भावों में शुद्धता, आचरणों में अच्छापन और विचारों में विराटता रखने का हो प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

भावों में शुद्धता, आचरणों में अच्छापन और विचारों में विराटता रखने का हो प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण

अज्ञान को दूर कर असीम ज्ञान चेतना जगाने वाले आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल देशना प्रदान कराते हुए फरमाया कि आदमी को थोड़े लाभ के लिए कई बार बहुत हानि भी उठानी पड़ जाती है। बुद्धिमता इस बात में है कि आदमी ऐसा कार्य न करे जिससे नुक्सान ज्यादा और लाभ थोड़ा हो। कभी-कभी आदमी अधिक नुक्सान होने पर आत्महत्या तक कर लेता है। पूज्य प्रवर ने एक प्रसंग के माध्यम से समझाया कि कभी किसी देवी की पूजा करने से वह प्रसन्न होकर वरदान भी दे सकती है, पर उसके लिए भी पुरुषार्थ परम आवश्यक है। थोड़े आराम के लिए आदमी बहुत कुछ खो देता है। परिश्रम करने वाला सम्पन्न बन सकता है पर थोड़ा आराम करने वाला वैसा ही रह जाता है। आदमी समय का मूल्यांकन करे। अवसर का अच्छा लाभ उठाने का प्रयास करे, मिले हुए अवसर को गंवाने का प्रयास न करे।
कई संतों को गुरुकुल वास में रहने का अच्छा अवसर मिला है, वैसे तो गुरु जहां रखे वहां ठीक है, उसका अच्छा लाभ उठाने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यों के आगमन का भी अच्छा लाभ उठाना चाहिये। मानव जन्म मिलना बहुत बड़ा अवसर है। इसका हमें अच्छा फायदा उठाकर आत्मा का कल्याण करना चाहिए। संयम-तप के द्वारा आत्मा को भावित करने का हम प्रयास करें। धार्मिक साधना-आराधना, नैतिकता-अहिंसा जीवन में हो तो गृहस्थ जीवन में भी कल्याण हो सकता है। गृहस्थ जीवन में भी कोई प्रसंग ऐसे बन सकते हैं जैसे भरत चक्रवर्ती को गृहस्थ जीवन में केवलज्ञान हो गया, मरुदेवा माता को सिद्धत्व की प्राप्ति हो गई। गृहलिंगी सिद्ध भी बताये गये हैं। भावों-भावों से आत्मा का उत्थान हो जाता है जैसे राजर्षि प्रसन्नचन्द।
भावों में शुद्धता, आचरणों में अच्छापन और विचारों में विराटता रखने का प्रयास हो। श्रावक-श्राविका भी चार तीर्थ में बताये गये हैं। साधु-साध्वियों का गुणस्थान ऊंचा है। सर्व विरति और देश विरति का अन्तर है, परंतु जो देश विरति बन गया वह भी कभी न कभी सर्व विरति बनेगा ही। इसलिए गृहस्थ जीवन में भी धर्म का संचय करना चाहिए। मनुष्य जन्म मिला है तो एक-एक वर्ष धर्म की कमाई वाला बीते। अवसर का लाभ उठाते हुए विकास का प्रयास करें। यह मानव जीवन मिला है, इसमें प्रमाद में अवसर नहीं गंवाना चाहिए। गुरुओं से जो संबोध मिला है, उसको संजोकर रखें, उसका अच्छा उपयोग करें, लाभ उठाने का प्रयास करते रहें। पूज्य प्रवर के स्वागत में गारखेड़े विद्यालय के शिक्षकों ने अपनी भावना अभिव्यक्त की।कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।