक्ति हो और प्राणीमात्र के प्रति दया-करुणा की भावना हो। मनुष्य का जीवन सादा हो, विचार ऊंचे हो। सद्विचार-सदाचार जीवन में हो, अणुव्रत, प्रेक्षाध्यान आदि अध्यात्म की साधना चले तो जीवन अच्छा बन सकता है। समय बीत रहा है, इसके प्रति जागरूक बनें। मनुष्य जीवन में पाप से बचना और धर्म करना इन दो बातों पर हम ध्यान देकर अच्छा आचरण करें, यह हमारे लिए कल्याणकारी हो सकता है। पूज्यवर के स्वागत में स्थानीय सरपंच जोगेंद्र सिंह ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।